Tuesday, 3 May 2016

قرآن پڑھنا نہ جانتا ہو تو؟

مسئلہ نمبر (072) کے تحت سوال پے کہ جو آدمی قرآن پڑھنا نہ جانتا ہو یعنی اُسے قرآن کی کوئی بھی سورۃ یاد نہ ہو تو وہ کس طرح نماز پڑھے؟
.
جواب: جو آدمی قرآن پڑھنا نہ جانتا ہو اُس پر لازم ہے کہ وہ سورہ فاتحہ اور دوسری کم سے کم چار سورتیں یاد کرے یا کسی دوسرے سے یاد کروائے یا سیکھے، اور اگر جان بوجھ کر بلاعذر یاد کرنے کروانے یا سیکھنے میں دیر یا سستی کرتا ہے تو گنہگار ہوگا، البتّہ یاد ہونے یا سیکھنے تک اِس طرح نماز پڑھے کہ تکبیر ِ تحریمہ کہنے کے بعد اتنی دیر قیام کرے جتنی دیر میں سورہ فاتحہ اور اُس کے ساتھ کوئی دوسری سورۃ ملاکر پڑھی جاتی ہے، پھر رکوع سجدے وغیرہ میں جائے.
"اماالأمی والأخرس لو افتتحا بالنیة جاز لأنھما أتیا بأقصی ما فی وسعھما."
(شامی٢ ص٩١)
(بحرالرائق۲ ص۲۹۱)
.
٢- اگر کوئی آدمی گونگا ہے زبان ہلاکر نہیں پڑھ سکتا تو وہ خاموش رہ کر ہی نماز پڑھے، اُس کا دِل دِل میں پڑھ لینا کافی ہے.
"واما العاجز عن النطق لا یلزمہ تحریک لسانہ للتکبیر أو القرأة"
(شامی۲ ص۹۱)
(بحرالرائق۲ ص۲۹۱)
.
सवाल: जो आदमी कुरान पढ़ना न जानता हो यानी उसे कुरान की कोई भी सूरत याद न हो तो वह कैसे नमाज़ पढ़े?
.
जवाब: जो आदमी कुरान पढ़ना न जानता हो उस पर लाज़िम (ज़रूरी) है कि वह सूरह-फातिहा और दूसरी कम से कम चार सूरतें याद करे या किसी दूसरे से याद कराए या सीखे। फिर अगर जानबूझकर बगैर किसी उज़्र (बहाने) के, याद करने, कराने या सीखने में देरी या सुस्ती करेगा तो गुनहगार होगा।
लेकिन सीखने तक इस तरह नमाज़ पढ़े कि तकबीरे-तेहरीमा (नमाज़ की निय्यत बांधते समय, पहली बार हाथ उठाकर अल्लाहु-अक्बर) कहने के बाद इतनी देर खड़ा रहे जितनी देर में सूरह-फातिहा और उसके साथ कोई दूसरी सूरत मिलाकर पढ़ी जाती है, फिर रुकू सजदे वगैरह में जाए।
(2) अगर कोई आदमी गूंगा है यानी ज़बान हिलाकर नहीं पढ़ सकता तो वह चुप रह कर ही नमाज़ पढ़े, उसका दिल-दिल में पढ़ लेना ही काफी है।
.
शामी 2/91) बहरुर-राइक़ 2/291)

No comments:

Post a Comment