Monday 21 March 2016

लाखों मुसलमानों की शहादत.....

1947 के कत्लेआम में लाखों मुसलमानों की शहादत से सबक़ ले लिया हाेता
ताे 1948 हैदराबाद ना हुआ हाेता।
हैदराबाद में क़त्ल किये गये 1200 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
ताे 1964 में राउरकेला और जमशेदपुर ना हुआ हाेता।
राउरकेला और जमशेदपुर में 8 हज़ार मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1967 में रांची ना हुआ हाेता।
रांची में क़त्ल किये गये 1500 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
ताे 1969 में अहमदाबाद ना हुआ हाेता।
अहमदाबाद समीत पूरे देश में 6 महीनाें तक चलने वाले दंगों में शहीद हुए 30 हज़ार से ज़्यादा मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1970 में भिवंडी मुम्बई ना हुआ हाेता।
भिवंडी मुम्बई में क़त्ल किये गये 450 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1976 में दिल्ली ना हुआ हाेता।
दिल्ली में पुलिस के ज़रिए क़त्ल किये गये 150 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो
तो 1979 में जमशेदपुर और वेस्ट बंगाल ना हुआ हाेता।
जमशेदपुर और वेस्ट बंगाल में क़त्ल किये गये 500 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1980 में मुरादाबाद ना हुआ हाेता।
मुरादाबाद और उसके आस पास क़त्ल किये गये 4 हज़ार मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1983 में आसाम ना हुआ हाेता।
आसाम में क़त्ल किये गये 10 हज़ार से ज़्यादा मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1985 में फिर अहमदाबाद ना हुआ हाेता।
अहमदाबाद में क़त्ल किये गये 1200 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1986 में दाेबारा अहमदाबाद ना हुआ हाेता।
अहमदाबाद में क़त्ल किये गये 250-300 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1987 में मेरठ ना हुआ हाेता।
मेरठ में क़त्ल किये गये 300 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1987 ही में हाशिम पुरा और मलयाना ना हुआ हाेता।
हाशिम पुरा मलयाना में फाेज के जरिए क़त्ल किये गये तक़रीबन 40-45 मुस्लिम नाेजवानाें की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1989 में भागलपुर ना हुआ हाेता।
भागलपुर समीत कई ज़िलाें में क़त्ल किये गये
3 हज़ार मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
ताे 1990 में कश्मीर ना हुआ हाेता।
कशमीर में फाेज के जरिए क़त्ल किये गये 50-55 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1992 में बाबरी मस्जिद शहीद ना हुई हाेती। बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद मुम्बई,अलीगढ़, गुजरात और हैदराबाद समीत पूरे देश में क़त्ल किये गये 20 हज़ार मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
ताे 1993 में फिर मुम्बई ना हुआ हाेता।
मुम्बई में दाेबारा क़त्ल किये गये 800 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
ताे 1993 में फिर कशमीर ना हुआ हाेता।
कशमीर में फाेज के जरिए क़त्ल किये गये 60 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
ताे 1993 में फिर कशमीर ना हुआ हाेता।
कशमीर में फाेज के जरिए क़त्ल किये 58 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 1997 में अरवाल बिहार ना हुआ हाेता।
अरवाल बिहार में क़त्ल किये गये 80 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 2000 में वेस्ट बंगाल ना हुआ हाेता।
वेस्ट बंगाल में क़त्ल किये गये 11 मुस्लिम मज़दूरों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 2002 में गुजरात ना हुआ हाेता।
गुजरात में क़त्ल किये गये 3500 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 2002 में ही नराेदा पाटिया गुजरात ना हुआ हाेता।
नराेदा पाटिया गुजरात में क़त्ल किये गये 150 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 2003 में केरला ना हुआ हाेता।
केरला में क़त्ल किये गये 8 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 2012 में दाेबारा आसाम ना हुआ हाेता।
आसाम में क़त्ल किये गये 250 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 2013 में मुजफ्फरनगर, शामली बाग़पत ना हुआ हाेता।
मुजफ्फरनगर, शामली और बाग़पत में क़त्ल किये गये तक़रीबन 120 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 2014 में दाेबारा मेरठ ना हुआ हाेता ।
मेरठ में क़त्ल किये गये 4 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 2014 में सहारनपुर ना हुआ हाेता ।
सहारनपुर में क़त्ल किये गये 3 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 2014 मणिपुर ना हुआ हाेता।
मणिपुर में जेल से निकाल कर नंगा कर के शहर भर में घुमाए जाने के बाद क़त्ल किये गये मुस्लिम नाेजवान की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 2015 में दादरी नोएडा ना हुआ हाेता।
दादरी नोएडा में घर में घुस कर क़त्ल किये गये अख़लाक़ की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो 2016 में लातेहार झारखंड ना हुआ हाेता।
लातेहार में क़त्ल किये गये 15 साला इब्राहिम और इम्तियाज खान की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो........................... इंतज़ार कराे।
अगर सबक़ ना लिया ताे यह दास्तान साल दर सल बढ़ती जाएगी।
बस फर्क इतना हाेगा कि हाे सकता है कल मैं इस दुनिया में ना रहूँ और इस से आगे काेई और लिखे।
यह तारीख के कुछ ही पन्ने हैं।
अगर तारीख काे इंसाफ़ के साथ पूरा पूरा बयान किया जाए तो आज़ादी के बाद से काेई साल काेई महीना शायद ही ऐसा गया हाेगा जिसमें मुस्लिम मुखालिफ दंगा ना हुआ हाे।
एक दंगे से मुसलमानों को जिस क़दर जान माल का नुकसान हाेता है वह तरक्की से पचास साल पीछे चले जाने से भी ज्यादा हाेता है।
लेकिन मुसलमानों ने कभी दंगों से काेई सबक़ हासिल नहीं किया।
दंगे दाेबारा ना हाें, हाें तो खुद को कैसे महफ़ूज़ किया जाए,इंसाफ़ कैसे मिले और उसके लिए कितनी महनत करनी पड़ती है कभी मुसलमानों ने नहीं साेचा।
इंदिरा गांधी के क़त्ल के बाद 1984 में सिखाें का क़त्लेआम हुआ जिसमें तक़रीबन 2500 बे गुनाह सिखाें काे क़त्ल किया गया था।
लेकिन फिर उसके बाद काेई सिख मुखालिफ दंगा नहीं हुआ। सिखाें ने खुद काे हर तरीक़े से मज़बूत किया। अपनी हिफाज़त, तालीम, सियासत बिजनेस हर मैदान में सिख आगे आए। इंसाफ की काेशिशें करते रहे, याद दिलाते रहे कि उन पर ज़ुल्म हुआ है।
उन्होंने ना कभी कानपुर का मैदान भरा तो ना कभी लखनऊ का, उन्होंने ना कभी बंगाल में मुज़ाहिरा किया ना कभी मेरठ चलाे की आवाज़ लगाई, उन्होंने ना कभी तालकटोरा में हुंकार लगाई ना कभी रामलीला मैदान भर कर चीखे चिल्लाये।
बहरहाल!
मैं किसी भी सियासी पार्टी काे मुसलमानों के क़त्लेआम का ज़िम्मेदार नहीं मानता।
सब से ज़्यादा दंगे और क़त्लेआम कांग्रेस के दाेर में हुआ। कांग्रेस ने ही कट्टर हिन्दू संगठनों काे परवान चढ़ाया। लेकिन मैं किसी भी पार्टी को इसका दाेष नहीं देता।
इसके लिए अगर ज़िम्मेदार हैं तो ताे खुद मुसलमान हैं। मुसलमानों की जमाते हैं, मुसलमानों के रहबर हैं, मुसलमानों की लीडरशिप है, जिनकी सबकी वफ़ादारियां हमेशा मुसलमानों के साथ ना हाे कर पार्टी बेस पर रहीं।
खैर!
जिस क़ाेम काे खुद बदलने की फिक्र नहीं हाेती,जाे क़ाेम ठाेकर खाने के बाद सबक़ हासिल नहीं करती, जाे क़ाेम वक़्त और हालात के धारे में तिनकाें की तरह बहे जाती हाे और जो क़ाेम अपनी हिफाज़त की फिक्र ना करे उसके साथ ऐसा ही हाेता है।
नाेट:
सन 1761, 1784-1799, 1857, 1858, 1872, 1919, 1922,1930 और 1946 में शहीद हुए  मुसलमानों की शहादत पर हमें ना तो कोई शिकवा ना काेई गिला और ना ही ग़म।
बल्कि यह हमारे लिए पूरे देश के लिए फख्र
की बात है कि हमनें लाखाें ही नहीं अन गिनत तादाद में अपने वतन के लिए जान दी। और ऐसी क़ुरबानी के लिए एक जान क्या हज़ार जान क़ुरबान।
लेकिन अफ़सोस, गिला, शिकवा उस ज़ुल्म पर, उस नस्ल कशी पर उस क़त्लेआम पर है जो मुसलमान आज़ादी के बाद से आज तक सहते आ रहे हैं।
@सैयद हिफ़्ज़ुल क़दीर नदवी

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