Saturday 7 May 2016

‘गुजरात: बिहाइंड द कर्टेन’

आईपीएस अफ़सर आरबी श्रीकुमार ने अपनी किताब ‘गुजरात: बिहाइंड द कर्टेन’ में कांग्रेस पर धर्मनिरपेक्षता का दिखावा करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कांग्रेस पर नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ केस चलाने को लेकर अनिच्छुक होने के इल्ज़ाम भी लगाए हैं.

गुजरात में फ़रवरी 2002 में गोधरा में एक ट्रेन में सवार 58 हिंदू कारसेवकों के आग में झुलस जाने के बाद राज्य में दंगे भड़के थे और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक हज़ार लोग मारे गए थे जिनमें अधिकतर मुसलमान थे. राज्य की तत्तकालीन मोदी सरकार पर दंगे रोकने में विफल रहने और मुसलमानों के जानमाल की रक्षा न करने के आरोप लगे थे.

वर्ष 2002 में अप्रैल से सितंबर तक सीआईडी विभाग में एडीजी रहे श्रीकुमार अकसर संघ और गुजरात की मोदी सरकार पर दंगों के दौरान लोगों की जान न बचाने के आरोप लगाते रहे हैं.इन दंगों के दौरान सेवा में रहे किसी आईपीएस अधिकारी की यह पहली किताब है, जिसमें उन्होंने कांग्रेस के राज्य और केंद्रीय नेतृत्व पर ‘बेहद ढुलमुल और निंदनीय रवैया’ अपनाने का आरोप लगाया है.

उन्होंने लिखा है, ”खोखली धर्मनिरपेक्षता और हिंदू भावनाओं के लिए अति संवेदनशीलता के चलते दंगों के बाद हुए सोनिया के दौरे के समय कांग्रेस नेताओं ने उन्हें ज़किया जाफ़री के घर नहीं जाने दिया.. इसकी तुलना इंदिरा गांधी से कीजिए जिन्होंने ख़तरा मोल लेकर बिहार में जनता पार्टी की सरकार के दौरान दलित नरसंहार के बाद बेलची गांव का दौरा किया था..और यहां तक कि एक हाथी पर बैठकर उन्होंने गंगा पार की थी.”

वह लिखते हैं, “2004 में केंद्र में कांग्रेस सरकार की वापसी ने दंगा पीड़ितों की उम्मीदें काफ़ी बढ़ा दी थीं, लेकिन यूपीए सरकार ने दंगों में प्रमुख भूमिका निभाने वाले संघ परिवार के लोगों की कानूनी जांच की सलाह भी नज़रअंदाज़ कर दी. मनमोहन सिंह ने भी इस मामले में कुछ नहीं किया.”

श्रीकुमार ने एक जगह लिखा है, “दंगा पीड़ितों ने मुख्यमंत्री और नौकरशाही की भूमिका की जांच के लिए एक अलग न्यायिक आयोग बनाने की मांग की थी. चूंकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कुछ नहीं किया था, तो उनकी निष्क्रियता से चिढ़कर तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने गोधरा में ट्रेन अग्निकांड के पीछे के हालात की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग बनाया.”

श्रीकुमार लिखते हैं कि कांग्रेस ने कभी उन पत्रों की प्रतियां जारी नहीं कीं, जो दंगों के बारे में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भेजे थे.
वो लिखते हैं, “मीडिया में ऐसी आशंकाएं जताई गईं कि इस कार्रवाई से सिख दंगों के दौरान ज्ञानी जैल सिंह और राजीव गांधी के बीच हुए पत्राचार की मांग हो सकती थी.”

अपनी किताब में वे यहां तक कहते हैं, ”यहां तक कि यूपीए सरकार ने केंद्रीय जांच एजेंसियों की रिपोर्ट दंगा जांच एजेंसियों को नहीं सौंपी.”

उन्होंने यह आरोप भी लगाया है कि यूपीए सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपने में भी देरी की, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट को एसआईटी का गठन करना पड़ा.
अपनी किताब में वे कहते हैं कि कांग्रेस मोदी विरोधी रुख़ को लेकर काफ़ी उधेड़बुन में थी कि इससे हिंदुओं का एक तबक़ा उससे अलग हो जाएगा जो मुसलमान विरोधी तो है लेकिन भाजपा समर्थक नहीं है.

काका के नज़र में भारतीय मुसलमानो के लिए भाजपा #नागनाथ है तो कांग्रेस #सांपनाथ

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