1. ज्यदातर लोग यह सोचते हैं कि उनके वफ़ात के बाद उनकी सारी जायदाद उनकी बीवी, बेटे बेटियों या करीबी रिश्तेदारों में अपने आप चली जायगी लेकिन ऐसा होता नहीं है। हमने अक्सर माँ बाप, भाई बहन और रिश्तेदारों को मरहूम की जायदाद पर लड़ते झगड़ते देखा है। कभी कभी यह लड़ाई पीढ़ी दर पीढ़ी खिचती चली जाती है और इसका कोई हल नहीं निकलता है।
2. वसीयत नामा एक नायाब तोहफा है जो आप अपनी वफ़ात से पहले अपने नज़दीकी को दे सकते हैं। ऐसा करके आप उन्हें कोर्ट कचहरी के चक्कर से तो निजात दिला ही देंग साथ में उनमे प्यार मोहब्बत को भी बरक़रार रखेंगे।
3. इस्लाम ने इस अहम् मसले को 1400 साल पहले समझा और हर मुस्लिम को वफ़ात से पहले वसीयत करने की हिदायत दी। आईये हम क़ुरान और हदीस में आई इन हिदायतों को पढ़ते हैं।
क़ुरान
4. अल्लाह (तबारक तालह्) सूरे अल बक़रह सूरा नंबर दो आयत नंबर 180 में फरमाते है;
तुम्हारे लिए हिदायत है कि
जब तुम में से किसी को मौत आए,
और अगर वह कोई माल छोड़े,
तो वसीयत कर जाए
अपने माँ बाप और
करीब के रिश्तेदारों के लिए
मुनासिब इस्तेमाल के मुताबिक़;
यह वाजिब है
परहेज़गारों पर।
📖 हदीस
5. अब्दुल्लाह बिन उमर (रजि अल्लाहो अन्हो) का बयान है;
अल्लाह के रसूल (सल्लाहो अल्हे वस्सलम) ने कहा, “किसी मुस्लिम को इजाज़त नहीं कि अगर उसके पास वसीयत करने के लिए कुछ हो, तो वह दो रात से ज़्यादा बिना वसीयत करके रहे।”
(Sahih Bukhari, Volume 4, The Book of Wasaya, Chapter Number 1, Hadith Number 2738)
खुलासा
6. जैसे कि हमने पढ़ा वसीयत करने की हिदायत क़ुरान में आयी है, और क़ुरान में आयी हिदायत फ़र्ज़ है और फ़र्ज़ निभाना इबादात है। इस लिहाज़ से वसीयत करना इबादात है। हर मुस्लिम का फ़र्ज़ है कि जल्द से जल्द अपनी वसीयत करे।
7. वसीयत लिखने से पहले किसी आलिम की मदद ले लेनी चाहिए ताकि शरीयत के हिसाब से वसीयत लिखी जा सके।
No comments:
Post a Comment