Monday 31 August 2015

एक मुसलमान वैज्ञानिक ने किया था कैमरे का अविष्कार

कैमरे का अविष्कार 1000
वर्ष पूर्व एक मुसलमान
वैज्ञानिक ने किया था?
यह बात बहुत ही कम लोगों को मालूम होगी कि
प्रतिदिन करोड़ों लोगों की ज़बान पर आने वाला
कैमरा शब्द अरबी के अल-क़ुमरा (छोटी अंधेरी
कोठरी) से बना है।
दस शताब्दियों पहले जन्म लेने वाले एक मुसलमान
विद्वान ने इसका अविष्कार किया था उन्ही की
खोज के आधार पर बाद में वर्तमान रूप में कैमरा बना।
उन्होंने एक अँधेरे कमरे में एक छेद किया हुआ था
ताकि उससे प्रकाश अंदर आए और वह प्रकाश एवं आँख
के बारे में शोध कर सकें।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक
संगठन यूनेस्को ने पेरिस में 19 जनवरी से शुरू हुए प्रकाश
एवं दृश्य तकनीक के वर्ष के उद्घाटन समारोह में इस
मुस्लिम विद्धवान को याद किया और उनके शोध
कार्यों की सराहना की।इस महान विद्वान एवं
वैज्ञानिक का नाम इब्ने हैसम है कि जिनका चित्र
इराक़ के केन्द्रीय बैंक ने नोट पर छपवाया है और
उनका नाम एक छोटे उपग्रह पर अंकित किया गया है
जिसकी खोज स्वीज़रलैंड के खगोलशास्त्री
स्टीफ़ानो स्पोज़ेटी ने 16 वर्ष पूर्व की थी।
वैज्ञानिकों ने इब्ने हैसम की सराहना के उद्देश्य से
इस उपग्रह का नाम अलहाज़ेन रखा है।अबू अली इब्ने
हैसम का जन्म सन् 965 में इराक़ के शहर बसरा में हुआ
था।वे दृश्य विज्ञान में बहुत दक्षता रखते थे और
उन्होंने एक अंधेरे कमरे में कैमरा के अविष्कार का
ताना-बाना बुन लिया था।
इतिहास में है कि इब्ने हैसम कभी भी अपना समय
बर्बाद नहीं करते थे और बहुत अधिक अध्ययन करते थे।
उन्होंने इराक़ की राजधानी में चिकित्सा
विज्ञान की तालीम प्राप्त की और एक दक्ष
चिकित्सक के रूप में सेवा शुरू की और आँख के एक
महान चिकित्सक बन गए।
तत्कालीन फ़ातेमी ख़लीफ़ा क़ायम बे अमरुल्लाह ने
जब उनकी प्रतिभा को पहचाना तो इब्ने हैसम से
अनुरोध किया कि नील नदी के पानी की कुछ इस
प्रकार व्यवस्था करें कि उससे कृषि में अधिक से
अधिक लाभ उठाया जा सके।
इब्ने हैसम ने अपनी 75 वर्षीय आयु में 237 किताबें
लिखीं। उनके विचारों एवं दृष्टिकोणों को आज भी
शोध कार्यों में उपयोगी माना जाता है।इब्ने हैसम
वह पहले वैज्ञानिक एवं चिकित्सक थे कि जिन्होंने
पहली बार दुनिया में आँख का ऑपरेशन किया और
उसके विभिन्न अंगों का उल्लेख किया।उन्होंने
साबित किया था कि प्रकाश ठोस पदार्थ पर पड़ने
के बाद आँख तक पहुंचता है और उसके परिणाम स्वरूप
आँख उस चीज़ को देख सकती है। इसी दृष्टिकोण के
आधार पर उन्होंने कैमरे के अविष्कार के लिए भूमि
प्रशस्त की।

Sunday 30 August 2015

औरंगज़ेब{रह.}; कब और क्यू हिंदू विरोधी लिखा...?


औरंगज़ेब{रह.} को सबसे पहले किसने, कब और क्यू हिंदू विरोधी लिखा?
इस समय फेसबूक पर औरंगज़ेब{रह.} के मुतअल्लिक हर तरफ चर्चा हो रही है जहाँ संघी उन्हे हिंदू विरोधी बनाने पे तुले है तो वही मुसलमान उनका रद्द कर रहे है और दोनो पक्ष अपनी बातो के लिये इतिहास के पन्नो से दलील भी निकाल कर ला रहा है लेकिन किसी ने इस बात पे तवज्जो नही दी की आख़िर कब से और किसने सबसे पहले औरंगज़ेब{रह.} को हिंदू विरोधी बनाने की कोशिश की और उसका क्या कारण था
वैसे तो मेरे क़ाबिल-ए-कद्र भाइयो ने औरंगज़ेब{रह.} पे लगाये गये सभी आरोपो का खूबसूरती के साथ जवाब दिया है इसलिये मैं उन आरोपो पे न जाते हुये आपके सामने ये तथ्य रखने की कोशिश कर रहा हू की औरंगज़ेब{रह.} को सबसे पहले किसने, कब और क्यू हिंदू विरोधी लिखा उसके लिखने का पसमंज़र क्या था...???
औरंगज़ेब{रह.} ने "31 जुलाइ 1658 से लेकर 3 मार्च 1707 तक" भारत पे शासन किया उनके शासक बनने से दो वर्ष पूर्व यानी की "1656 मे फ्रांस का फ्रांस्वा बर्नियर" नामी शख्स भारत आया जो की एक डाक्टर,पॉलिटिकल फिलास्फर तथा एक इतिहासकार था
शाह जहाँ की गद्दी पे बैठने से पहले औरंगज़ेब{रह.} का अपने भाई दाराशिकोह से युद्ध करना पड़ा और उस युद्ध मे उन्होने दाराशिकोह को बुरी तरह से हराया और शाह जहाँ के बाद मुगल शासक बने वैसे ये एक लंबी दास्तान है इस्पे मैं फिर कभी चर्चा करूँगा
अब आते है पोस्ट के लिखने के मक़सद की तरफ की सबसे पहले किसने,कब और क्यू औरंगज़ेब{रह.} को हिंदू विरोधी लिखा
जब फ्रांस्वा बर्नियर भारत आया तो उसने मुगल दरबार मे अपने कई दोस्त बनाये जिनमे "दाराशिकोह उसका सबसे घनिष्ट मित्र बना और दाराशिकोह का सबसे बड़ा दुश्मन था औरंगज़ेब आलमगीर" एक बात और याद रहे की फ्रांस्वा बर्नियर न सिर्फ़ दाराशिकोह का दोस्त बना बल्कि उसका पर्सनल डाक्टर भी बन गया
"Bernier's Travels in the Mogul Empire नाम से 1670 मे एक किताब लिखी" और इस किताब मे उसने औरंगज़ेब{रह.} के खिलाफ झूट का पुलिंदा गढ़ डाला सबसे पहले प्रश्न का उत्तर की किसने "औरंगज़ेब{रह.} के खिलाफ सबसे पहले पहले लिखा तो वो फ्रांस्वा बर्नियर था" और दूसरा प्रश्न की कब लिखा तो 1670 मे वैसे उसने इसके अलावा भी दो बुक लिखी लेकिन सबसे पहले उसने इसी बुक मे लिखा था और अब तीसरा प्रश्न की उसने ऐसा क्यू लिखा तो उसके दो कारण थे पहले का उत्तर मैं पहले ही दे चुका हू की वो दाराशिकोह दोस्त था और दूसरा कारण जो महत्वपूर्ण था और इसी कारण ही पहला कारण भी था यानी की इसी कारण वो दाराशिकोह का दोस्त बना था
तीसरा और सबसे मत्वपूर्ण कारण जो फ्रांस्वा बर्नियर को औरंगज़ेब{रह.} के खिलाफ लिखने पे मजबूर किया वो ये था की उसका मानना था की "दाराशिकोह ईसाइयत से प्रभावित है" और वो अपनी बुक मे पाठको को ये धारणा{Notion} देता है की वो उसे ईसाई ही समझे और "वो दाराशिकोह के ईसाइयत की तरफ झुकाव के लिये रेवरेंड बुज़ी को करार देता है क्यूंकी रेवरेंड बुज़ी ने दाराशिकोह को न सिर्फ़ शिक्षा दी थी बल्कि उसे ईसाई तोपची{Christian Artilleryman} भी मोहय्या कराये जिससे उसका तोपख़ाना तय्यार हुआ"
"आर्चिबॉल्ड कॉन्स्टेबल" और "फारेंसिक काट्रौ" ने "भारत मे मुगल खानदान की तारीख" नाम से बुक लिखी जो 1826 मे लंदन से पब्लीश हुई उसमे ये कहते है की "अगर रेवरेंड बुज़ी के मशवरो पे अमल किया जाता तो पूरी उम्मीद थी की ईसाइयत दिल्ली के तख्त पे बिराजमान हो जाती"
इससे आप अंदाज़ा लगा सकते है की उन्हे दाराशिकोह के ईसाई होने पे कितना यकीन था और उसके ज़रिये भारत के गद्दी पे बैठने का जो सपना था उसे तोड़ा औरंगज़ेब ने दारा शिकोह को 1658 मे आगरा मे शिकस्त दे कर जिसके बाद जो उन्हे भारत मे ईसाइयत की हुक्मरानी के सपने थे वो सपने ही रह गये और यही मुख्य कारण था औरंगज़ेब{रह.} के विरुद्ध लिखने का ताकि उन्हे एक विवादित व्यक्ति बना कर अपनी शाजिस की नाकामी का बदला लिया जा सके ताकि लोग उनके विवादित व्यक्तित्त्व के चक्कर मे उस नाकाम शाजिस को भूल जाये जो उन्होने दारा शिकोह के रूप मे दिल्ली पे ईसाई हुक्मरानी के रूप मे गढ़ी थी

قوت حافظہ کا راز!

تابعین میں سے ایک حاکم تھا.. مروان... اسے ایک دفعہ خیال آیا کہ ابو ہریرہ رضی اللہ عنہ بہت احادیث کی روایت کرتے ہیں.. آیا یہ روایات من و عن وہی ہیں یا بالمعنی ہیں.. یعنی ایک یہ ہوتا ہے. کہ میں نے آپ کی بات سنی اور اپنے لفظوں میں. ہو بہو. مفہوم آگے ادا کر دیا.. اس کو روایت بالمعنی کہتے ہیں.. یعنی. معنی وہی مگر الفاظ اپنے.

ایک دوسری صورت ہوتی ہے کہ جو الفاظ سنے من و عن اسی طرح آگے بیان کر دیے.. یعنی الفاظ بھی وہی اور معنی بھی وہی. اس کو روایت باالمتن کہتے ہیں..

مروان کے ذہن میں اشکال پیدا ہوا. یہ تو اس کو پتہ تھا کہ یہ جو بات کرتے ہیں سچی ہے. اس میں اس کو شبہ نہیں تھا. اس کے دل میں اشکال یہ آیا کہ یہ اپنے الفاظ میں مفہوم بیان کرتے ہیں.. یا واقعی الفاظ بھی وہی اور معنی بھی وہی ہوتا ہے.. اس نے سوچا چلو. اس کا پتہ کر لیتے ہیں. اب وقت کے بادشاہ کی اپنی ترتیب ہوتی ہے ہر کام کی. اس نے ترتیب یہ بنائی کہ سیدنا ابو ہریرہ رضی اللہ عنہ اور بہت سارے دوسرے حضرات کو کھانے کی دعوت دی، بہت سارے صحابہ کرام اور بھی تھے..

چنانچہ جب کھانے سے فارغ ہوئے تو اس نے سیدنا ابو ہریرہ رضی اللہ عنہ سے یہ بات کہی کہ آپ نبی علیہ السلام کی بہت باتیں سناتے ہیں... ہمیں بھی آج آپ صلی اللہ علیہ و سلم کی باتیں سنایئے..

ساتھ ہی ایک پردہ تھا اس کے پیچھے اس نے دو تیز لکھنے والے کاتب بٹھائے ہوئے تھے. اور کسی کو پتہ نہیں تھا کوئی یہاں ہے یا نہیں..
تو سیدنا ابو ہریرہ رضی اللہ عنہ نے سینکڑوں احادیث روایت فرمائیں.. لمبی محفل تھی.. جو کچھ وہ کہتے رہے. پردہ کے پیچھے دو بندے لکھتے رہے. دو بندے اس لئے بٹھائے کہ اگر کوئی غلطی لگے تو دوسرا ٹھیک ٹھیک لکھ لے، آپس میں تقابل بھی کرسکیں، لہٰذا پوری محفل کی روداد انہوں نے قلم بند کی. کسی کو پتہ ہی نہیں تھا. کانوں کان خبر ہی نہیں..

اس کے بعد ایک سال گزر گیا. ایک سال بعد مروان نے دوبارہ حضرت ابو ہریرہ رضی اللہ عنہ کو دعوت دی، کھانے پہ بٹھایا، وہ جو دو بندے پچھلے سال والے تھے. ان کو پھر پردے کے پیچھے بٹھایا اور ان کو سمجھایا کہ میں عرض کروں گا کہ ہمیں پچھلے سال والی حدیثیں سنائیں.
اور جب وہ سنائیں تو تم نے جو پچھلے سال کا لکھا ہوا ہے اس کے ساتھ (موازنہ) کرتے جانا ہے کہ کہاں کہاں فرق پڑتا ہے صاف ظاہر ہے کہ پچھلے سال کی کئی باتیں اس سال تو یاد نہیں ہوتیں. یہ اس نے چیک کر نے کا. ایک ڈھنگ ایک طریقہ نکالا.

چنانچہ جب کھانے سے فارغ ہوئے تو اس نے سیدنا ابو ہریرہ رضی اللہ عنہ سے عرض کیا کہ حضرت جو پچھلے سال آپ نے حدیثیں سنائی تھی نا.. وہ پھر سنا دیجئے.

سیدنا ابو ہریرہ رضی اللہ عنہ نے وہی حدیثیں سنانا شروع کیں. سینکڑوں وہی احادیث اس محفل میں سنائیں. کاتب حضرات نے گواہی دی کہ کہیں ایک لفظ کا فرق بھی نہیں تھا. یہ قوت حافظہ ان کو اللہ تعالٰی نے عطا فرمائی تھی.

یہ نعمت اللہ تعالٰی طلبہ کو بھی دیتے ہیں بس اس میں ایک ہی چیز رکاوٹ بنتی ہے اور اسے کہتے ہیں.. گناہ.. جو طالب علم تقوی اور پرہیز گاری کی زندگی گزارتا ہے اس کی قوت حافظہ کو اللہ تعالٰی بہت بہتر کردیتے ہیں. بس. (فوٹو گرافک میموری) بن جاتی ہے جو کچھ سنتا ہے. اس کی چھاپ لگ جاتی ہے، ایسی یاد داشت عطا فرمادیتے ہیں. اور یہی چیز حضرات محدثین میں تھی..

دعا ہے اللہ رب العزت ہم سب کو گناہوں سے بچنے کی توفیق عطا فرمائے

تقوی اور پرہیز گاری والی زندگی عطا فرمائے

اور ہم سب کا حافظہ قوی فرمائے آمین ثم آمین
ماخوذ
خطبات ذوالفقار

Saturday 29 August 2015

کون تھے علامہ سیدقطب شہید رحمة اللہ علیہ؟

ایس اے ساگر
ان دنوں سماجی رابطے کی ویب سائٹوں پر ایک پوسٹ گردش کر رہی ہے: 
’وہ لوگ امریکی اور اسرائیلی اسلام چاہتے ہیں ایسا اسلام جس میں وضو کس طرح ٹوٹے اس کے بارے میں تو پوچھا جائے لیکن مسلمانوں کے سیاسی سماجی اقتصادی حالات کے بارے میں کچھ نہ پوچھا جائے....‘یہ جملے علامہ سید قطب شہید رحمة اللہ علیہ سے منسوب ہیں۔تعلیمی نصاب میں اغیار کے تسلط کی بدولت ایسے لوگوں کی کمی نہیں ہے جنہیں یہ بھی علم نہیں کہ سید قطب کا اصل نام سید ہے جبکہ قطب ان کا خاندانی نام ہے۔ ان کے آباواجداد اصلاً جزیرة العرب کے رہنے والے تھے۔ ان کے خاندان کے ایک بزرگ وہاں سے ہجرت کرکے بالائی مصر کے علاقے میں آباد ہوگئے تھے۔کیا جاتا ہے کہ سید قطب کی پیدائش 9 اکتوبر 1906میں مصر کے ضلع اسیوط کے موشا نامی گاو ¿ں میں ہوئی۔ ابتدائی تعلیم گاو ¿ں میں اور بقیہ تعلیم قاہرہ یونیورسٹی سے حاصل کی اوربعد میں یہیں پروفیسر ہوگئے۔ کچھ دنوں کے بعد وزارت تعلیم کے انسپکٹر آف اسکولز کے عہدے پر فائز ہوئے اور اس کے بعد ’اخوان المسلمین‘سے وابستہ ہوگئے اور آخری دم تک اسی سے وابستہ رہے۔
خاندانی پس منظر:
سید قطب کا کنبہ ایک زمیندار گھرانہ تھااورآپ کے والد محترم کاشماراپنے خاندان اورعلاقہ کے بڑے بزرگوں میں ہوتاتھا۔جملہ سیاسی وسماجی و انتظامی مسائل میں آپ کے والدبزرگوار کی رائے کوایک طرح سے فیصلہ کن مقام حاصل تھا۔گویاقیادت کی صلاحیت سیدقطب کوخاندانی وراثت سے ہی ملی تھی۔آپ کے والد محترم کی ایک خاص بات ہفتہ وار مجالس ہیں جن میں اس وقت کے سیاسی وقومی معاملات کوقرآن کی روشنی میں سمجھاجاتاتھا۔اس طرح گویاقرآن فہمی بھی آپ کو اپنے باباجان کی طرف سے علمی وراثت میں ملی۔شاید اسی کے باعث لڑکپن سے ہی روایتی ملائیت کے خلاف ان کے اندر شدید نفرت کی آگ بھڑک اٹھی تھی،کیونکہ روایتی مذہبی تعلیم کے مدارس قرآن مجید کی انقلابی تعبیر سے بہت بعیدہوتے ہیں ،الا ماشااللہ۔وہ بچپن سے ہی کتب کے بہت شوقین تھے،اپنی جیب خرچ سے پیسے بچاتے ہوئے اپنے ہی گاو ¿ں کے کتب فروش ’امصالح‘سے کتابیں خرید لیتے تھے اور بعض اوقات شوق مطالعہ انہیں ادھار پر بھی مجبور کر دیتاتھا۔بارہ سال کی عمرمیں ان کے پاس پچیس کتابوں کی لائبریری مرتب ہو چکی تھی،گویا امت مسلمہ کا یہ یکے از مشاہیر اپنی جسمانی عمر سے دوہری نوعیت کی ذہنی و فکری عمرکا حامل تھا۔اس چھوٹی عمر میں بھی لوگ ان سے اپنے سوالات کیاکرتے تھے اور بعض اوقات بڑی عمرکے لوگوں کی ایک مناسب تعدادان سے اجتماعی طورپرکسب فیض بھی کرتی تھی تاہم خواتین کوان کی اسکول کی چھٹی کا انتظارکرناپڑتاتھااور خواتین سے خطاب کے دوران ان پر شرم غالب رہتی تھی۔
ابتدائی حالات:
ابتدائے شباب میں وہ قاہرہ روانہ ہوگئے اور 1929سے1933کے دوران برطانوی تعلیمی اداروں سے عصری تعلیم حاصل کی۔اپنی عملی زندگی کا آغاز ایک معلم کی حیثیت سے کیا۔پیشہ ورانہ زندگی کی ابتدامیں ہی ادیب اور نقاد ہونا آپ کی پہچان بن گئی۔اگرچہ کچھ ناول بھی لکھے لیکن زیادہ تر ادیبوں ،شاعروں اور عربی ناول نگاروں کی مددکرتے رہے۔علوم و معارف میں ترقی آپ کی پیشہ ورانہ ترقی کا باعث بھی بنی اور1939میں مصر کی وزارت تعلیم جس کا مقامی نام ’وزارت معارف‘ہے ،میں انتظامی عہدوں پر تعینات ہو کراعلی افسر بن گئے۔1948تا1950آپ نے امریکہ میں قیام کیاجس کا مقصد وہاں کے تعلیمی نظام سے آگاہی حاصل کرنا تھا۔سیدقطب شہیدکاکسی بھی مغربی ملک میں یہ پہلا دورہ تھا۔نام نہادسیکولرمعاشرہ کی قباحتیں آپ نے بہت گہرائی سے محسوس کیں اور خاص طورپر مغربی دنیاکا جوروشن چہرہ سارے عالم کے سامنے ہے اس کے اندرون میں چنگیزسے تاریک تر تاریکی آپ نے بنظر خود مشاہدہ کی۔دل میں موجود ایمان بھڑک اٹھااور اسی دورہ کے موقع پر آپ کی پہلی شہرہ آفاق تصنیف’العدل الاجتماعیہ فی الاسلام‘1949میں شائع ہوگئی۔امریکہ میں دوسالہ قیام کے دوران کے تاثرات اور مشاہدات بھی’امریکہ ،جو میں نے دیکھا‘کے عنوان سے کتاب میں شائع ہوئے۔حضرت علامہ اقبال رحمة اللہ علیہ کی طرح انتہائی دیانتداری سے سیدقطب شہید رحمة اللہ علیہ نے امریکی معاشرے کا تجزیہ پیش کیا،جہاں خامیوں اور کمزوریوں پر تنقید کی جبکہ اس معاشرے کی خوبیوں کوبھی واضح کیا۔
آزمائشیں:
1950کے آغاز سے ہی اس ذہین انسان کو مذہب نے اپنی طرف کھینچ لیااورسید قطب شہید رحمة اللہ علیہ نے ’اخوان المسلمین‘میں شمولیت اختیارکرلی۔ابتداََآپ کی علمی استعدادکے باعث کے ’اخوان المسلمین‘کے ہفتہ وار رسالے کامدیرمقررکیاگیا،بعد میں وہ ’اخوان المسلمین‘کے مرکزی ذمہ دار برائے نشرواشاعت بنادیے گئے اورپھرا ن کاخلوص اور تقویت ایمان انہیں ’اخوان المسلمین‘کے اعلی ترین مشاورتی ادارے کی رکنیت تک لے آئے۔ان دنوں جمال عبدالناصرنے حکومت کے خلاف تحریک چلارکھی تھی ابتداََ’اخوان المسلمین‘اور جمال عبدالناصر کے تعلقات بہت اچھے رہے تھے اور ایک بار تو جمال عبدالناصرخود چل کرسیدقطب شہید کے گھربھی گئے تاکہ انقلاب کی کامیابی کیلئے تفصیلی منصوبہ تیارکیاجائے،بعد میں بارہ بارہ گھنٹے طویل نشستوں میں جزیات پر بھی بحث کی جاتی رہی اوراس دوران سیدقطب شہیدکو آنے والی حکومت میں وزارتوں کی پیشکش بھی کی جاتی تھی۔جمال عبدالناصرکے ان اقدامات کے باعث ’اخوان المسلمین‘کی اکثریت بہت خوش ہو گئی کہ شاید اب نفاذاسلام کی راہ ہموار ہو رہی ہے۔1952کے دوران جمال عبدالناصرنے ایک بغاوت کے ذریعے مصری حکومت کو چلتاکردیااورخود اقتدارکے ایوانوں پرقابض ہوگئے اورنفاذ شریعت کے تمام وعدوں سے منحرف بھی ہو گئے۔ بہت جلد جمال عبدالناصر کو سیکولرازم کی روایتی بدعہدی نے ’اخوان المسلمین‘سے بہت دور کردیاکہ مسلمانوں کو پہلے دن سے ہی ’لکم دینکم ولی دین‘کا سبق پڑھادیاگیاتھااور اسلام اورسیکولرازم اکٹھے نہ چل سکے۔اس کے باوجود بھی ’اخوان المسلمین‘عوام کے اندر نظریاتی اور خدمت خلق کاکام کرتی رہی اور عوام الناس میں مقبول تر ہوتی رہی۔بہت جلدمصر کے سیکولرحکمرانوں کیلئے ’اخوان المسلمین‘کاوجودہی ناقابل برداشت ہوگیاااور1954کے دوران بغاوت کے جھوٹے الزامات کے تحت سیدقطب شہید سمیت ’اخوان المسلمین‘کے ہزارہاکارکنوں اور مقتدررہنماو ¿ں کو قیدوبندمیں ڈال دیاگیااور انہیں بدترین تشدداور انتہائی غیراخلاقی اور غیرانسانی بہیمانہ مارپیٹ کانشانہ بنایا گیاکہ سیکولرازم کویہی رویہ ہی زیب دیتاتھا۔
عدالتی شکنجہ:
تین سال کی طویل مدت تک جب طاغوت اپنی پوری کوشش کے باوجود ’اخوان المسلمین‘کے پائے استقامت میں لغزش پیدانہ کرسکاتو استعمار کی رگیں ڈھیلی پڑ گئیں اور سیدقطب شہیدرحمة اللہ علیہ کومحدود نقل و حرکت اور لکھنے کی اجازت مل گئی۔مصر میں ’فی ظلال القرآن‘ پس دیوار زنداں سے منظر عام پر آئی۔آہنی سلاخون کا دوسراعرق ’معالم الطریق‘کے عنوان سے امت کو میسرآیا۔اب تک ان کتب کے بے شمار طباعتیں اور کتنی ہی زبانوں میں ترجمے ہو چکے ہیں۔1964کے دوران انہیں عراق کے صدرعبدالسلام عارف کی سفارش پر رہاکردیاگیا۔یہ ایک اورامر تعجب ہے کہ پاکستان اور مصر کے مشاہیرکو عالمی حمایت تو حاصل ہوتی ہے لیکن اپنے ہی وطن کے حکمران ان کی نہایت نا قدری پر ہی کمربستہ رہتے ہیں۔محض آٹھ ماہ کی مختصرمدت کے بعد ہی انہیں ’معالم الطریق‘جیسی کتاب لکھنے کے جرم میں دھر لیاگیاجبکہ اس مرد مجاہد نے موت کی آنکھوں میں آنکھیں ڈال کرعدالت میں اپنی تحریرکردہ کتاب پرکسی طرح کامعذرت خواہانہ رویہ اختیارکرنے کی بجائے ڈنکے کی چوٹ پراپنے موقف کے حق میں پرزوردلائل پیش کئے۔
کیاہے ’معالم الطریق‘میں؟
حالانکہ ’معالم الطریق‘12 ابواب پر مشتمل 160صفحات کی مختصرسی کتاب ہے ،لیکن محققین کے مطابق گزشتہ صدی میں عربی زبان میں اس سے عمدہ کتاب شاید نہیں لکھی گئی۔اس کتاب میں امت کو جھنجوڑاگیاہے کہ قرآن مجیدکی فراہم کردہ بنیادوں پرایک نئی فکراور نئے معاشرے کاقیام عمل میں لایا جائے۔اس کتاب کے مضامین کافی حد تک علامہ محمداقبال رحمة اللہ علیہ کے خطبات ’فکراسلامی کی تجدیدنو‘سے ملتے جلتے ہیں۔سیدقطب شہید کی بنیادی اٹھان توادیب اور شاعرکی حیثیت سے ہی تھی اور قرآن مجیدجیسی الہامی کتاب میں بھی صرف ایک چیلنج ہے اور ادیبوں اور شاعروں کوہے کہ اس جیسی کوئی کتاب یاسورة یاآیت ہی بناکردکھادو۔ مصر کی تاریخ گواہ ہے کہ جب ادب و نقد اورقرآن مجیدیکجا ہوگئے تو’معالم الطریق‘جیسی مختصر کتاب سے ہی باطل شکست کھاگیا۔سیکولرازم جیسے انسان دشمن نظریہ کی عدالتوں سے انصاف کی توقع رکھناگویااپنے آپ کو دھوکہ دینے کے مترادف ہے ۔
گرفتاری:
جمال ناصر کے تاریک دور آمریت میں کئی بار آپ کو پابند سلاسل کیا گیا۔ اخوان المسلمین سے آپ کی وابستگی مصری حکومت کو بہت کھٹکتی تھی۔جمال ناصر کے دور میں جب آپ کو گرفتار ہوئے تقریبا 10 سال ہوچلے تھے۔ مصری حکومت نے یہ پیشکش کی کہ آپ چند سطور لکھ دیں جن میں مصری حکومت سے معافی کی درخواست کی گئی ہو آپ نے کہا کہ’مجھے تعجب ہوتا ہے ان لوگوں پر جو یہ کہتے ہیں کہ باطل سے معافی مانگ لے۔ اگر میری گرفتاری قدرت کی طرف سے ہے تو میں اسی میں خوش ہوں اور اگر میری گرفتاری باطل کی طرف سے ہے تو میں باطل سے رحم کی بھیک مانگنے کیلئے ہرگزتیار نہیں ۔‘ اس کے بعد آپ پر ظلم و ستم کا سلسلہ مزید تیز کردیا گیا۔
شہادت:
تاریخ شاہد ہے کہ دور غلامی کے بدترین اثرات میں سے ایک یہ بھی ہے کہ قوموں کو ماضی کے صفحات میں دفن کر کے تو اس دنیاسے ان کا وجود نابود کر دیتاہے۔لیکن امت مسلمہ تاریخ انسانی وہ محترم و متبرک گروہ ہے جس کی کوکھ دور غلامی میں بھی علمیت و قیادت کے بارآورثمرات سے سرسبزو شاداب رہی ہے۔سیدقطب شہیداس امت وسط کے وہ مایہ ناز سپوت ہیں جنہوں نے دورغلامی کے پروردہ استعمار کے سامنے سپرڈالنے کی نسبت شہادت کے اعلی ترین منصب کو پسند کیا۔سیدقطب شہیدمصر کے نامور ماہر تعلیم،مسلم دانشوراورعربی کے معروف شاعر تھے۔’اخوان الملمون‘سے وابستگی ان کیلئے جہاں باشعورمسلمان حلقوں میں تعارف کا باعث بنی وہاں امت مسلمہ کو ذہنی طور پردورغلامی سے نکالنے کیلئے انہوں نے قلم کے ہتھیارکو بھی استعمال کرنا شروع کر دیا۔مصر کے غلامی زدہ سامراج کوسیدقطب کی قلمی کاوشوں کے نتیجہ میں مسلمانوں کاباشعورہونا پسند نہ آیااوروقت کے طاغوت نے اس بطل حریت کو راہی ملک عدم کردیا۔انبیاکرام علیہم السلام کے بعدانسانی تاریخ میں یہ آسمان شاید پہلی مرتبہ دیکھ رہاتھا کہ ملزم کس شان سے نہ صرف اعتراف جرم کررہاہے بلکہ اپنے جرم کے حق میں مضبوط ترین دلائل بھی بیان کررہا ہے۔اسلام کے اس عظیم مفکر ، داعی او ر مفسر قرآن کو ان کی شہرہ آفاق کتاب معالم علی الطریق لکھنے پر مصری حکومت کے خلاف سازشیں کرنے کے بے بنیاد الزام میں گرفتار کرلیا گیا۔چنانچہ پہلے سے طے شدہ منصوبہ کے مطابق سیدقطب شہید رحمة اللہ علیہ سمیت چھ اور اسلامیان مصرکو سزائے موت سنا دی گئی اور 25 اگست1966کو پھانسی دے دی گئی۔آپ نے پھانسی کے پھندے پر جھول کرابدی حیات جاوداں کے راستہ پر ہمیشہ کیلئے کامیاب و کامران ہو گئے۔
ادبی خدمات:
سید قطب شہید مصری معاشرہ کے اندر ایک ادیب لبیب کی حیثیت سے ابھرے۔ سیاسی اور اجتماعی نقاد کے عنوان سے انہوں نے نام پیدا کیا۔ ان کی اہم ترین تصنیف قرآن کریم کی تفسیر ہے جو ’فی ظلال القرآن‘کے نام سے عربی میں لکھی گئی ہے اور اس کا ترجمہ بشمول اردو کئی زبانوں میں ہوچکا ہے۔
تصانیف:
طفل من القریة (گاو ¿ں کا بچہ)،
المدینة المسحورة (سحر زدہ شہر )،
النقد الادبی ،لتصوةر الفنی فی القرآن،
مشاھد القیامة فی القرآن ،
معالم علی الطریق،
المستقبل لھذا الدین،
ھذا الدینفی ظلال القرآن (تفسیر قرآن)،
کیف وقعت مراکش تحت الحماہ الفرنسیہ؟،
الصبح یتنفس،
قیمہ الفضیلہ بین الفرد والجماعہ،حدثینی،
الدلالہ النفسیہ للالفاظ والتراکیب العربیة،
ھل نحن متحضرون؟،
ہم الحیاة،
وظیفة الفن والصحافةالعدالة الاجتماعیہ ،
شیلوک فلسطین او قضیہ فلسطین،
 این انت یا مصطفی کامل؟
ھتاف الروح،
تسبیح،
فلنعتمد علی انفسنا،
ضریبة الذل،
این الطریق؟
300815 kaun the allama sayyid qutb shaheed rahmatullah alaih by s a sagar



ٹیسٹ ٹیوب بے بی کا کیا حکم ہے؟

12-ذی قعدہ - 1436- ھجری
28-اگست- 2015 -عیسوی
مسئله نمبر (219)
سوال: کیا ٹیسٹ ٹیوب کے ذریعے سے عورت کو حمل ٹھہرانا جائز ہے،
یعنی جب بعض عورتوں کو بچہ پیدا نہیں ہوتا تو خود اس کے شوہر یا کسی دوسرے آدمی کا نطفہ اور مادہ منویہ لے کر انجکشن وغیرہ کے ذریعے سے عورت کی بچہ دانی میں رکھا جاتا ہے، تاکہ حمل ٹھہر جائے، تو کیا اولاد کے حصول کیلئے یہ طریقہ جائز ہے...؟ جس کو انگریزی میں ٹیسٹ ٹیوب بے بی یا آئی وی ایف کہا جاتا ہے،

الجواب حامدا ومصلیا ومسلما:
آج کل میڈیکل سائنس کی ترقی کے نتیجے میں بہت سے نئے مسائل جنم لے رہے ہیں، نیز علاج کے نام پر بہت سی ایسی شکلیں مارکیٹ میں متعارف کی جارہی ہیں، جن میں سے بعض تو شرعی اعتبار سے قطعی حرام اوراسلام کے بنیادی اصول سے متصادم ہیں اور ان شکلوں کو طبی کیمپ، اخبارات اور دیگر ذرائع کے توسط سے خوب شہرت دی جارہی ہے، نتیجتاً بہت سے مسلمان بھی ان کو اپنارہے ہیں، ان جدید شکلوں میں سے ایک شکل آئی وی یف
(in vitro fertilization=ivf) ہے، اس سے مراد تولید کے مصنوعی ذرائع ہیں۔ آج کل اس کی درج ذیل صورتیں رائج ہیں:
(۱)      نطفہ شوہرکاہو اور کسی ایسی عورت کا بیضہ لیا جائے، جو اسکی بیوی نہ ہو پھر یہ لقیحہ اس شوہر کی بیوی کے رحم میں رکھا جائے۔
(۲)      نطفہ شوہر کے سوا کسی اور کا ہو اور بیضہ بیوی کا ہو اور اسی کے رحم میں رکھا جائے۔
(۳)     شوہر کا نطفہ اور بیوی کا بیضہ لے کر بیرونی طور پر ان کی تلقیہ کی جائے اور پھر یہ لقیحہ دوسری عورت کے رحم میں رکھا جائے، جسے مستعار رحم کہا جاتا ہے۔
(۴)     کسی اجنبی شخص کے نطفہ اور اجنبی عورت کے بیضے کے درمیان بیرونی طورپر تلقیہ کی جائے اور لقیحہ بیوی کے رحم میں رکھا جائے۔
(۵)      شوہر کا نطفہ اور بیوی کا بیضہ لے کر بیرونی طور پر تلقیہ کی جائے پھر لقیحے کو اسی شوہر کی دوسری بیوی کے رحم میں رکھا جائے۔
(۶)      نطفہ شوہر کا اور بیضہ اس کی بیوی کا ہو، ان کی تلقیہ بیرونی طور پر کی جائے اور پھر شوہر کی اسی بیوی کے رحم میں رکھا جائے جس کا بیضہ لیاگیا ۔
(۷)     شوہر کا نطفہ لے کر اس کی بیوی کے مہبل یا رحم میں کسی مناسب جگہ پر طبی آلے کی مدد سے رکھ دیا جاتا ہے، پھر اسی جگہ بارآوری کی جاتی ہے۔
          مذکورہ پانچ شکلوں میں تو اجانب کے مادے کا باہم اختلاط یا اجنبیہ کے رحم سے استفادہ ہوتا ہے، جو بہ حکمِ زنا ہونے کی وجہ سے قطعاً ناجائز ہے، احکامِ شرعیہ سے متعلق تھوڑی سی معلومات رکھنے والا شخص بھی ان کے ناجائز ہونے میں کوئی تأمل نہیں کرے گا؛ البتہ آخرالذکر تین شکلوں میں چوں کہ غیرکے مادے سے استفادہ نہیں ہوتا ہے، جس کی وجہ سے کچھ غلط فہمیاں پائی جاتی ہیں؛ اس لیے زیر نظر تحریر میں ان تینوں شکلوں سے متعلق حکمِ شرعی بیان کرنے کی کوشش کی گئی ہے؛ تاکہ اہلِ علم کے لیے غور کرنا آسان ہو۔
          شریعت کے اصول اور فقہائے کرام کے کلام کی رو سے یہ شکلیں بھی جواز کے دائرے میں نہیں آتیں؛ بلکہ دیگر پانچ شکلوں کی طرح یہ شکلیں بھی ناجائز اور حرام ہیں۔ 
( ١): ایک تواس لیے کہ ان طریقوں کو اپنانے میں خاتون کا سترِ غلیظ یعنی ناف سے لے کر گھٹنے تک کا حصہ اجنبی ڈاکٹروں، بلکہ بسا اوقات معاونین اور ڈاکٹروں کی ایک ٹیم کے سامنے کھولنا تقریباً لازمی ہے، جب کہ عورت کے لیے ستر کا یہ حصہ نہ مرد کے سامنے کھولنا جائزہے، نہ عورت کے سامنے۔
اور جو عورتیں ان طریقوں کو اپناتی ہیں ان کوکوئی ایسی جسمانی تکلیف نہیں ہوتی، بلکہ یہ تو محض جلبِ منفعت اور حصولِ اولاد کے لیے کرتی ہیں،
جبکہ ارتکابِ حرام کی گنجائش ضرورتِ شدیدہ کے وقت ہوتی ہے، نہ کہ محض حصول منفعت کے لیے۔
بعض معاصرین نے تحفة الفقہا کی ایک عبارت سے اس مسئلے پر استدلال کیا ہے،
وَلاَ یُبَاح الْمس وَالنَّظَر الی مَا بَین السّرَّة وَالرکبَة الاَّ في حَالة الضَّرُورَة بأن کَانت الْمَرْأةُ خَتّانةً تختن النّساء أو کَانت تنظر الَی الْفرج لمعْرفة الْبکارة أو کَانَ في موضع العورة قرح أو جرح یحْتَاج الی التَّداوی وَان کانَ لا یعرفُ ذلک الاّ الرجل یکشف ذلک الخ (تحفة الفقہاء ج۳ ص۳۴ کتاب الاستحسان․ الناشر: دارالکتب العلمیة، بیروت۔ لبنان)
اس میں مولف نے عورت کے ستر غلیظ کو دیکھنے اور چھونے کی اجازت محض ختنہ کے لیے دی ہے، جب کہ عورت کا ختنہ نہ تو سنت ہے اور نہ ہی واجب،
لیکن یہ استدلال صحیح نہیں،
( ١): اس لیے کہ تحفة الفقہا کی محولہ عبارت کو دیگر فقہاء نے نہیں لیا ہے؛ بلکہ بدائع الصنائع جو درحقیقت تحفة الفقہاء کی شرح ہے، اس میں اگرچہ اس عبارت کے بیش تر حصے کو لے لیا؛ لیکن اس جزیہ (یعنی ختنہ کے لیے عورت کے ستر کو دیکھنا اور چھونا) کو نہیں لیا
ملاحظہ فرمائیں،
"ولا یجوز لہا أن تنظر ما بین سرتہا الی الرکبة الا عند الضرورة بأن کانت قابلة فلا بأس لہا أن تنظر الی الفرج عند الولادة․ وکذا لا بأس أن تنظر الیہ لمعرفة البکارة في امرأة العنین والجاریة المشتراة علی شرط البکارة اذا اختصما وکذا اذا کان بہا جرح أو قرح في موضع لا یحل للرجال النظر الیہ فلا بأس أن تداویہا اذا علمت المداواة فان لم تعلم تتعلم ثم تداویہا فان لم توجد امرأة تعلم المداواة ولا امرأة تتعلم وخیف علیہا الہلاکُ أو بلاء أو وجع لا تحتملہ یداویہا الرجل لکن لا یکشف منہا الا موضع الجرح ویغض بصرہ ما استطاع"
(بدائع الصنائع في ترتیب الشرائع ج۴ ص۶۹۹، زکریا، دیوبند)

   
(۲): مزید یہ کہ جزئیہ مذکورہ علماء کے نزدیک مفتی بہ ہے بھی نہیں ہے، اس لیے کہ فقہائے کرام نے صراحت کی ہے کہ اگر کوئی مسلمان بچہ بالغ ہوجائے اور کسی وجہ سے ختنہ نہ ہوسکا، تو بالغ ہونے کے بعد اس کا ختنہ نہ کرایا جائے اور اس کی وجہ یہ لکھی کہ ختنہ سنت ہے، جب کہ ستر چھپانا فرض ہے، یعنی تحصیل سنت کے لیے ترک فرض کا ارتکاب نہیں کیا جائے گا،
چنانچہ مجموعہ فتاوی میں ذخیرہ کے حوالے سے منقول ہے: 
فی الذخیرة أنَّ الْمُسْلِمَ یُخْتَنُ مَالَمْ یَبْلُغْ فَاذَا بَلَغَ لَمْ یُخْتَنْ، لِأنَّ سَتْرَ عَوْرَةِ الْبَالِغِ فَرْضٌ وَالْخِتَانُ سُنَّةٌ فَلاَ یُتْرَکُ الْفَرْضُ لِسُنَّةٍ وَالْکَافِرُ اذَا أسْلَمَ یُخْتَنُ بِالْاِتِّفَاقِ لِمُخَالَفَتِہ دِیْنَ الْاسْلاَمِ وَہُوَ بَالِغٌ․
(ج۳ ص۹۶ بحوالہ فتاویٰ رحیمیہ ج۱۰ ص۱۳۴ کتاب الحظر والاباحة، دارالاشاعت)

تو جب مردوں کا ختنہ جسے تقریباً ضروری اور شعارِ اسلام سمجھاجاتا ہے۔ وہاں اس کی اجازت نہیں دی گئی تو عورت کا ختنہ جو سنت بھی نہیں، اس کے لیے کیسے اجازت دی جاسکتی ہے؟
( ٢)عدمِ جواز کی دوسری بڑی وجہ اختلاطِ نسب (جس کی شریعت نے بہت تاکید کی ہے) کا اندیشہ ہے؛ اس لیے کہ ٹیسٹ ٹیوب بے بی سے متعلق جانکاری رکھنے والوں کی تحریریں پڑھنے سے پتہ چلتا ہے کہ اس عمل کو انجام دینے والے ڈاکٹرس، عورت کا بیضةُ المنی اور مردوں کی منی لے کر باہم ملانے کے بعد ایک ٹیوب میں آبیاری کرتے ہیں، جس کی مدت کم وبیش دو یا چار دن ہے؛ پھر عورت کے رحم میں مناسب جگہ پر اس کو پیوست کرتے ہیں اور یہ کام انتہائی مشکل ہوتا ہے، اس لیے کہ لقیحہ (آمیزہ) رحم میں بہ آسانی چپکتا نہیں ہے؛ بلکہ بسا اوقات کئی کئی بار یہ کوشش ڈاکٹروں کو کرنی پڑتی ہیں؛ اس لیے عموماً ڈاکٹروں کا طرزِ عمل یہ ہے کہ وہ عورت سے حاصل کردہ بیضةُ المنی (جو بے شمار جراثیم پر مشتمل ہوتا ہے) کی مختلف ٹیوب میں آبیاری کرتے ہیں۔
          اب اس بات کی ضمانت کون دے گا کہ اگر یہ آمیزے بچ جائیں تو ڈاکٹر انھیں ضائع کردیں گے؟ جب کہ مخصوص آلے کے ذریعے عورت کا بیضةُ المنی لینا پھر مرد کی منی کے ساتھ اس کا لقیحہ تیار کرنا انتہائی مشکل مرحلہ ہوتا ہے؛
چناں چہ مجلة مجمع الفقہ الاسلامی (عدد:۲ ص۱۸۶ وغیرہ) میں اس سے متعلق کافی تفصیلات مذکور ہیں۔
(٣): بعض دفعہ ڈاکٹر لوگ ایسا کرتے ہیں کہ انسانی نطفہ کو کسی جانور کے نطفے سے ملاکر عورت کے رحم میں رکھتے ہیں، اور تجربہ کرتے ہیں کہ اس سے ہونے والا بچہ کس کے مشابہ ہوگا؟
انسان کے یا اس جانور کے..؟
چنانچہ آئے دن اس قسم کے نت نئے تجربات کئے جارہے ہیں، کہ ایک جانور کا نطفہ دوسرے قسم کے جانور کے ساتھ، کبھی انسان کا نطفہ جانور کے نطفے کے ساتھ ملاکر مادہ جانور کے رحم میں رکھ کر تجربہ کیا جاتا ہے، اور کبھی جانور کا نطفہ عورت کے رحم میں رکھ کر،
تاکہ ایک الگ قسم کی مخلوق وجود میں آئے، جو آدھا انسان اور آدھا جانور ہو، امریکہ اور دوسرے یورپی ممالک میں باقاعدہ اس تحقیق کیلئے بڑی بڑی کمپنیاں اور شعبے قائم ہوگئے ہیں، جنکا مقصد صرف اسی طرح کے تجربات کرنا ہے، جسکی مزید آپ انٹرنیٹ پر پراڈا (Parada) نامی ویبسائٹ پر دیکھ سکتے ہیں،
( ٤) نیز ٹیسٹ ٹیوب بے بی (ivf) کا طریقہ ایجاد ہونے کے بعد ہسپتالوں میں باقاعدہ منی بینک کا انتظام ہونے لگا ہے، جس میں مختلف صلاحیتوں کے حامل مردوں (مثلاً فنکار، کھلاڑی، سیاستداں، کالا، گورا) کی منیاں محفوظ رکھی جاتی ہیں اور حسب ضرورت عورتیں ان منیوں سے حاملہ ہوتی ہیں؛ بلکہ آج کل بہت سی کمپنیاں وجود میں آچکی ہیں، جو طبی مراکز اور ہسپتالوں کے لیے منیاں، کرائے کی مائیں وغیرہ فراہم کرتی ہیں اور جن اسپتالوں میں ٹیسٹ ٹیوب بے بی کی سہولیات فراہم ہوتی ہیں، وہاں منی بینک نیز کرائے کی کوکھ کا بھی ضرور انتظام ہوتا ہے،
ابتدا تو ان چیزوں کی یورپ امریک
ہ سے ہوئی؛ لیکن اب ہر جگہ یہاں تک کہ سہارن پور، مظفرنگر جیسی جگہوں میں بھی یہ چیزیں پھیل چکی ہیں، تو کیا یہ ساری چیزیں انسانیت اور نسب انسانی کے ساتھ سراسر مذاق نہیں ہے؟
تو ان دین بے زار، بلکہ اسلامی اصول کو بالکل نظر انداز کرنے والوں سے کیا یہ توقع کی جاسکتی ہے، کہ مرد سے حاصل کردہ منی کو اس کی بیوی ہی کے رحم میں ڈالیں گے؟ یا اس سے بچے ہوئے حصے کو ضائع کردیں گے؟
          نیز ان بے دین، بلکہ نسل انسانی کو مذاق بنانے والے ڈاکٹروں سے کیا یہ امید کی جاسکتی ہے کہ وہ منشأ شریعت (اختلاط نسب سے بچانا ) کے مطابق یہ امور انجام دیں گے؟ ہرگز نہیں،
اس لیے کسی مسلمان کے لیے جو اللہ پر ایمان رکھتا ہے، ہرگز جائز نہیں کہ اس طریقہٴ تولید کو اپنائے، اگرچہ خاتون ڈاکٹرنی ہی سارا کام انجام دے،
ہاں اگر شوہر خود اس لائن کا تجربہ رکھتا ہو اور وہ دیانت داری کے ساتھ اس کام کو انجام دے تو شرعاً اس کی گنجائش ہوگی۔
اکابر اربابِ افتاء میں سے حضرت مفتی نظام الدین صاحب نے منتخبات نظام الفتاویٰ (ج۱ ص۳۳۹)
حضرت مفتی رشید احمد صاحب نے احسن الفتاویٰ (ج۸ ص۲۱۴،ط:دارالاشاعت)
اور حضرت مفتی عبدالرحیم صاحب لاجپوری نے فتاوی رحیمیہ (ج۵ ص۴۸۴، کتاب الحظر والاباحة ط: مکتبہ الاحسان)
میں عدمِ جواز کا ہی فتویٰ دیا ہے،
اور دارالعلوم دیوبند نے بھی حال ہی میں اس طریقہ تولید سے متعلق عدم جواز کا فتوی جاری کیا۔ (سوال۷۴، د ۱۴۳۴ھ)
         
یہاں ایک سوال ہوگا کہ اگر کسی نے ناواقفیت یا کسی اور وجہ سے ان شکلوں میں سے کسی کو اپنالیا اور اس کے نتیجے میں بچہ پیدا ہوا، تو بچہ ثابت النسب ہوگا یا نہیں؟ نیز ایک بیوی کے بیضے کو دوسری بیوی کے رحم میں ڈالنے کی صورت میں بچے کی ماں کون بنے گی؟ جس نے بچہ جنا؟ یا وہ عورت جس کا بیضہ لیا گیا؟
تو اس سلسلے میں عرض یہ ہے کہ حدیث میں 
"الولد للفراش․․․ وللعاہر الحجر"
(بخاری رقم ۶۸۱۷، باب للعاہر الحجر)
فرمایا گیا ہے، جس کا حاصل یہ ہے کہ منکوحہ کا بچہ اس کے شوہر کی طرف ہی منسوب ہوگا، بہ شرطے کہ مدت کے اندر اس کی گنجائش ہو یعنی نکاح کے کم از کم چھ مہینے کے بعد بچہ پیدا ہوا ہو۔ نیز یہ بات بھی ملحوظ رہے کہ شرعاً ثبوتِ نسب کے لیے فطری طریقے پر ہی رحم میں منی کا ادخال ضروری نہیں، بلکہ غیر فطری طریقے پر ادخال کی صورت میں بھی نسب ثابت ہوجاتا ہے۔ چنانچہ فتاویٰ ہندیہ میں ہے: 
رَجُلٌ عَالَجَ جَارِیَةً فِیْ مَا دُوْنَ الْفَرَجِ فَأنْزَلَ فَأخَذَتِ الْجَارِیَةُ مَائَہ فِیْ شَیْءٍ فَاسْتَدْخَلَتْہُ فِیْ فَرْجِہَا فَعَلَقَتْ، عِنْدَ أبِیْ حَنِیْفَة أنَّ الْوَلَدَ وَلَدُہ وَتَصِیْرُ الْجَارِیَةُ أمَّ وَلَدٍ لَہ"
(ہندیہ ج۴ ص۱۱۴، الفصل الاول فی مراتب النسب، زکریا)

لہٰذا دونوں صورتوں میں بچہ ثابت النسب ہوگا، پہلی صورت تو جن دو میاں بیوی کا نطفہ لیا گیا ہے، ان سے ہی نسب ثابت ہوگا۔
رہی دوسری صورت کہ اس میں بچے کی ماں شرعاً کون بنے گی؟ جس کا بیضة المنی لیاگیا وہ؟ یاوہ جس نے حمل کی مشقت اٹھائی اور جنم دیا؟ تو صحیح بات یہ ہے کہ بچے کا نسب اس خاتون سے ثابت ہوگا جس کے بطن سے وہ پیدا ہوا ہے، جس نے حمل و وضع حمل کی مشقت برداشت کی، قرآن کریم میں ہے 
انْ اُمَّہَاتُہُمْ الاّ الاَّئی وَلَدْنَہُمْ (المجالة:۲) 
ترجمہ: ان کی مائیں تو بس وہی ہیں جنھوں نے ان کو جنا ہے۔ یہاں پر اللہ تعالیٰ نے ماں انھیں قرار دیا ہے، جنھوں نے بچوں کو جنا اور حصر کے ذریعے غیر سے ماں ہونے کی نفی کی ہے۔ نیز دوسری آیت میں ہے 
یَخْلُقُکُمْ فِیْ بُطُوْنِ أمَّہَاتِکُمْ (الزمر، الآیة۶) 
یہاں پر بھی موضع تخلیق ماؤں کے بطون کو بنایا، اس سے بھی یہ بات ثابت ہوتی ہے کہ مائیں وہ ہوں گی جن کے بطن میں بچہ کی تخلیق ہوئی ہے، نیز آیت کریمہ حَمَلَتْہُ أمُّہ کُرْہًا وَ وَضَعَتْہُ کُرْہاً سے بھی اس کی تائید ہوتی ہے۔
"علی کل حال نکاحُ الاستبضاع الآن أخذ شکلا جدیدا․․․ یجمع المني من العباقرة والأذکیاء والأقویاء ویکتب علی کل قارورة منی اسم مانحہا وتحفظ في بنوک المنی․․․ وتقدم کالتوجات للنساء وللأسر․․ ہل تریدون منی الرجل العبقري فلان؟ انہ حصل علی جائزة نوبل في الآداب؟ أم تریدون منی الرجل القوي الجیار فلان فقد کان قائدا عسکریا بارعا، أم أن المکتشف والمخترع فلان ہو الذي یناسبکم؟ أتریدون ولدا أبیض أم أسمر الی أخر قائمة الطلبات․․․ تکونت في الولایات المتحدة وبعض دول أوربا شرکات تجاریة لبیع الأرحام المستعارة یتراوح ثمن الرحم المستأجرة ما بین خمسة آلاف وعشرة آلاف دولار․․․․
(مجلة مجمع الفقہ الاسلامي التابع لمنظمة الموتمر الاسلامي بجدة وہد تصدر عن منظمة الموتمر الاسلامي بجدة، العدد الثاني ص۱۸۶)

( فتاوی محمودیہ١٨/ ٣٢٣ تا ٣٢٧ مفتی فاروق)
حبیب الفتاوی٢/ ٢٣٧)(فتاوی رحیمیہ١٠/ ١٧٩)
(حلال و حرام ص٣٠٢ اور ٣٠٣)
(نظام الفتاوی١/ ٣٣٧ رحمانیہ لاہور)
(آپکے مسائل اور انکا حل٨/ ٤٩٩ و٥٠٠)
 
 واللہ اعلم بالصواب


सवाल: टेस्ट ट्यूब के माध्यम से औरत को हमल ठहराना कैसा है
यानी जब कुछ औरतों को बच्चा पैदा नहीं होता तो खुद उसके शोहर या किसी दूसरे आदमी का नुत्फा और माद्दाए मनविय्या लेकर इंजेक्शन वगैरा के माध्यम से औरत के गर्भाशय (बच्चे दानी) में रखा जाता है, ताकि हमल ठहर जाए, तो क्या औलाद पाने के लिए यह तरीका जायज है? इसी को अंग्रेजी में "टेस्ट ट्यूब बेबी" और "आई वी एफ" कहा जाता है।
.
जवाब: आजकल चिकित्सा विज्ञान (मेडिकल साइंस) की तरक्की के नतीजे में बहुत से नए मसाइल जन्म ले रहे हैं, साथ ही इलाज के नाम पर बहुत सी ऐसी आकृतियां बाजार में पेश की जा रही हैं, जिनमें से कुछ तो शरई नज़र से कतई हराम, और इस्लाम के बुनियादी उसूल से मु-त-सादिम (टकरा रही) हैं और उन आकृतियों को तिब्बी कैम्प, अखबारात या अन्य स्रोतों के माध्यम से खूब प्रसिद्धि किया जा रहा है, नतीजतन बहुत से मुसलमान भी उन्हें अपना रहे हैं.
खैर.. उन नई नई शक्लों में से एक शक्ल आई वी एफ है,
(in vitro fertilization)
यानी तौलीद के मस्नूई ज़राये'
जैसे..
(1)
नुत्फा शोहर का हो और किसी ऐसी औरत का बेज़ा (अंडाकार) लिया जाए, जो उसकी बीवी न हो, फिर यह लकीहा उस शोहर की बीवी के गर्भ में रखा जाए।
(2)
नुत्फा शोहर के अलावा किसी और का हो और अंडाकार बीवी का हो और उसी के गर्भ में रखा जाए।
(3)
शोहर का नुत्फा और बीवी का अंडाकार लेकर बाहरी रूप में उनको मिला लिया जाए और फिर यह लकीहा दूसरी औरत के गर्भ में रखा जाए, जिसे मुस्तआर रहम कहा जाता है।
(4)
किसी अनजान आदमी का नुत्फा और अनजान ही औरत के अंडाकार के बीच बाहरी तौर पर मिलावट की जाए और लकीहा बीवी के गर्भ में रखा जाए।
(5)
शोहर का नुत्फा और बीवी का अंडाकार लेकर बाहरी रूप में मिला कर, लकीहे को उसी शोहर की दूसरी बीवी के गर्भ में रखा जाए।
(6)
नुत्फा शोहर का और अंडाकार उसकी बीवी का हो, उनकी मिलावट बाहरी रूप में की जाए और फिर शोहर की उसी बीवी के गर्भ में रखा जाए जिसका अंडाकार लिया गया है।
(7)
शोहर का नुत्फा लेकर उसकी बीवी के मोहबल या गर्भ में किसी मुनासिब जगह पर किसी ओजार के जरिए रखा जाता है, फिर उसी जगह बारआवरी की जाता है।
.
ऊपर ज़िक्र की गई पांचों सूरतों में तो अनजान लोगों के माद्दे का मिश्रण या अनजान औरत के गर्भ से फायदा हासिल किया गया है, तो यह ज़िना के हुक्म में होने की वजह से नाजायज है, और फिर अहकामे शरइय्या की थोड़ी सी जानकारी रखने वाला शख्स भी इनके ना-जायज होने में कोई सोच बिचार नहीं करेगा,
लेकिन बाद की तीन सूरतों में चूंकि गैर के माद्दे से फायदा नहीं उठाया जाता, जिसकी वजह से कुछ गलतफहमी पाई जाती हैं, इसलिए अब उन्हीं तीनों सूरतो के सिलसिले में शरीयत का हुक्म बयान करने की कोशिश की गई है:
शरीयत के नियम और फ़ुक़्हा किराम की बातचीत से यह सूरतें भी जवाज़ के दायरे में नहीं आतीं, बल्कि दूसरी सूरतों की तरह यह सूरतें भी नाजायज हैं।
(1): एक तो इस लिए कि इन तरीकों को अपनाने में औरत का सतरे गलीज़ यानी नाभि से लेकर घुटने तक का हिस्सा अनजान डॉक्टरों, बल्कि कभी-कभी सहायकों और डॉक्टरों की एक टीम के सामने खोलना लगभग वाजिब है, जबकि औरत के लिए सतर का यह हिस्सा न मर्द के सामने खोलना जायज है और न औरत के सामने। और जो महिलाएं इन तरीकों को अपनाती हैं उन को कोई ऐसी शारीरिक परेशानी नहीं होती, बल्कि यह तो महज जलबे मन्फअत और बच्चे पाने के लिए करती हैं, जबकि हराम काम करने की इजाजत सख्त जरूरत के समय होती है, न कि सिर्फ फायदे के हुसूल के लिए।
कुछ लोगों ने तोह्फतुल-फिका नामी किताब के एक पाठ से इस मस्अले पर इस्तिदलाल किया है, जिसमें लेखक ने औरत के सतरे गलीज़ देखने और छूने की अनुमति सिर्फ खतना के लिए दी है, जबकि औरत के लिए खतना न तो सुन्नत है और न ही वाजिब,
लेकिन यह इस्तिदलाल सही नहीं, इसलिए कि तोह्फतुल-फिका के उस पाठ को दूसरे फ़ुक़्हा ने नहीं लिया है, बल्कि बदाइउस-सनाए नामी किताब जोकि अस्ल में तोह्फतुल-फिका की शरह है, उसमें अगर्चे इस पाठ के लगभग सारे ही हिस्से को लिया गया है लेकिन इस जुजये को यानी खतना के लिए औरत का सतर देखना और छूना) नहीं लिया।
और फिर मुफतियाने किराम के यहाँ फतवा इस जुज़ये पर है ही नहीं, इसलिए कि फ़ुक़्हा किराम ने साफ साफ कहा है कि अगर कोई मुसलमान बच्चा, बालिग हो गया और किसी कारण खतना न हो सका, तो बालिग होने के बाद उसका खतना न कराया जाए और इसका कारण यह लिखा कि खतना सुन्नत है, जबकि सतर छिपाना फ़र्ज़ है यानी तहसीले सुन्नत के लिए फ़र्ज़ को नहीं छोड़ा जाएगा।
खैर.. जब मर्दों का खतना जिसे लगभग आवश्यक और शिआरे इस्लाम समझा गया है, वहां इसकी अनुमति नहीं दी गई तो औरत की खतना जोकि सुन्नत भी नहीं, उसके लिए कैसे अनुमति दी जा सकती है?
(2): नाजायज़ होने की दूसरी बड़ी वजह मिश्रण वंश (नसब का खलत मलत हो जाना है) जिसकी शरीयत ने बहुत ताकीद की है)
इसलिए कि टेस्ट ट्यूब बेबी से संबंधित जानकारी रखने वालों के ग्रंथों (तहरीर) को पढ़ने से पता चलता है कि इस प्रक्रिया को अंजाम देने वाले डॉक्टर्स, औरत का बेज़ाए मनी और मर्द की मनी लेकर मिलाने के बाद एक ट्यूब में आबयारी करते हैं, जिसकी मुद्दत लगभग दो या चार दिन है, फिर औरत के अंडाकार में मुनासिब जगह पर फिट करते हैं और यह काम बेहद मुश्किल होता है, इसलिए कि लकीह (मिश्रण) गर्भ में आसानी से नहीं चिपकता, बल्कि कई बार कई कई बार यह कोशिश डॉक्टरों को करनी पड़ती हैं, इसलिए आमतौर डॉक्टरों का व्यवहार यह है कि वह औरत से ली गई बेज़ाए मनी ( जिस में अनगिनत जीवाणु (जरासीम) होते हैं) की विभिन्न (मुख्तलिफ) ट्यूब में आबयारी करते हैं।
अब इस बात की गारंटी कौन देगा कि अगर यह आमेज़े बच जाएं तो डॉक्टर लोग उन्हें बर्बाद कर देंगे? जबकि विशिष्ट उपकरण के माध्यम से औरत का बेज़ाए मनी लेना फिर मर्द की मनी के साथ यह लकीहा तैयार करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है,
(3): बहुत सी बार डॉक्टर लोग ऐसा करते हैं कि मानव शुक्राणु (नुतफा) किसी जानवर के शुक्राणु (नुतफे) से मिलाकर महिला के अंडाकार में रखते हैं, और अनुभव (तजुर्बा) करते हैं कि इससे होने वाला बच्चा किस के जैसा होगा?
इंसान के या जानवर के ..?
इसलिए आए दिन इस प्रकार के नए प्रयोग किए जा रहे हैं, कि एक जानवर (जैसे कुत्ते) के शुक्राणु (नुतफे) को दूसरी किस्म के पशुओं की मादह (जैसे शेरनी) के रहम में रखा जाता है, और कभी इंसानी नुतफे को जानवर के नुतफे के साथ मिलाकर पदार्थ जानवर के गर्भ में रख कर परीक्षण किया जाता है, और कभी जानवर के नुतफे को महिला के गर्भ में रख कर परीक्षण किया जाता है,
ताकि एक अलग प्रकार के जीव अस्तित्व में आए जो आधा मनुष्य और आधा जानवर हो, अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों में इस अनुसंधान (तहकीक और रिसर्च) के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियां और क्षेत्र स्थापित हो गए हैं, जिनका उद्देश्य (मकसद) केवल इसी तरह के प्रयोग करना है, जिसकी अधिक जानकारी इंटरनेट पर प्राडा (Parada) नाम की वीबसाइट पर देख सकते हैं,
(4): साथ ही टेस्ट ट्यूब बेबी का आविष्कार होने के बाद अस्पतालों में बाकायदा मनी बैंक का प्रबंधन होने लगा है, जिसमें मुख्तलिफ क्षमताओं के मर्दों जैसे कलाकार, खिलाड़ी, राजनेता, काले गोरे) की मनी को सुरक्षित रखा जाता है और जरूरत के हिसाब से औरतें उन मनीयों से गर्भवती होती हैं, बल्कि आजकल बहुत सी कंपनियां वजूद में आ चुकी हैं, जो स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों को मनियाँ, किराए की माएं वगैरा प्रदान करती हैं और जिन अस्पतालों में टेस्ट ट्यूब बेबी की सुविधा उपलब्ध होती हैं, वहाँ मनी बैंक तथा किराए की कोख का भी जरूर प्रबंधन होता है,
शुरुआत तो इन चीज़ों की यूरोप अमेरिका से हुई, लेकिन अब हर जगह यहां तक ​​कि सहारनपुर, मुजफ्फरनगर जैसी जगहों में भी ये चीजें फैल चुकी हैं,
यह सारी बातें मानवता और वंश मानव के साथ सरासर मजाक नहीं है तो और क्या है?
तो इन धर्म से बेज़ार, बल्कि इस्लामी उसूलों को पूरी तरह अनदेखी करने वालों से क्या उम्मीद की जा सकती है, कि वे मर्द से ली गई मनी को उसकी ही बीवी के गर्भ में डालेंगे? या बचे हुए हिस्से को नष्ट कर देंगे?
इसलिए किसी मुसलमान के लिए जो अल्लाह में विश्वास रखता है, यह जायज नहीं कि वह इस 'बच्चा बनाने के तरीके को अपनाए, चाहे डॉक्टरनी ही यह सारा काम करे,
हाँ अगर शोहर खुद इस लाइन का अनुभव रखता हो और वह ईमानदारी के साथ इस काम को अंजाम दे तो शरअन इसकी गुंजाइश है।
अब यहाँ यह सवाल होगा कि अगर किसी ने नावाकफियत (अनजाने में) या किसी और कारण से इन रूपों में से किसी को अपनालिया और बाद में बच्चा पैदा हुआ, तो बच्चा साबितुन नसब होगा या नहीं?
तथा एक बीवी के बेज़े को दूसरी बीवी के गर्भ में डालने के मामले में बच्चे की माँ कौन बनेगी? जिसने बच्चा जाना, या वह औरत जिसका अंडाकार लिया गया है?
तो इस संबंध में एक हदीस है जिसका खुलासा यह है कि मनकूहा का बच्चा उसके शोहर की तरफ ही मन्सूब होगा, ब-शर्ते कि मुद्दत के अंदर इसकी क्षमता हो यानी शादी के कम से कम छह महीने के बाद बच्चा पैदा हुआ हो।
साथ ही यह बात भी ध्यान में रहे कि शरअन नसब के सबूत के लिए फितरी तरीके से ही गर्भ में मनी का पहुंचना ही जरूरी नहीं; बल्कि गैर फितरी तरीके से पहुंचाने की सूरत में भी नसब साबित हो जाता है।
इसलिए दोनों ही सूरतों में बच्चा साबितुन्नसब होगा, पहले सूरत में तो जिन दो मियां बीवी का नुतफा लिया गया है, उनसे ही वंश साबित होगा।
रही दूसरी सूरत कि उस में बच्चे की माँ शरअन कौन बनेगी? जिसका बेजाए मनी लिया गया वह? या वह जिसने गर्भावस्था की तकलीफ उठाई और जन्म दिया?
तो सही बात यह है कि बच्चे का वंश उस महिला से साबित होगा जिसके गर्भ (कोख) से वह पैदा हुआ है, जिसने गर्भावस्था और जनने की तकलीफ उठाई,
कुरान में है कि : उनकी माताएं तो बस वही हैं जिन्होंने उन्हें जना है।
यहां पर अल्लाह ने माँ उन्हें बताया है, जिन्होंने बच्चे को जना है,
और हसर के माध्यम गैर माँ होने नकारना है।
और दूसरी आयत में है कि अल्लाह तुम्हें तुम्हारी माँ के पेट में बनाता है,
इस से भी यह बात साबित होती है कि माताएं वे होंगी जिनके गर्भ में बच्चा बना और पैदा हुआ है,
مفتی معمور-بدر مظاہری، قاسمی (اعظم پوری)
मुफ़ती मामूर-बदर मज़ाहिरी, क़ासमी (आज़म-पुरी)
फ़ोन नं. +918923896749
.

कुछ ऐसे भी शब्द हैं

जिनका सही मतलब हमें नहीं पता और हम उन्हें गलत सेंस में
इस्तेमाल करते हैं. आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही शब्दों के बारे में:
1. अकसर हम बोलते हैं First Come First Serve. इसका मतलब
होता है जो पहले आया है वो उन लोगों को सर्व करेगा जो बाद
में आए हैं. First Come First Serve बोलना गलत है. अगर इसे सही
बोलना है तो हम बोलेंगे First Come First Served, जिसका सही
मतलब है कि अगर आप पहले आए हो तो आपको पहले सर्व किया
जाएगा. साफ है कि सिर्फ एक एल्फाबेट को हटाने और लगाने
से पूरे शब्द और वाक्य का मतलब ही बदल जाता है.
2. अकसर जिस कॉलेज या स्कूल से हमने पढ़ाई की होती है हम
खुद का वहां का Pass Out स्टूडेंट बताते हैं. लेकिन असल में जब
आप किसी एजुकेशन इंस्टीटयूट से पढ़ाई कर चुके होते हैं तो आप
वहां के ग्रेजुएट होते हैं. आप उस इंस्टीट्यूट से Pass Out नहीं होते.
Pass Out का मतलब होता है to become unconscious for a
short time यानी कुछ समय के लिए बेहोश होना.
4. कई लोग बोलते हैं Discuss About. उदाहरण के लिए Let’s
discuss about politics. लेकिन Discuss About कोई phrase
नहीं है. Discuss का मतलब ही होता है Talk About. इसलिए
अलग से Discuss के बाद About शब्द लगाने की जरूरत नहीं
होती. उदाहरण के लिए: Let’s discuss politics.
5. हम में से ज्यादातर लोग अकसर Do One Thing बोलते हैं,
जिसका अर्थ काम करने के लिए किया जाता है. वास्तव में
इसका कोई सेंस ही नहीं है. विदेशों में ऐसा बोलने पर आपका
मजाक ही उड़ाया जाएगा.
6. हिंदी में हम किसी का नाम पूछते वक्त कहते हैं आपका शुभ
नाम क्या है? इसी का अनुवाद करते हुए हम इंग्लिश में भी पूछने
लगे हैं What is your good name? यह बिल्कुल गलत है. सही तौर
पर पूछा जाना चाहिए What is your name?
7. एक और कॉमन गलती हम Kindly Revert का इस्तेमाल करते हुए
भी करते हैं. Kindly Revert को हम Reply यानी कि जवाब पाने
के अर्थ में बोलते हैं, जो कि गलत है. Revert का मतलब होता है:
Go back to a previous state. यानी कि अपनी पुरानी
स्थिति में वापस आना. इसलिए Reply के लिए Kindly Revert
का इस्तेमाल करना गलत है.
8. अकसर लोग Sneak Peek और Sneak Peak में अंतर नहीं कर
पाते हैं. Peek का मतलब होता है Quick Look और Peak का
मतलब होता है पहाड़ की चोटी. सिर्फ E और A के हटने से दोनों
का मतलब बदल गया. जब हम Sneak Peak बोलेंगे तो इसका कोई
मतलब नहीं होगा. इसलिए सही Phrase जो बोला जाता है वो
है Sneak Peek, जिसका मतलब होता है कि किसी चीज़ के
आधिकारिक रूप से लॉन्च होने से पहले ही उसे देखने का मौका
मिलना.
9. हम में से अधिकतर लोग Prostate को ProstRate बोलते हैं.
सिर्फ R एल्फाबेट को लगाने से ही अर्थ बदल गया है.  Prostrate
का मतलब होता है जब आप अपना चेहरा नीचे करके बैठे होते हैं.
वहीं, पुरुषों के जनानांगों में पाई जाने वाली ग्रंथी को
Prostate कहा जाता है. अगर आप Prostrate Cancer बोलते हैं
तो इसका मतलब होता है कैंसर जो आपको नीचे चेहरा करके बैठने
की वजह से हुआ है. इसलिए इसका सही Phrase है Prostate
Cancer.
10. अगर कोई अपनी बात से यू-टर्न लेता है तो हम कहते हैं 360-
Degree Turn. जबकि 360-Degree Turn का मतलब होता है उसी
जगह पर वापस आ जाना जहां से श्ाुरुआत हुई थी. हमें किसी के
यू-टर्न लेने पर कहना चाहिए 180-Degree Turn, जिसका मतलब
होता है कि वह अपनी पहली कही गई बात से ठीक उलटा कर
रहा है.

نصاری کیسے ہوئے مغلوب؟

دو ارب عیسائی کیسے ڈیڑھ کروڑیہود کے چنگل میں پھنسے ؟

یہودی قوم اپنے صحیفوں میں درج من گھڑت خدائی پیشین گوئیوں کی بنیاد پر دنیائے عیسائیت کو ہمیشہ مرعوب کیے رکھتی ہے۔ اس کے صحیفوں میں درج ہے کہ خدا تعالیٰ قوم ِبنی اسرائیل سے بہت خوش ہے اوروہ اسے اپنی چہیتی قوم قرار دیتا ہے۔وہ کہتا ہے کہ کنعان فلسطین کا ملک اس نے انھیں ان کے چہیتے ہونے کی بنیاد ہی پر تحفے میں عطا کیا۔ اسی باعث یہودی مذہبی شخصیات عیسائیوں پر ہمیشہ زور دیتی ہیں کہ ان کے حقوق تسلیم کیے بغیر عیسائی ہرگزترقی نہیں کرسکتے۔

حیرت کی با ت یہ کہ اِن دعووںکو عیسائی پیشوا بھی من و عنَ درست تسلیم کرنے لگے ہیں۔ یہی وجہ ہے، یہودیوں کے انسانیت دشمن ہر اقدام پر وہ اب ان کے ساتھ کامل تعاون کرتے ہیں۔ ایک سو سال پہلے تک جو قوم ( عیسائی )یہودیوں کی جانی دشمن تھی،وہ اب ان کے من گھڑت خدائی دعوے آسانی سے تسلیم کرنے لگی ہے کیونکہ ان کی مقدس الہامی کتب اور تورات (عہد نامۂ قدیم )کو یہودیوں کے مانند عیسائیوں کے ہاں بھی مستند خدائی کتب تسلیم کیا جاتا ہے۔حتیٰ کہ اپنی انجیل (گوسپل)کے مطالعے کا آغاز عیسائی انہی مذکورہ کتب سے کرتے ہیں۔

چناںچہ قدرتی بات ہے کہ یہودیوں کے عقائد کا نفوذ لازمی طور پر ان کے دل و دماغ میں ہو جائے ۔ اسی لیے یہودی ٗ عیسائیوںکو جب خدا کا یہ فرمان سناتے ہیں ’’بنی اسرائیل کو تنگ کرناخود خدا کی ناراضی مول لینا ہے ‘‘ تو عیسائی پیشوا اِن کی مخالفت کرنے سے از خودکتراتے ہیں۔ یہودیوں کا کمال ہے کہ اپنے صحیفوں کی بنیاد پر دو ارب کی بڑی قوت رکھنے والی عیسائی قوم کو انھوں نے اپنے شکنجے میں کس لیا۔

جنگوں کی آگ بھرک اُٹھی

بنی اسرائیل کے اس قدیم دعویٰ نے کہ’’نیل کے ساحل سے لے کر تابخاکِ فلسطین یہ سارا وسیع وعریض خطہ خدا نے انھیں اس کی چہیتی قوم ہونے کے سبب ازراہِ عنایت عطیہ(ہبہ) کیا‘‘ مشرق ِوسطیٰ میں تمام جنگوں کی آگ بھڑکائی۔ وہ کہتے ہیں‘ اس کا اعلان اللہ تعالیٰ نے خود اپنی کتاب تورات میں بار بار کیا ہے۔ مثلاً انجیلی کتاب،پیدائش‘(Genesis) باب۱۵ آیات۱۸۔۱۶ میںدو ٹوک طریقے سے اعلان کیا گیا ہے :

’’میں نے یہ ملک تیری نسل کو دریائے مصر سے لے کر اس بڑے دریائے (فرأت) تک ’قینیوں، قزیوں قدمونیوں، حتیوں، فرزیوں، فرائیمیوں، اموریوں، کنعانیوں، جرجاسیوں اور جبوسیوں (تمام قوموں ) سمیت دے دیا۔‘‘ اِن آیات کی تشریح کرتے ہوئے ایک امریکی مصنف‘ جان ایف ولوڈورڈ (Valwoodword) لکھتا ہے :

’’اس خدائی وعدے سے مراد آج کے دور کا اسرائیل‘ دریائے اردن کا مغربی کنارہ اور عراق ‘ سعودی عرب اور شام کے ممالک کے بڑے بڑے شہر مراد ہیں۔‘‘ (کتاب ،آرمیگا ڈون، آئل ،اینڈ دی مڈل ایسٹ کرائسس۔ ص۲۹۔۲۸) ۔

یہ خدائی وعدہ کسی بھی قسم کی شرط سے وابستہ نہیں۔ یعنی اس کا بنی اسرائیل کی اللہ تعالیٰ کے ساتھ وفاداری سے کوئی تعلق نہیں۔خدا نے یہ خطے انھیں بس یونہی دے دیے، خواہ وہ کچھ بھی کرتے رہیں! اسی طرح ایک اور جگہ خداوند فرماتا ہے:

’’اے اسرائیل گھبرانہ جا، کیونکہ دیکھ میں تجھے اور تیری اولاد کو غلامی کی سر زمین سے چھڑائوں گا۔ یعقوب(بنی اسرائیل) واپس آئیں گے اور راحت وآرام سے رہیں گے اور کوئی انھیں نہ ڈراسکے گا کیونکہ میں تیرے ساتھ ہوں۔‘‘ (یرمیاہ۳۰، آیات۱۱۔۸)

برطانیہ کی سرپرستی

صیہونیوں نے قیام اسرائیل کے لیے جب عالمی ہمہ گیر مہم شروع کی‘ تو برطانیہ انہی مذکورہ دعووں اور کچھ دیگر سیاسی حالات کی بنا پر ان کے بہت زیادہ دبائو میں آگیا۔اتفاق سے تب برطانیہ سپرپاور تھا۔ بہت کچھ تو اس سیاسی دبائو کی وجہ سے اور کچھ جنگ عظیم اوّل (۱۹۱۷ئ) میں یہودی قوم کی ہمدردی پانے کے لیے برطانوی وزیر خارجہ لارڈ بالفور نے قیام اسرائیل کے لیے۱۹۱۷ء کو اعلان بالفور کا اجرا کر دیا۔ تاہم عرب دنیا نے اس اعلان کو یکسر مسترد کر ڈالا۔

لہٰذا عربوںکی جانب سے بڑھتے ہنگاموں اور سیاسی دبائو کے باعث برطانیہ ،قیام اسرائیل کی اس دستاویز پر طویل عرصے تک عمل درآمد کرنے سے قاصر رہا۔ مصلحت یہ تھی کہ اتنی بڑی عرب برادری سے وہ اپنے تعلقات برقرار رکھے۔چناںچہ اعلان بالفور کے باوجود برطانیہ نے یہودیوںکے فلسطین میں مزید داخلے پر پابندی عائد کردی۔اس کے باوجود ۱۹۳۹ء تک چار لاکھ یہودی حیرت انگیز طور پر کسی نہ کسی طور فلسطین میں داخل ہو گئے۔ یہی وہ سال تھا جب دوسری عظیم جنگ کا بھی آغاز ہوا ۔’’ انجمن اقوام‘‘ کی جانب سے برطانیہ اس وقت فلسطین کا نگران اعلیٰ تھا۔

جنگ عظیم دوم کے اختتام پر اقوام متحدہ نے طے کیا کہ امریکا اور روس ،دونوں ممالک کی آشیرباد سے فلسطین کو دو حصوں…’’ یہودی فلسطین‘‘ اور’’ عربی فلسطین‘‘ میں تقسیم کردیا جائے۔ تاہم یہودیوں کو اپنی آزاد ریاست کے جلد از جلدقیام سے حد درجہ دلچسپی تھی۔ اسی لیے فلسطین سے برطانویوں کونکال باہر کرنے کی خاطر صیہونی دہشت گردوں نے یروشلم کے کنگ ڈیوڈ ہوٹل کو دھماکوں سے اڑادیا جہاں نگراں برطانوی افواج قیام پذیر تھیں۔ بعدازاں ۱۴؍مئی۱۹۴۸ء کو صیہونیوں نے از خود قیام اسرائیل کا اعلان کردیا۔ حیرت انگیز امر یہ کہ یہودی بڑوں کے غیر قانونی اقدام کی مذمت کسی ایک مہذب گوری قوم نے نہ کی اور اسرائیل کو تسلیم کر لیا۔

بائیبل کی پیش گوئیاں

کتاب’’یرمیاہ‘‘ باب۲۳ یوں پیشین گوئی کرتی ہے ’’ پر میں انھیں ان تمام ممالک سے جہاں جہاں میں نے انھیں ہانک دیا تھا ،جمع کرلوں گا اور انھیں ان کے گلّے خانوں میں لائوں گا اور وہ چلیں گے اور بڑھیں گے… خداوند فرماتا ہے دیکھ وہاں دن آئے ہیں کہ میں دائود کے لیے ایک سچی نسل پیدا کروں گا اور اس کی بادشاہی، ملک میں اقبال مندی اور عدالت وصداقت کے ساتھ ہوگی۔ یہوواہ(یروشلم) اس کے عہد میں نجات پاجائے گا اور اسرائیل(یہودی) سلامتی سے سکونت کرسکے گا۔‘‘ (آیات:۶۔۴)

کتاب ایزاخیل بیان کرتی ہے کہ: ’’ تب وہ جانیں گے کہ میں خداوند ان کا خدا ہوں۔ میں نے ہی انھیں غلامی میں قوموں کے اندر روانہ کیا تھا اور میں نے ہی انھیں ان کے اپنے ملک میں جمع کیاتھا اور ان میںسے کسی ایک کو بھی پیچھے نہ چھوڑا تھا۔‘‘ (باب۳۹،آیت۲۸)

قارئین سے گزارش ہے کہ بائبل کی یہ پیشین گوئیاں پڑھ کر دل چھوٹا نہ کریں کیونکہ اس میں شامل تمام کتابیں جعلی اور تحریف شدہ ہیں ۔ان کے ربیوں نے کتب سے اصل نکال کر من پسند آیات درج کردیں۔ خدا نے اگر اس قوم سے کوئی وعدہ کیا بھی تھا، جیسا کہ قرآن مجید بھی ود تصدیق کرتا ہے‘ تو یہ وعدہ ان کی وفاداری اور تقویٰ کے ساتھ مشروط تھا۔ یعنی اگر وہ اللہ کے ساتھ وفاداری کا رویہ اختیار کریںگے‘ تو وہ بھی ان کے ساتھ عمدہ سلوک کا مظاہرہ کرے گا۔ افسوس یہودیوں نے اپنی سازشی ذہنیت کے باعث ان تمام وعدوں سے خدائی شرائط کو نکال باہر کیا اور محض اس بات کا ڈھنڈورا پیٹ رہے ہیں کہ خدانے یہ سارا خطہ انھیں از خود ہبہ کر دیا۔ اب اس چہیتی قوم کی جو بھی مخالفت کرے گا،دنیا میں وہ لازماً برباد ی کے انجام سے دوچار ہوگا۔

یہود پہ حضرت عیسیٰ کی پھٹکار

اُدھر حضرت عیسیٰ علیہ السلام ان سرکش یہودیوں کو ڈانٹ ڈپٹ کرتے ہوئے کہتے ہیں:
’’اے یروشلم، اے یروشلم(بنی اسرائیل)، تو جو نیکوں کو قتل کرتا اور رسولوں کو سنگسار کرتا ہے۔ کتنی بار میں نے چاہا ہے کہ جس طرح مرغی اپنے بچوں کو جمع کرلیتی ہے، میں بھی تیرے لڑکوں(قوم) کو جمع کرلوں مگر تو نے ایسا نہ چاہا۔ دیکھو تمہارا گھر تمہارے لیے ویران کیا جاتا ہے کیونکہ میں تم سے کہتا ہوں کہ اب مجھے ہر گز نہ دیکھو گے جب تک کہ نہ کہہ لو کہ’’ مبارک ہے وہ جو خداوند کے نام سے آیا ہے۔‘‘ (متی۲۳،آیات۳۹۔۳۷)

ان آیات میں ڈانٹ ڈپٹ کرنے کے علاوہ حضرت عیسیٰ علیہ السلام یہود کو یہ بھی ہدایت کرتے ہیں کہ آنے والے نبی (صلی اللہ علیہ وسلم) کا وہ خوش دلی کے ساتھ استقبال کریں۔ دوسری طرف یہودی مکّاروں کو طنز کرتے ہوئے مزید فرماتے ہیں:
’’اے سانپو،اے افعی کے بچو، تم جہنم کی سزا سے کیوں کر بچو گے؟‘‘(متی۲۳، آیت:۳۳) اور’’ اے احمقواور اندھو۔‘‘ (متی۲۳آیت:۱۷)
قابل غور بات یہ کہ پھلنے پھولنے کی ایسی ہی پیشین گوئی اللہ تعالیٰ نے حضرت اسماعیل علیہ السلام کے بارے میں بھی فرمائی ہے۔ وہ کہتا ہے :
’’اسماعیل کے حق میں بھی میں نے تیری دعا سنی، دیکھ میں اسے برکت دوں گا اور اسے پھلدار کروں گا اور بہت بڑھائوں گا… اور میں اسے ایک بڑی قوم بنائوں گا۔‘‘(پیدائش۱۷،آیت:۲۰)

حضرت اسماعیل ؑکے حق میں انجیلی کتابوں میں درج مذکورہ پیشین گوئیا ں کئی مقامات پر مزید ملتی ہیں جو تمام پوری بھی ہوئیں ۔ دوسری طرف بنی اسرائیل سے متعلق خدائی خوشخبریاں تکمیل کی تا حال منتظر ہیں۔چار ہزار سال بعد بھی بنی اسرائیل موعودہ وسیع وعریض خدائی خطے سے محروم ہیں۔ جو کچھ بھی زور زبردستی نہ کہ بطور خدائی انعام اسے حاصل ہوا یعنی (اسرائیل) وہ بھی بس چھوٹا سااراضی گوشہ ہے۔

یہودیوںکو کنعان (فلسطین) بھی اب تک مکمل طور پرحاصل نہیں ہوسکا ۔ اسی طرح عالمی طور پر سبھی منتشر شدہ یہودی بھی قیام اسرائیل کے باوجود موعودہ وطن واپس نہیں لوٹ سکے۔ حالانکہ بائبل میں بیان کیا گیا تھا :’’میں ان میں سے کسی ایک شخص کو بھی پیچھے نہ چھوڑوں گا۔‘‘

تمام تر کشش اور مراعات کے باوجود یورپ، امریکا اور دیگر ممالک کے بے شمار یہودی آج بھی اسرائیل آنے کو تیار نہیں، بے شک ربیوں کے نزدیک یہ ان یہودیوں کا گناہ کبیرہ ہی ٹھہرے!حیرت انگیز طور پرقرآن پاک بھی یہی بات بیان کرتا ہے’’ قیامت سے پہلے ہم یہودیوں کو ایک جگہ اکٹھا کرکے لے آئیں گے۔‘‘ (بنی اسرائیل:۱۰۴) اسی طرح نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے بھی ان کے بارے میںایک پیشین گوئی فرمائی ہے۔ آپﷺ نے فرمایا کہ قیامت سے پہلے مدینہ اجاڑ اور یروشلم آباد ہو رہا ہو گا۔
(ابو دائود وبخاری )

خدا کا ہاتھ

بعض عیسائی اور تمام صیہونی مصنفین اس بات کا علانیہ اظہار کرتے ہیں کہ عرب دنیا اور تمام مسلم ممالک کی بدترین مخالفت، عربوں کی لگاتار ومسلسل عسکری مزاحمت ، صدر ناصر کی اسرائیل پر تھوپی گئی جنگ رمضان ۱۹۶۷ء کے باوجود اسرائیل کی موجودگی کا واضح مطلب یہی ہے کہ (۱) اسرائیل پر خدا کا ہاتھ ہے۔ (۲) بنی اسرائیل خدا کی چہیتی اور محبوب امت ہے اور (۳) یہ وسیع وعریض خطہ یہودیوں کے ساتھ ایک سچا خدائی وعدہ ہے۔

یہ لوگ دلیل دیتے ہیں کہ گزشتہ چار ہزار برس میںجن اقوام نے بھی اسرائیلیوں(خدا کی چہیتی قوم) پر ذلت، غلامی، تشدد اور جنگ مسلط کی تھی، قربِ قیامت پر ان سب کو آخر کار ایک خدائی قہر وغضب کا سامنا کرناپڑے گا۔ وہ کہتے ہیں کہ ہمارا صحیفہ’’جرمیاہ‘‘دو ٹوک طریقے پر اعلان کرتا ہے ’’ وہ سب جو تجھے نگلتے ہیں، خود نگلے جائیں گے اورتیرے سب دشمن قیدی بنالیے جائیں گے اور جو تجھے غارت کرتے ہیں خود غارت ہوجائیں گے اور ان سب کو جو تجھے لوٹتے ہیں میں خود لٹا دوں گا۔(باب۳۰آیت:۱۶)

ان کا دعویٰ ہے، رومی سلطنت جس نے یہودیوں کو سدا عذاب میں مبتلا رکھا تھا، آخرکا رتباہی سے دو چار ہوگئی۔( یہ حقیقت بہرحال وہ دنیا پر آشکار نہیں کرتے کہ مذکورہ رومی سلطنت کو یہودیوں کے محسن مسلمانوں نے تباہ کیا تھا۔یہ فاتح محمد عثمانی تھے جن کے حملوں سے رومی سلطنت ٹکڑے ٹکڑے ہوئی)۔ مذکورہ دانشوران مزید دلیل دیتے ہیںکہ روسی شاہی زار خاندان جو ساری زندگی یہودیوں کا درپے آزار رہا، کمیونسٹ انقلاب کے نتیجے میں بہیمیت اور درندگی کا نشانہ بنا اور ہٹلربھی جو یہودیوں کا نسلی اور خونی دشمن تھا، بالآخر خود کشی کے انجام سے دو چار ہوا۔

عذاب نازل ہوا

یہ سارے حقائق درست ہوسکتے ہیں‘ لیکن بڑی عیاری کے ساتھ وہ اس موقع پر اپنے سابق بد ترین دشمن، یورپی اقوام کا ذکر گول کر جاتے ہیں۔یہ وہ قومیںہیں جنھوں نے یہودیوں کوتقریباً دو ہزار سال تک پورے یورپ میں بری طرح رگیدا، قتل کیا، جلایا اور زمین وجائداد سے محروم کیا۔ ان کی پیشین گوئیوں کی بنیاد پر تویورپ کی ان عیسائی اقوام کو بھی اصولاًخدا کی ’’چہیتی قوم‘‘ کو عذابوں میں مبتلا کرنے کی وجہ سے فنا وبرباد ہوجانا چاہیے تھا۔ لیکن ان پر اللہ کا غضب نازل ہونا تو کجا یہ یورپی اقوام پہلے سے بھی زیادہ مضبوط اور مستحکم ہو چکی ہیں۔

اسپین، بیلجیم، جرمنی، فرانس‘ ڈنمارک ،اٹلی اور برطانیہ وغیرہ کئی لحاظ سے عالمی قیادت کے منصب پر بھی فائز ہیں۔ لہٰذا اس موقع پر یہودی اگر ان عیسائیوں کا ذکر کرتے‘ توخدا کی پیشین گوئی دنیا کو یقینا غلط نظر آنے لگتی۔ اسی لیے انھوں نے سلسلۂ حقائق میں ان اقوام کا ذکر ہی گول کردیا۔ بات یہ ہے کہ یہودیوں اور عیسائیوں کی تمام رائج الوقت کتبِ مقدسہ، جعلی، من گھڑت اور انسانی کلام ہیں۔ اصل عبرانی انجیلیں تو یروشلم اور ہیکل کی بار بار تباہیوں اور آتشزدگیوں کے باعث آج سے کئی ہزار سال پہلے ہی دنیا سے مٹ چکیں۔اس لیے ان کی پیشین گوئیوں پر انسان کیسے اعتبار کرسکتا ہے؟

مسلمان بہ لحاظ تعداد ایک صدی کی نسبت آج بہت زیادہ تعداد میں موجود ہیں جبکہ خدا کی چہیتی قوم، بنی اسرائیل محض ڈیڑھ کروڑ کی آبادی ہی پر اٹک گئی۔ ایک طرف ان کی دشمن قوتیں مسلسل پھیل رہی ہیں اور دوسری طرف یہودی سکڑ تے چلے جارہے ہیں! یہ کیسی الہامی پیشین گوئی ہے؟

۱۹۶۷ء کی مصر اسرائیل جنگ کے بعد یہود نے یروشلم اور دریائے اردن کا مغربی کنارہ چھین لیا۔ ان کے نزدیک یہ قبضہ سو فیصد درست تھا کیونکہ یہ بھی موعودہ خدائی خطے کا ایک حصہ ہی ہے۔ سابق وزیر اعظم موشے دایان نے بھی دوٹوک طور پر کہا تھا :’’تمام مقدس شہروں کے مقدس شہر(Holy of the Holies) میں یہودی اب کبھی واپس نہ جانے کے لیے لوٹے ہیں۔‘‘ جبکہ دوسری طرف حضرت عیسیٰ علیہ السلام فرماتے ہیں:’’یروشلم غیر قوموں سے اس وقت تک پامال ہوتا رہے گا جب تک کہ غیر قوموں کی معیادِ اقتدار پوری نہ ہو جائے۔‘‘ (انجیل لوقا: ۲۱، آیت:۲۴)۔ دوسرے الفاظ میں حضرت عیسیٰ علیہ السلام پیش گوئی کررہے ہیں کہ یروشلم کو تو ایک دن بالٓاخر اجاڑ ہونا ہی ہے۔

صحیفوں کی بنیاد پر یہودی دعوے تو ضرور بڑے بڑے کرتے ہیں‘ لیکن جان بوجھ کر یہ حقیقت نہیں بتاتے کہ ان کا یہ تمام سیاسی کروفر اور ان کے ملک کا تمام استحکام محض امریکی و مغربی حمایت کے بل بوتے پر ہے۔ سات ارب کی عالمی آبادی میں ان کی حیثیت آٹے میں نمک برابر ہے۔ جس دن بھی امریکی عوام پر اصل صورت حال واضح ہوئی کہ کس طرح ان کا پیسا یہودیوں کے استحکام میں استعمال ہو رہا ہے اور کس طرح ان کی حکومتیں اسرائیل کے ہاتھوں میںکھلونا بن کر ناچ رہی ہیں، اسی دن سے یہودی پھر بد ترین بربریت اور تشدد کا نشانہ بننے لگیں گے ۔

ایک بار پھر انھیں اسی ذلت و رسوائی سے گزرنا پڑے گا۔ اسرائیل تو ان کا محض عارضی ٹھکانا ہے! دنیا بھر کو وہ اپنے جھوٹے خدائی وعدوں کی بنیا د پر بے شک مسلسل بے وقوف بناتے ر ہیں ٗلیکن ان کی یہ تمام زیرکی اور چالاکی ایک دن خود خدائی وعدوں کی بنیاد ہی پرانھیں لے ڈوبے گی!