यह सवाल कई बार अपना जवाब मांगता है जब दमनकारी कानून सामने आते हैं या पुलिस और जांच एजेंसीज का ज़ुल्म होता है।
कल रात राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने गुजरात विधान सभा से पारित विधेयक को मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया। 30मार्च 15 को गुजरात विधानसभा के सत्र में इसे पारित किया गया था। दरअसल ये बिल 2004 मे मोदी सरकार के लाये बिल का नया संस्करण था । उस वक़्त Gujarat control of organised crime bill(GUJEAS) को राष्ट्रपति कलाम साहब ने मंज़ूरी नहीं दी थी।
आनंदी बेन सरकार के इस क़ानून का विपक्ष और लोकतान्त्रिक ,मानवाधिकार संगठनो ने प्रबल विरोध किया। उनका कहना था कि इस कानून से सरकार और पुलिस जांच एजेंसी को ऐसे अधिकार मिल जाएंगे कि जिनका नाजाइज़ इस्तेमाल होगा। निष्पक्ष विवेचना नहीं होगी और झुठे सबूत बना लिए जाएंगे। बिल की धारा 4 के अनुसार किसी भी आरोपी को जिसे इस कानून के तहत गिरफ्तार किया जायेगा वह ज़मानत या निजी मुचलके पर रिहा नहीं हो सकेगा। 180 दिन की मुद्दत तक बिना चार्ज शीट या बिना चार्ज के उसको निरुद्ध किय जा सकता है। इतना ही नहीं SP रैंक का अफसर आरोपी का इकबालिया बयान लिख सकता है जो एविडेंस एक्ट के तहत मुक़दमे के दौरान आरोपी के खिलाफ पढ़ा जा सकेगा। इस तरह आरोपी के सामने बचाव के रास्ते नहीं रह गए थे अगर उस को दवाब में या मार का डर दिखा कर इकबालिया बयान लिया गया हो।
ये इस लिए भी गलत है क्यों की भारत का संविधान कानून के समक्ष समानता को मूल अधिकार घोषित करता है। Cr.PC के तहत इस तरह से इकबालिया बयान नहीं लिखा जा सकता ।केवल कोर्ट में ही सेक्शन 164 के तहत बयान कराया जा सकता है।
ऐसा कानून क्यों?
7 जनवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने क्रिमिनल अपील 1485/2008 गुजरात राज्य बनाम किशन भाई के केस में अपना फैसला सुनाया । कोर्ट ने कहा की सबूत की कमी से मुल्ज़िम बरी हो जाता है । इस की वहज ये है कि जस्टिस डेलीवरी सिस्टम में कमियां है । कोर्ट ने कहा कि
1. बेगुनाह के खिलाफ केस नहीं होना चाहिए
2. बरी होने के मामलों की समीक्षा होनी चाहिए।
3. यदि विवेचना से जुडे किसी अधिकारी ने लापरवाही या गलती की है तो उसके खिलाफ एक्शन होना चाहिए।
7 जनवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने क्रिमिनल अपील 1485/2008 गुजरात राज्य बनाम किशन भाई के केस में अपना फैसला सुनाया । कोर्ट ने कहा की सबूत की कमी से मुल्ज़िम बरी हो जाता है । इस की वहज ये है कि जस्टिस डेलीवरी सिस्टम में कमियां है । कोर्ट ने कहा कि
1. बेगुनाह के खिलाफ केस नहीं होना चाहिए
2. बरी होने के मामलों की समीक्षा होनी चाहिए।
3. यदि विवेचना से जुडे किसी अधिकारी ने लापरवाही या गलती की है तो उसके खिलाफ एक्शन होना चाहिए।
अभी बहुत से लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है जिनका फैसला कोर्ट से कब आएगा कोई नहीं जानता। जो 10 या 20 साल बाद बरी हो गए उनको कब झूठा मुक़दमा झेलने का मुआवज़ा मिलेगा और इन्साफ ,कोई नहीं जानता।
"पकड़ कर फिर किसी मासूम को तुम जेल कर देना
तुम्हारा काम है इन्साफ को भी खेल कर् देना
बहुत आसान है बम फोड़कर खुद को बचा लेना
कि मुस्लिम नाम रख कर फ़र्ज़ी मेल कर देना."
तुम्हारा काम है इन्साफ को भी खेल कर् देना
बहुत आसान है बम फोड़कर खुद को बचा लेना
कि मुस्लिम नाम रख कर फ़र्ज़ी मेल कर देना."
काश कि दमनकारी कानून बनाने की जगह फेयर इन्वेस्टीगेशन कराने की सोच हो। जल्दी इन्साफ मिलता दिखाई दे ।
ऐसा नहीं होगा क्यों कि जो लोग सत्ता पाते हैं साम्प्रदायिकता और हिंसा उन की सियासत का ज़रूरी हिस्सा है। नकारात्मकता ,झूठ और मक्कारी कूट कूट कर भरी है।इसी के बल पर वो राजनीति में टिके है। कल्याणकारी सोच और सकारात्मकता नहीं है।
ऐसा नहीं होगा क्यों कि जो लोग सत्ता पाते हैं साम्प्रदायिकता और हिंसा उन की सियासत का ज़रूरी हिस्सा है। नकारात्मकता ,झूठ और मक्कारी कूट कूट कर भरी है।इसी के बल पर वो राजनीति में टिके है। कल्याणकारी सोच और सकारात्मकता नहीं है।
यही दमनकारी कानून बनाने की वजह है।
उन सब को मुबारकबाद जिन्होंने दमनकारी इस कानून का विरोध किया। संघर्ष जारी रहेगा आगे हर ऐसे अवसर पर।
असद हयात अधिवक्ता/मानवाधिकार कार्यकर्ता
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