Wednesday, 30 May 2018

अज़्दहा और किंग कोबराازدہا اور کنگ کوبرا


کیا خوب فوٹوگرافی ہے 
اس میں دو سانپوں کو دکھایا گیا ہے جس میں ایک اژدھا ہے جو کہ پکڑ اور گرفت میں کمال مہارت رکھتا اور دوسرا کنگ کو برا کو انتہائی زہریلا سانپ ہے یہ تصویر ایک تو فوٹوگرافر کی کمال مہارت کا منہ بولتا ثبوت ہے دوسری طرف یہ ہمارے لیے بہت سے پیغامات اپنے اندر سموۓ ہوۓ ہے. یہ تصویر دونوں سانپوں کی مردہ حالت کی ہے یعنی کوبرا اژدھے کی گرفت میں آکر جان کی بازی ہار گیا اور اژدھا کوبرا کے زہر کے سامنے نہ ٹک سکا 
فرقہ واریت انہی دونوں سانپوں کی مثال ہے جو کلمہ گو لوگوں کو ایک خدا ایک نبی ﷺ اور ایک کتاب کے ماننے والے ہیں آپس میں لڑوا کر ایک دوسرے کی طاقت کو اپنے ہی خلاف استعمال کرواتی ہے 
نقصان آخر کس کا ہوتا ہے یہ اس تصویر سے بھی ظاہر ہے۔ قرآن سنت سے دوری اس کی سب سے بڑی وجہ ہے اور اس کے بعد بڑی وجہ ہے وہ دین فروش عناصر ہیں جو ان معصوم ذہنوں میں اپنے ہی مسلمان بھاٸیوں کے خلاف زہر بھرتے ہیں اور آج حالت یہ ہے ہم کسی غیر مسلم کو اپنے ساتھ برداشت کر سکتے ہیں جو ہمارے آقا ﷺ کو بھی ماننے سے انکاری ہے لیکن کسی غیر مسلک کو برداشت نہیں کرسکتے اس کہ وجہ کیا ہے ہم نے اللہ کہ رسی کو چھوڑ دیا ہے بلکہ ہمیں وہ رسی نظر ہی نہیں آتی 
دین اسلام کی غلبہ کی سب سے بڑی رکاوٹ یہ فرقہ واریت ہے ہم دین کی ترویج کیلیے کچھ کریں یا نہ کریں اپنے مسلک کاپرچار ضرور کرتے ہیں کیا 
یہی وجہ ہے ہم نے مسلمان کم اور کافر زیادہ بناۓ ہیں


क्या खूब फोटोग्राफी है...  इसमे दो सांपों को दिखाया गया है जिसमे एक "अज़्दहा" है जो के पकड़ और गिरफ्त में कमाल महारत रखता है और दूसरा "किंग कोबरा" को इंतिहाइ ज़हरीला सांप है. ये तस्वीर एक तो फोटोग्राफी की कमाल महारत का मुंह बोलता सबूत है दूसरी तरफ ये हमारे लिए बहुत सारे पैगामात अपने अंदर समोए हुए है। ये तस्वीर दोनों सांपों की मुर्दा हालत की है, यानी "कोबरा" "अज़्दहा" की गिरफ्त में आकर जान की बाज़ी हार गया और अज़दाह कोबरा के ज़हर के सामने ना टिक सका।
फिरकावारियत इन्ही दोनों सांपों की मिसाल है जो कालिमा गो लोगों को एक खुदा एक नबी ﷺ और एक किताब के मानने वाले है आपस में लड़वा कर एक दूसरे की ताक़त को अपने ही खिलाफ इस्तिमाल करवाते है।
नुकसान आखिर किसका होता है ये इस तस्वीर से भी ज़ाहिर है, क़ुरआन सुन्नत से दूरी इसकी सबसे बड़ी वजाह है और उसके बाद बड़ी वजाह है वह दीन फरोश उलमा जो इन मासूम ज़हनों में अपने ही मुसलमान भाइयों के खिलाफ ज़हर भरते है और आज हालत ये है हम किसी गैर मुस्लिम को अपने साथ बर्दाश्त कर सकते है जो हमारे आक़ा ﷺ को मानने से इंकारी है।
लेकिन किसी गैर मसलक को बर्दाश्त नही कर सकते इसकी वजह क्या है हमने अल्लाह के रसूल  को छोड़ दिया है बल्कि हमें वह रस्सी नज़र ही नही आती। दीने इस्लाम की गलबे की सबसे बड़ी रुकावट ये फिरकावारियत है हम दीन की मेहनत के लिए कुछ करे या ना करे अपने मसलक का प्रचार जरूर करते है...
क्या यही वजह है हमने मुसलमान कम औऱ काफ़िर ज़ियादा बनाए है!!

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