Wednesday, 25 November 2015

ऐसी सोच इस देश में बढ़ती ही जा रही

एक लेखक के ब्लॉग से :-

आमिर ख़ान ने एक इंटरव्यू में कहा है कि देश में पिछले छह-आठ महीनों में हालात बुरे हुए हैं और इन दिनों हुई कुछ घटनाओं से उनकी (हिंदू) पत्नी चिंतित हो गईं और कहा कि क्या हमें भारत छोड़कर कहीं और चले जाना चाहिए। आमिर के इस बयान से मुझे दुख हुआ। ऐसा लगा जैसे किसी जॉइंट फ़ैमिली का कोई सदस्य यह कहे कि मुझे इस घर में रहने से डर लग रहा है क्योंकि मुझे आशंका है कि कोई मेरा नुक़सान कर देगा

आप ऐसी आशंका पर दो तरह की प्रतिक्रिया जता सकते हैं। एक, आप कहेंगे कि बकवास मत करो, तुम्हारी आशंका ग़लत है, देश में सबकुछ ठीकठाक है। दो, आप पूछेंगे कि आख़िर तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है? आओ, बैठकर बात करते हैं।

यदि आप पहली श्रेणी में हैं तो आप वही कहेंगे जो बीजेपी नेताओं और समर्थकों ने आमिर ख़ान के बयान पर कहा है। आमिर देश को बदनाम कर रहे हैं। यदि देश में इतने बुरे हालात होते तो आमिर आज स्टार नहीं होते। आमिर यदि भारत में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे तो वह दुनिया के किसी भी इलाक़े में सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे। आमिर, शाहरूख देशद्रोही हैं; उनकी मूवी का बॉयकाट करो, उनको पाकिस्तान भेज दो।

यदि आप दूसरी श्रेणी में होंगे तो आप ऐसा कुछ नहीं कहेंगे। आप कहेंगे कि आमिर, मुझे बताएं कि आपको ऐसा क्यों लग रहा है। यदि आपको लगता है कि पिछले कुछ महीनों में हालात बिगड़े हैं तो हम उन हालात को सुधारेंगे। जिनसे आपको असुरक्षा महसूस हो रही है, उन कारणों को हम दूर करेंगे। हम आपको कहीं नहीं जाने देंगे क्योंकि यह देश जितना मेरा है, उतना ही आपका है। 

पहली टाइप की प्रतिक्रिया क्यों आ रही है, यह समझना मुश्किल नहीं। बीजेपी और मोदी समर्थकों को लग रहा है कि देश में जो हालात हैं, वे तो पहले से ही इतने बुरे थे, यह आज की बात नहीं है। पहले भी हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए हैं। पहले भी मुसलमानों को हिंदू इलाक़ों में घर नहीं मिलता था। पहले भी मुसलमानों के लिए क*आ शब्द इस्तेमाल होता था। पहले भी धर्म के आधार पर वोट पड़ते थे। तो आज नया क्या हो गया? 

दूसरा तबका इसका जवाब यह कहकर देता है कि हां, पहले भी हालात बुरे थे और अतिवादियों के कारण ही बुरे थे मगर अब तो और बुरा हो गया है। आज एक मुसलमान को केवल इसलिए मार डाला जाता है कि एक खास की विचारधारा से प्रेरित एक भीड़ के मुताबिक़ वह अपने घर में गोमांस पका रहा था। नया यह है कि सत्तारूढ़ दल के मंत्री इसे एक सामान्य दुर्घटना बताते हैं और सत्तारूढ़ दल के नेता गोमांस खानेवाले बाक़ी लोगों के साथ भी ऐसा ही सुलूक करने की चेतावनी देते हैं। नया यह है कि देश का प्रधानमंत्री इस मामले में अपने होंठ सी लेता है और तब तक नहीं बोलता जब तक देश के राष्ट्रपति इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करते। 

बीजेपी समर्थक कहते हैं कि यह एक फुंसी है जो कभी-कभार चेहरे पर आ निकलती है। लेकिनएक बड़े तबक़े का मानना है कि यह जो दादरी कांड हुआ, वह अचानक नहीं हुआ। भारत के चेहरे पर यह फोड़ा अचानक नहीं उभरा। भारत के ख़ून में नफ़रत का ज़हर जो पहले भी भरा जा रहा था, वह अब और तेज़ी से भरा जा रहा है और आगे और फोड़े निकल सकते हैं।

दोनों पक्षों में सोच का यही अंतर है। मैं दूसरे पक्ष के साथ हूं और मेरा मत है कि आप उनकी चिंताओं को इसलिए नहीं समझेंगे कि आप आमिर ख़ान नहीं हैं…कि आप मुसलमान नहीं हैं। आपके साथ वैसा कुछ नहीं होता जैसा उनके साथ होता है।

एक पार्टी से अलग राय रखने वालों को देशद्रोही कहा जाता है, बात बात पर पाकिस्तान जाने को कहा जाता है, एक व्यक्ति को नंगा करे बांध कर सिर्फ ईसलिये पीटा जाता है कि वो एक हिन्दू लड़की के साथ जा रहा था। अब यह असहिष्णुता नहीं तो क्या है, लेकिन आपको दिखती नहीं क्योंकि आप मुसलमान नहीं है।

एक वाक़िया मेरे दफ़्तर का है। एक मीटिंग हो रही थी जिसमें एक फ़ॉन्ट का रंग डिसाइड होना था। हरे और नीले में पर राय बंटी हुई थी। एक सज्जन नीले के पक्ष में थे। उनका तर्क था, ‘हम मुसलमानों का रंग क्यों चुनें?’ उस मीटिंग में एक मुसलमान भी था लेकिन सज्जन को उसका ख़्याल नहीं रहा। सोचिए, उसे कैसा लगा होगा यह सुनकर? अगर उसके ज़ेहन में यह ख़्याल आता है कि इस देश में उसके प्रति असहिष्णुता बढ़ी है तो वह क्या ग़लत सोचता है!

एक स्त्री कैसे इस देश में रहती है, घर, दफ़्तर या सड़क पर क्या-क्या सहती है, यह आप तब तक नहीं जान सकते जब तक आप ख़ुद एक औरत न हों। उसी तरह एक मुसलमान, एक दलित, एक पिछड़ा इस देश में क्या-क्या झेलता है, यह वही जान सकता है जो ख़ुद मुसलमान है, दलित है, पिछड़ा है। इसलिए सारे सवर्ण हिंदू भाइयों को तो यही लगता है कि देश में सबकुछ भलाचंगा है, सबकुछ ठीकठाक है ।

दिल्ली में हुए ऊबर टैक्सी कांड के बाद हर स्त्री किसी टैक्सी में रात में अकेले बैठने से डरती है कि कहीं इसका ड्राइवर भी वैसा ही न हो। क्या उसका डरना ग़लत है? क्या उसको नहीं डरना चाहिए? निश्चित तौर पर 99 प्रतिशत ड्राइवर अच्छे होंगे और वे ऐसा कोई ग़लत काम नहीं करेंगे लेकिन उनकी पहचान कैसे हो। इसलिए बेटियों के बाप को डर लगता है। 

किसी गांव में रहनेवाला मुसलमान कैसे निश्चिंत हो कि कल कोई भगवा जत्था उसके किचन की तलाशी लेने नहीं आएगा कि कहीं वहां गोमांस तो नहीं पक रहा? दफ़्तर में काम करनेवाला कोई मुस्लिम कैसे माने कि उसके साथ काम करनेवाले हिंदू साथी आपसी वार्तालाप में उसी तरह की बातचीत नहीं करते जैसे कि ऊपर बताए वाक़िए में सज्जन कर रहे थे।

इसलिए उनका शंकित होना लाज़िमी है। जब वे शंकित होते हैं और डरते हैं तो वे बस यही कहते हैं कि हमें पता चला है कि हिंदू भाईयों में से कुछ लोग हमसे घृणा करते हैं और इतनी घृणा करते हैं कि हमारी जान ले सकते हैं। अगर आप हिंदू हैं और आप उनसे वैसी घृणा नहीं करते तो आप जवाबी सवाल करते हैं कि क्या बेक़ार की बात करते हो, सबकुछ ठीकठाक है। लेकिन सच्चाई यही है और यह आप भी जानते हैं कि ऐसे लोग बहुत कम ही सही लेकिन इस देश में हैं और ऐसे लोग और ऐसी सोच इस देश में बढ़ती ही जा रही है।

अवार्ड लौटाने वाले बुद्धजीवी और बाक़ी सारे लोग यही कह रहे हैं। उनकी चिंताओं को समझिए।

नवभारत टाइम्स ऑनलाइन की न्यूज़ :-
http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/ekla-chalo/entry/aamir-khan-s-concerns-are-every-muslim-s-concern?utm_source=facebook.com&utm_medium=referral&utm_campaign=Nnagar241115

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