नमाज़ जनाज़ा के दलाईल
नमाज़ जनाज़ा में सिर्फ़ पहली तक्बीर में रफ़ा यदेन करें
عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ اَنَّ رَسُوْلَ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ یَرْفَعُ یَدَیْہِ عَلَی الْجَنَازۃِ فِیْ اَوّلِ تَکْبِیْرَۃٍ ثمَّ لَایَعُوْدُ۔
عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ اَنَّ رَسُوْلَ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ یَرْفَعُ یَدَیْہِ عَلَی الْجَنَازۃِ فِیْ اَوّلِ تَکْبِیْرَۃٍ ثمَّ لَایَعُوْدُ۔
तर्जुमा: हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं: "रसूलुल्लाहﷺ नमाज़ जनाज़ा में सिर्फ़ पहली तक्बीर में रफ़ा यदेन करते थे फिर दोबारा नही करते थे"-
[दारे क़ुतनी जिल्द2 सफ़ा314]
[दारे क़ुतनी जिल्द2 सफ़ा314]
:नमाज़ जनाज़ा में दायां हाथ बाएं हाथ पर रखें
عَنْ اَبیْ ہُرَیْرَۃَ اَنَّ رَسُوْلَ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ کَبَّرَ علَی الْجَنَازَۃِ فَرَفَعَ یَدیْہِ فِیْ اوَّلِ تَکْبِیْرَۃٍ وَوَضَعَ الْیُمْنیٰ عَلَی الْیُسْریٰ ۔
तर्जुमा: हज़रत अबू हुरेरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं: "रसूलुल्लाहﷺ जब नमाज़ जनाज़ा पढ़ते तो पहली तक्बीर में रफ़ा यदेन करते और दायें हाथ को बाएं हाथ पर रख लेते"-
[तिरमिज़ी जिल्द1 सफ़ा206;
दारे क़ुतनी जिल्द2 सफ़ा314]
[तिरमिज़ी जिल्द1 सफ़ा206;
दारे क़ुतनी जिल्द2 सफ़ा314]
:नमाज़ जनाज़ा में हाथ नाफ़ के नीचे बांधें
عَنْ اَبِیْ وَائِلٍ قَالَ اَبُوْ ہُرَیْرَۃَ اَخْذُ الْکَفِّ عَلَی الْاَکُفِّ فِی الصَّلٰوۃِ تَحْتَ السُّرَّۃِ۔
तर्जुमा: हज़रत अबू वाइल रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं: "हज़रत अबू हुरेरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि नमाज़ में एक हाथ को दूसरे हाथ पर नाफ़ के नीचे रखा जाए-"
[सुनने अबू दाऊद जिल्द1 सफ़ा118]
[सुनने अबू दाऊद जिल्द1 सफ़ा118]
:नमाज़ जनाज़ा में चार तक्बीरें कहें
1: اَنَّ سَعِیْدَ بْنَ الْعَاصِ سَأَلَ اَبَامُوْسٰی الْاَ شْعَرِی وَحُذَیْفَۃَ کَیْفَ کَانَ یُکَبِّرُ رَسُوْلُ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ فِی الْاَضْحٰی وَالْفِطْرِ فَقَالَ اَبُوْ مُوْسٰی کَانَ یُکَبِّرُ اَرْبَعًا تَکْبِیْرَۃً عَلَی الْجَنَائِزِ فَقَالَ حُذَیْفَۃُ صَدَقَ ۔
(1).तर्जुमा:हज़रत सईद बिन अलआस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैने हज़रत अबू मूसा अशअरी रज़ियल्लाहु अन्हु और हज़रत हुजैफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु से सवाल किया कि नबी करीमﷺ ईद-उल-अज़हा और ईद-उल-फ़ितर में कितनी तक्बीरें कहते थे? तो हज़रत अबू मूसा अशअरी रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया चार नमाज़ जनाज़ा जनाज़ा की तक्बीरो की तरह-हज़रत हुजैफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया उन्होंने सच कहा-
[सुनने अबू दाऊद जिल्द1 सफ़ा170]
[सुनने अबू दाऊद जिल्द1 सफ़ा170]
2: عَنْ عَبْدِاللّٰہِ (بْنِ مَسْعُوْدٍ رَضِیَ اللہُ عَنْہُ )یَقُوْلُ اَلتَّکْبِیْرُفِی الْعِیْدَیْنِ اَرْبَعٌ کَالصَّلٰوۃِ عَلَی الْمَیِّتِ وَفِیْ رِوَایَۃٍ اَلتَّکْبِیْرُ عَلَی الْجَنَائِزِ اَرْبَعٌ کَالتَّکْبِیْرِ فِی الْعِیْدَیْنِ۔
(2) तर्जुमा: हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि ईदैन की चार तक्बीरे हैं नमाज़ जनाज़ा की तरह और एक रिवायत में है कि नमाज़ जनाज़ा की चार तक्बीरे हैं नमाज़ ईदैन की तक्बीरों की तरह-
[सुनने तह़ावी जिल्द1 सफ़ा320]
[सुनने तह़ावी जिल्द1 सफ़ा320]
:पहली तक्बीर में ये दुआ पढें
سُبْحَانَکَ الّٰلھُمَّ وَبِحَمْدِکَ وَتَبَارَکَ اسْمُکَ وَتَعَالٰی جَدُّکَ وَلَا اِلٰہَ غَیْرُکَ۔
[सुनने निसाई जिल्द1 सफ़ा143]
[सुनने निसाई जिल्द1 सफ़ा143]
:दूसरी तक्बीर में ये दरूर शरीफ़ पढें
اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَّعَلٰی اٰلِ مُحَمَّدٍ کَمَا صَلَّیْتَ عَلٰی اِبْرَاھِیْمَ وَعَلٰی اٰلِ اِبْرَاھِیْمَ اِنَّکَ حَمِیْدٌمَجِیْدٌ۔ اَللّٰھُمَّ بَارِکْ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَّعَلٰی اٰلِ مُحَمَّدٍ کَمَا بَارَکْتَ عَلٰی اِبْرَاھِیْمَ وَعَلٰی اٰلِ اِبْرَاھِیْمَ اِنَّکَ حَمِیْدٌمَجِیْدٌ ۔
[सही बुख़ारी जिल्द1 सफ़ा477]
[सही बुख़ारी जिल्द1 सफ़ा477]
:तीसरी तक्बीर में ये बालिग़ मर्द और औरत के लिये ये दुआ पढें
اَلّٰلھُمَّ اغْفِرْ لِحَیِّنَا وَمَیِّتِنَا وَشَاھِدِنَا وَغَائِبِنَا وَصَغِیْرِناَ وَکَبِیْرِنَا وَذَکَرِنَا وَاُنْثٰنَا اَلّٰلھُمَّ مَنْ اَحْیَیْتَہٗ مِنَّا فَاَحْیِہٖ عَلَی الْاِسْلَامِ وَمَنْ تَوَفَّیْتَہٗ مِنَّا فَتَوَفَّہٗ عَلَی الْاِیْمَانِ ۔
[मुस्तद्रक ह़ाकिम जिल्द1 सफ़ा684;
मूसन्नफ़ अब्दुर्रज़्ज़ाक जिल्द3 सफ़ा313]
[मुस्तद्रक ह़ाकिम जिल्द1 सफ़ा684;
मूसन्नफ़ अब्दुर्रज़्ज़ाक जिल्द3 सफ़ा313]
:तीसरी तक्बीर में नाबालिग़ लड़के के लिये ये दुआ पढें
اَلّٰلھُمَّ اجْعَلْہُ لَنَا فَرَطاً وَّاجْعَلْہُ لَنَا اَجْرًا وَّذُخْرًا وَّاجْعَلْہُ لَنَا شَافِعًا وَّمُشَفَّعًا۔
[सुनन कुबरा बह़ेकी जिल्द4 सफ़ा10;
अल हिदाया मअ नसबुल राया जिल्द2 सफ़ा279]
[सुनन कुबरा बह़ेकी जिल्द4 सफ़ा10;
अल हिदाया मअ नसबुल राया जिल्द2 सफ़ा279]
:तीसरी तक्बीर में नाबालिग़ लड़की के लिये ये दुआ पढें
اَلّٰلھُمَّ اجْعَلْہَا لَنَا فَرَطاً وَّاجْعَلْہَا لَنَا اَجْرًا وَّذُخْرًا وَّاجْعَلْہَا لَنَا شَافِعَۃً وَّمُشَفَّعۃً۔
:नमाज़ जनाज़ा में सुरह फातिहा और दूसरी सूरत की क़िरात ना करें
1 : عَنْ نَافِعٍ اَنَّ عَبْدَاللّٰہِ بْنَ عُمَرَ کَانَ لَا یَقْرَاُ فِی الصَّلٰوۃِ عَلَی الْجَنَازَۃِ۔
(1) तर्जुमा: हज़रत नाफे रहिमाहुल्लाह बयान करते हैं कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अनहुमा नमाज़ जनाज़ा में क़िरात नहीं करते थे-
[मौत्ता इमाम मालिक जिल्द1 सफ़ा210;
मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा जिल्द7 सफ़ा258]
[मौत्ता इमाम मालिक जिल्द1 सफ़ा210;
मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा जिल्द7 सफ़ा258]
2 : قَالَ اِبْنُ وَھْبٍ عَنْ رِجَالٍ مِّنْ اَھْلِ الْعِلْمِ عَنْ عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ وَعَلِیِّ بْنِ اَبِیْ طَالِبٍ وَعَبْدِاللّٰہِ بْنِ عُمَرَوَعُبَیْدِ بْنِ فُضَالَۃَ وَاَبِیْ ہُرَیْرَۃَوَجَابِرِ بْنِ عَبْدِاللّٰہِ وَوَاثِلَۃَ بْنِ الْاَسْقَعِ وَالْقَاسِمِ وَسَالِمِ بْنِ عَبْدِاللّٰہِ وَابْنِ الْمُسَیِّبِ وَرَبِیْعِۃَوَعَطَائٍ وَیَحْییٰ بْنِ سَعِیْدٍ اَنَّھُمْ لَمْ یَکُوْنُوْا یَقْرَؤُنَ فِی الصَّلٰوۃِ عَلَی الْمَیِّتِ۔
(2) तर्जुमा: हज़रत इब्ने वहब रहिमाहुल्लाह बहुत से अहले इल्म हज़रात से नक़ल करते हैं की मसलन हज़रत उमर बिन खत्ताब, हज़रत अली बिन अबी तालिब, हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर, हज़रत उबैद बिन फ़ज़ाला, हज़रत अबू हुरेरा, हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह, हज़रत वासला बिन असक़ा रज़ियाल्लहु अन्हुम और हज़रत क़ासिम, हज़रत सालिम बिन अब्दुल्लाह, हज़रत सईद बिन मुसीब, हज़रत अता, हज़रत याहया बिन सईद रहिमाहुमुल्लाह नमाज़ जनाज़ा में क़िरात नहीं करते थे-
[अलमुदव्वनातुल कुबरा जिल्द1 सफ़ा251]
[अलमुदव्वनातुल कुबरा जिल्द1 सफ़ा251]
:नमाज़ जनाज़ा में दुआएं आहिस्ता आवाज़ से पढें
1 قَالَ اللّٰہُ تَعَالیٰ :اُدْعُوْا رَبَّکُمْ تَضَرُّعًا وَخُفْیَۃً…الایۃ
(1) तर्जुमा: अल्लाह तआला का फ़रमान है:"पुकारो अपने रब को गिड़गिड़ा कर और चुपके चुपके-
(1) तर्जुमा: अल्लाह तआला का फ़रमान है:"पुकारो अपने रब को गिड़गिड़ा कर और चुपके चुपके-
(2) मौलवी मुबश्शिर रब्बानी ग़ैर मुकल्लिद लिखते हैं:":नमाज़ जनाज़ा में क़िरात जहरन और सिर्रन दोनों द्रुस्त हैं अलबत्ता दलाईल की रू से सिर्रन पढ़ना ज़्यादा बेहतर और ऊला है- "नेज़ लिखते हैं बेहर कैफ़! सिर्री पढ़ना हदीस से सराहतन और जहरी पढ़ना इस्तदलालन साबित है- इस लिये आहिस्ता पढ़ना ज़्यादा क़व्वी है-
[आपके मसाईल, जिल्द1 सफ़ा244]
[आपके मसाईल, जिल्द1 सफ़ा244]
(3) डाक्टर शफीकुर्रहमान ग़ैर मुकल्लिद लिखते हैं:"सुन्नत ये है कि नमाज़ जनाज़ा में---दुआएं आहिस्ता पढ़ी जाएं"-
[नमाज़े नबवी, अज़ शफीकुर्रहमान सफ़ा294 एडिशन2002]
[नमाज़े नबवी, अज़ शफीकुर्रहमान सफ़ा294 एडिशन2002]
:नमाज़ जनाज़ा बग़ैर किसी उज़र के मस्जिद में ना पढें
1 عَنْ اَبِیْ ہُرَیْرَۃَ قَالَ قَالَ رَسُوْلُ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ مَنْ صَلّٰی عَلیٰ جَنَازَۃٍ فِی الْمَسْجِدِ فَلَیْسَ لَہٗ شَیْئیٌ۔
(1) तर्जुमा: हज़रत अबू हुरेरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं की :रसूलुल्लाहﷺ ने फ़रमाया जिसने मस्जिद में नमाज़ जनाज़ा पढ़ी उसके लिये कोई कुछ भी नही(यानी ना नमाज़ हुई ना अज्रो सवाब मिला)
[सुनन अबी दाऊद जिल्द2 सफ़ा98;
इब्ने माजा सफ़ा109]
[सुनन अबी दाऊद जिल्द2 सफ़ा98;
इब्ने माजा सफ़ा109]
2 عَنِ ابْنِ شِہَابٍ قَالَ کَانَ رَسُوْلُ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ اِذَا ھَلَکَ الْھَالِکُ شَھِدَہٗ یُصَلِّی عَلَیْہِ حَیْثُ یُدْفَنُ فَلَمَّا ثَقُلَ رَسُوْلُ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ وَبَدَّنَ نَقَلَ اِلَیْہِ الْمُؤمِنُوْنَ مَوْتَاھُمْ فَصَلّٰی عَلَیْھِمْ رَسُوْلُ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ عَلَی الْجَنَائِزِ عَنْدَ بَیْتِہٖ فِیْ مَوْضِعِ الْجَنَائِزِ اَلْیَوْمَ وَلَمْ یَزَلْ ذٰلِٰکَ جَارِیاً۔
(2) तर्जुमा: जलीलुल कदर ताबिई हज़रत इब्ने शहाब ज़हरी रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:"जब किसी की वफ़ात हो जाती तो रसूलुल्लाहﷺ बमौक़ा दफ़न नमाज़(जनाज़ा) पढ़ाने के लिये तशरीफ़ ले जाते थे- जब रसूलुल्लाहﷺ का जिस्म मुबारक ज़रा भारी हो गया (और आपﷺ के लिये चलना दुशवार हो गया तो) सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अनहुम अपने मुवत्ता को आपﷺके मकान के क़रीब ले आते-रसूलुल्लाहﷺ अपने मकान के क़रीब मौज़अ जानाइज़(जनाज़ा गाह) में नमाज़ जनाज़ा पढ़ते,-यही दस्तूर आजतक चला आरहा है-"
[तारीख़ मदीना मनव्वरा जिल्द1 सफ़ा1]
[तारीख़ मदीना मनव्वरा जिल्द1 सफ़ा1]
قَالَ الْاِمَامُ ابْنُ الْقَیِّمِ الْجَوْزِیُ وَالصَّوَابُ مَا ذَکَرْنَاہُ اَوَّلاً وَاِنَّ سُنَّتَہٗ وَھَدْیَہٗ الصَّلٰوۃُ عَلَی الْجَنَازَۃِ خَارِجَ الْمَسْجِدِ اِلَّا لِعُذْرٍ۔
तर्जुमा:अल्लामा इब्ने कय्य्म जूज़ी रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:"द्रुस्त बात वही हे जो हम पहले ज़िक्र कर चुके हैं- नबीﷺ की सुन्नत और आपﷺ का तरीका नमाज़ जनाज़ा मस्जिद से बाहर पढ़ना है, इल्ला ये कि कोई उज़र पेश आजाए"-
[ज़ाद अल मआद जिल्द1 सफ़ा206]
[ज़ाद अल मआद जिल्द1 सफ़ा206]
:ग़ाइबाना नमाज़ जनाज़ा नही पढ़नी चाहिये
1 عَنْ عِمْرَانَ بْنَ حُصَیْنٍ …قَالَ أنْبَأنَا رَسُوْلُ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ اِنَّ اَخَاکُمُ النَّجَاشِیَّ تُوُفِّیَ فَقُوْمُوْا فَصَلُّوْا عَلَیْہِ فَقَامَ رَسُوْلُ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ فَصَفُّوْا خَلْفَہٗ وَکَبَّراَرْبَعًا وَھُمْ لَا یَظُنُّوْنَ اِلَّا اَنَّ جَنَازَتَہٗ بَیْنَ یَدَیْہِ۔
(1) तर्जुमा: हज़रत इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाहﷺ ने फ़रमाया:"तुम्हरा भाई नजाशी(रज़ियल्लाहु अन्हु) वफ़ात पा गया है, खड़े हो जाओ और इस पर तुम नमाज़(जनाज़ा) पढ़ो! चुनांचे रसूलुल्लाहﷺ खड़े हुए और हज़रात सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम हुज़ूरﷺ के पीछे खड़े हुए- आपﷺ ने चार तक्बीरें कही- सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम यही गुमान कर रहे थे कि जनाज़ा आपﷺ के सामने है-"
[सही इब्ने ह़ब्बान जिल्द5 सफ़ा40 हदीस3102]
[सही इब्ने ह़ब्बान जिल्द5 सफ़ा40 हदीस3102]
2 عَنْ اَنَسِ بْنِ مَالِکٍ قَالَ نَزَلَ جِبْرَئِیْلُ عَلَی النَّبِی صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ قَالَ مَاتَ مُعَاوِیَۃُ بْنُ الَّلیْثِیُّ فَتُحِبُّ اَنْ تُصَلِّیَ عَلَیْہِ قَالَ نَعَمْ…فَرُفِعَ سَرِیْرُہٗ فَنَظَرَاِلَیْہِ فَکَبَّرَعَلَیْہِ۔
(2) तर्जुमा: हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:"जिब्राईल अलैहिस्सलाम रसूले अकरमﷺ के पास आए(और) फ़रमाया मुआविया बिन मुआविया लैसी रज़ियल्लाहु अन्हु फ़ौत हो गये हैं क्या आप उनकी नमाज़ जनाज़ा पढ़ना चाहते हैं? तो आपﷺ ने फ़रमाया:" जी हाँ!- पस उनकी चारपाई को उठा लाया गया- आपﷺ ने उसकी तरफ़ देखा और उस पर तक्बीर कही"-(यानी उनकी नमाज़ जनाज़ा पढ़ी)
[मुसनदे अबी याअला मूसली सफ़ा799 हदीस4268]
[मुसनदे अबी याअला मूसली सफ़ा799 हदीस4268]
नोट : बअज़ हज़रात ग़ाइबाना नमाज़ जनाज़ा को साबित करने के लिये नजाशी रज़ियल्लाहु अन्हु और मुआविया बिन मुआविया लैसी रज़ियल्लाहु अन्हु के जनाज़ों को बतौरे दलील पेश करते हैं कि रसूलुल्लाहﷺ ने उनकी ग़ाइबाना नमाज़ जनाज़ा पढ़ाई थी-
हम यह कहते हैं कि उन हज़रात के जनाज़े ग़ायब ना थे बल्कि बतौर मोअजिज़ा आपﷺ के सामने लाये गये थे और पर्दों को हटा दिया गया था तो आपﷺ ने उनकी नमाज़ जनाज़ा पढ़ाई थी-
(3). डाक्टर शफिकुर्रहमान ग़ैर मुकल्लिद लिखते हैं: "ग़ाइबाना नमाज़ जनाज़ा पढ़ने पर नजाशी रज़ियल्लाहु अन्हु के क़िस्से से दलील ली जाती है, ये क़िस्सा सही बुख़ारी और सही मुस्लिम में मौजूद है, मगर इससे ग़ाइबाना नमाज़ जनाज़ा पर इसतद्लाल करना सही नही है-
[नमाज़ नबवी सफ़ा296 एडिशन जून2002]
[नमाज़ नबवी सफ़ा296 एडिशन जून2002]
4 فَلاَ تَجُوْزُالصَّلٰوۃُ عَلَی الْغَائِبِ…بِاَتِّفِاقِ الْحَنْفِیَّۃِ وَالْمَالِکِیَّۃِ۔
(4) तर्जुमा: ग़ाइबाना नमाज़ जनाज़ा के ज़ायज़ ना होने पर हनफ़ियों और मालिकियों का इत्तेफ़ाक है-
[किताबुल फ़िक़ा अलल मज़ाहिब-अलअरबा जिल्द1 सफ़ा474]
[किताबुल फ़िक़ा अलल मज़ाहिब-अलअरबा जिल्द1 सफ़ा474]
5 قَدْ قَالَ الْاِمَامُ الْحَافِظُ الْمُحَدِّثُ ابْنُ تُرْکَمَانَیُّ قُلْتُ وَلَوْ جَازَتِ الصَّلٰوۃُ عَلٰی غَائِبٍ لَصَلّٰی عَلَیْہِ عَلٰی مَنْ مَّاتَ مِنْ اَصْحَابِہٖ وَیُصَلّی الْمُسْلِمُوْنَ شَرْقًا وَغَرْبًا عَلَی الْخُلَفَائِ الْاَرْبَعَۃِ وَغَیْرِھِمْ وَلَمْ یُنْقَلْ ذَالِکَ۔
(5) तर्जुमा: इमाम इब्ने तुरकमानी रहिमहुमुल्लाह फ़रमाते हैं:मै कहता हूं "अगर ग़ायब पर नमाज़ जनाज़ा ज़ायज़ होती तो आपﷺ, सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम में से जो (फ़ौत होता (ग़ाइबाना) नमाज़ जनाज़ा ज़ुरूर पढ़ते- मशरिक़ और मग़रिब में मुसलमान ख़ुलफ़ाए अरबा और देगर हज़रात वगैरह पर -लेकिन ये बात मन्कूल नहीं-
[अलजौहर अलनकी सुनन अलकुबरा बहेकी जिल्द4 सफ़ा51]
[अलजौहर अलनकी सुनन अलकुबरा बहेकी जिल्द4 सफ़ा51]
(6) जनाब ज़ुबैर अली ज़ई ग़ैर मुकल्लिद लिखते हैं (ग़ाइबाना नमाज़ जनाज़ा) दलील के उमूम की वजह से और नजाशी रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ तख्सीस की सरीह दलील ना होने की बिना पर जायज़ है- लेकिन चूंकि नबीﷺ, खुलफ़ाए राशिदीन रज़ियल्लाहु अन्हुम और देगर सलफ़ का आम मामूल ये नही था- लिहाज़ा नबी अकरमﷺ और खुलफ़ाए राशिदीन रज़ियल्लाहु अन्हुम के आम मामूल को अपनाना ही अफ़ज़ल और बेहतर है बिलखुसूस जबकि ग़ाइबाना नमाज़ की हुसूले शोहरत और देगर नाम निहाद सियासी और माली मकासिद के लिये इस्तेमाल किया जाता हो
[नमाज़ नबवी तहक़ीक़ और तखरीज ज़ुबैर अली ज़ई सफ़ा370]
[नमाज़ नबवी तहक़ीक़ और तखरीज ज़ुबैर अली ज़ई सफ़ा370]
नोट: हज़रत अबू हुरेरा हज़रत इमरान बिन हुसैन, हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह, हज़रत अबू सईद ख़ुदरी और हज़रत हुजैफा बिन असीद अलग़िफ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हुम इन हज़रात से नजाशी रज़ियल्लाहु अन्हु के वाकिये और जनाज़े की रिवायात मन्कूल है, जिन से बाज़ हज़रात ने ग़ाइबाना नमाज़ जनाज़ा को साबित करने की कोशिश की है लेकिन बावजूद रिवायात को बयान करने के इन हज़रात में से किसी एक ने आपﷺ की वफ़ात के बाद अपनी वफ़ात तक किसी की ग़ाइबाना नमाज़ जनाज़ा पढ़ी या पढ़ाई हो एसी कोई सरीह हदीस मौजूद नही जिसमें लफ्ज़ "ग़ाइब" हो रिवायत मुफ़स्सिर हो और नबी अकरमﷺ से उसका हुक्म भी साबित हो कि आया वो सुन्नत है या वाजिब.?
:चौथी तक्बीर के बाद दोनों तरफ़ नमाज़ की तरह सलाम फेरें
عَنْ عَبْدِاللّٰہِ بْنِ مَسْعُوْدٍ قَالَ ثَلاَثُ خِلاَلٍ کَانَ رَسُوْلُ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ یَفْعَلُھُنَّ تَرَکَھُنَّ النَّاسُ اِحْدَاھُنَّ اَلتَّسْلِیْمُ عَلَی الْجَنَازَۃِ مِثْلَ التَّسْلِیْمِ فِی الصَّلٰوۃِ ۔
तर्जुमा: हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने बयान किया कि तीन काम रसूलुल्लाहﷺ किया करते थे जिन्हें लोगों ने तर्क कर दिया उनमें से एक ये है कि नमाज़ जनाज़ा पर इस तरह सलाम फेरना जिस तरह नमाज़ में सलाम फेरा जाता है (यानी नमाज़ जनाज़ा में दोनों तरफ़ सलाम फेरना)
[सुनने कुबरा बहेकी जिल्द4 सफ़ा43]
[सुनने कुबरा बहेकी जिल्द4 सफ़ा43]
तद्फीन के वक्त ये दुआ पढें
عَنْ عَبْدِ الرَّحْمٰنِ بْنِ الْعَلَائِ بْنِ اللَّجْلَاجِ قَالَ قَالَ لِیْ اَبِیْ یَا بُنَیَّ اِذَا مِتُّ فَاَلْحِدْ لِیْ لَحْدًا فَاِذَاوَضَعْتَنِیْ فِیْ لَحْدِیْ فَقُلْ بِسْمِ اللّٰہِ وَعَلٰی مِلَّۃِ رَسُوْلِ اللّٰہِ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ ثُمَّ شَنَّ التُّرَابَ عَلَیَّ شَنّاً۔
तर्जुमा: हज़रत अब्दुर्रहमान बिन अलाइ रहिमाहुल्लाह बयान करते हैं की फ़रमाया मुझे मेरे बाप(अलाइ रज़ियल्लाहु अन्हु) ने ऐ मेरे बेटे! जब में फ़ौत हो जाऊँ तो मेरे लिये लहद(यानी बगली कब्र) बनाना-
जब मुझे कब्र में रखने लगो तो बिस्मिल्लाहि वा अला मिल्लति रसूलुल्लाहﷺ कहना फिर मेरे ऊपर मिट्टी डालना-
[मजमअ अलज़वाइद जिल्द3 सफ़ा162 हदीस4243]
जब मुझे कब्र में रखने लगो तो बिस्मिल्लाहि वा अला मिल्लति रसूलुल्लाहﷺ कहना फिर मेरे ऊपर मिट्टी डालना-
[मजमअ अलज़वाइद जिल्द3 सफ़ा162 हदीस4243]
तद्फीन के बाद सर और पाओं की जानिब खड़े होकर क्या पढ़ा जाए ?
عَنِ ابْنِ عُمَرَیَقُوْلُ سَمِعْتُ النَّبِیَّ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ یَقُوْلُ اِذَا مَاتَ اَحَدُکُمْ فَلاَ تَجَسُّوْہُ وَاسْرَعُوْابِہٖ اِلٰی قَبْرِہٖ وَلْیُقْرَأْ عِنْدَ رَأْسِہٖ بِفَاتِحَۃِ الْکِتَابِ وَعِنْدَرِجْلَیْہِ بِخَاتِمَۃِ الْبَقَرَۃِ فِیْ قَبْرِہٖ۔
तर्जुमा: हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि मैंने नबीﷺ से सुना आपﷺ फ़रमाते हैं:"जब कोई फ़ौत हो जाए तो तुम उसको रोक कर मत रखो, और जल्दी ले चलो उसको उसकी कब्र की तरफ़, और उसके सर की जानिब सूरह फातिहा और पाओं की जानिब सूरह बक़रा की आख़री आयात पढ़ी जाए"-
[मअजम कबीर तिबरानी जिल्द6 सफ़ा255]
[मअजम कबीर तिबरानी जिल्द6 सफ़ा255]
:तद्फीन के बाद की दुआ
عَنْ عُثْمَانَ قَالَ کَانَ النَّبِیُّ صَلَّی اللہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ اِذَا فَرَغَ مِنْ دَفْنِ الْمَیِّتِ وَقَفَ عَلَیْہِ فَقَالَ اِسْتَغْفِرُوْا لِاَخِیْکُمْ ثُمَّ سَلُوْا لَہٗ بِالتَّثْبِیْتِ فَاِنَّہٗ اَلْاٰنَ یُسْأَلُ۔
तर्जुमा: हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी अकरमﷺ दफ़ने मय्यत से फ़ारिग होकर कब्र पर खड़े होते और फ़रमाते अपने भाई के लिये बख्शिश की दुआ करो और उसके लिये अल्लाह तआला की बारगाह में साबित क़दमी की दरखास्त करो उससे इस वक्त सवाल किया जाता है
[सुनने अबू दाऊद जिल्द2 सफ़ा103]
[सुनने अबू दाऊद जिल्द2 सफ़ा103]
नोट: उसूले हदीस के मुताबिक़ बअज़ मक़ामात में दो कुतुब के हवाले दिये गये हैं दूसरे हवाले के अलफ़ाज़ कभी बिअय्निही अव्वल वाले होंगे और कभी मामूली अलफ़ाज़ के फ़र्क के साथ होंगे।
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मुरत्तिब: मुतकल्लिमे इस्लाम मौलाना मुहम्मद इलयास घुम्मन साहब हफिज़हुल्लाह
मुतर्जिम.....
✍मु० इकबाल
मक्का मुकर्रमा
✍मु० इकबाल
मक्का मुकर्रमा
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