केरल हाई कोर्ट के एक जज ने सवाल उठाया है कि अगर एक मुसलमान मर्द चार बीवियां रख सकता है, तो एक मुस्लिम महिला चार पति क्यों नहीं रख सकती?
कोझिकोड में महिलाओं के एक सेमिनार में जस्टिस बी कमाल पाशा ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों को लेकर भेदभाव है.
उन्होंने कहा कि ख़ासकर दहेज, तलाक़ और उत्तराधिकार के मामले पर भेदभाव होता है और ये इन मसलों में क़ुरान में कही बातों के ख़िलाफ़ हैं.
जज ने कहा, “ये भेदभाव है और जिन धार्मिक नेताओं ने ये हालात पैदा किए हैं, वे इससे पीछा छुड़ाकर नहीं भाग सकते.”
जस्टिस पाशा ने कहा कि मज़हबी नेताओं को आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या वे एकतरफ़ा फैसला देने की योग्यता रखते हैं. लोगों को भी ऐसे लोगों की योग्यता को ध्यान में रखना चाहिए जो इस तरह के फ़ैसले देते हैं.
उन्होंने कहा कि संविधान में महिलाओं और पुरुषों को बराबरी की गारंटी दी गई है.
जस्टिस पाशा ने कहा कि देश के सभी क़ानून अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के दायरे में आते हैं जो क्रमश: समानता के अधिकार और जीवन के अधिकार की गारंटी देते हैं.
(बीबीसी हिन्दी)
http://www.bbc.com/hindi/india/2016/03/160307_why_can_not_muslim_women_have_four_husband_du
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