बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
जैसा की हम जानते है की दुनिया में जितनी भी सभ्यताएं
है उनमे अधिकतर के लिए नबी भेजे गये अगर किसी सभ्यता
में नबी के ना होना इस बात को कतई साबित नही करता
के उसके लिए कोई नबी आये या नही, हदीस शरीफ़ के
मुताबिक एक लाख चौबीस हजार अम्बिया दुनिया पर
तशरीफ़ लाये लेकिन उसमे से मात्र कुछ दर्जनों का ही
ज़िक्र कुरान शरीफ़ में है, ऐसी ही एक सभ्यता है वैदिक
धर्म जो नबी के होने ना होने का कोई सुबूत नही देती
लेकिन अपने वेदों में हुजूरे अकरम सल्लाहो अलेहे वसल्लम का
ज़िक्र करती है. तो हम ये कतई नहीं कह सकते की फलां धर्म
के लिए कोई नबी आये या नही हो सकता है धर्म में काफी
बदलाव किया जा चूका हो.
अथर्व वेद अध्याय 20 में हम निम्नलिखित श्लोक देख
सकते हैं
• हे भक्तो! इसको ध्यान से सुनो। प्रशंसा किया गया,
प्रशंसा किया जाने वाला वह महामहे ऋषि साठ हजार
नब्बे लोगो के बीच आयेगा। मुहम्मद के मायने हैं जिसकी
प्रशंसा की गर्इ हो। आप स0 की पैदाइश के समय मक्का
की आबादी साठ हजार थी। वे बीस नर और मादा ऊटो
पर सवारी करेंगे। उनकी प्रशंसा और बड़ार्इ स्वर्ग तक
होगी। उस महा ऋषि के सौ सोने के आभूषण होंगे।
ऊट पर सवारी करने वाले महा ऋषि को हम भारत में
नही पाते।
अत: यह संकेत मुहम्मद स0 ही की ओर हैं। सौ सोने के आभूषण
से अभिप्रेत हबशा की हिजरत में जाने वाले आप सल्ल0 के
सौ प्राणोत्सगी मित्र हैं।
ये मात्र एक उदाहरण नही है ऐसे कई श्लोक वेदों में भरे पड़े है,
वैदिक धरम में ईश्वर की इबादत का जो तरीका बताया
गया है वह है ध्यान करना सीधे शब्दों में कहा जाये तो
ईश्वर के बारे में सोचना, अब इस ध्यान करने के तरीके पर
ज़रा गौर करते है ध्यान करते समय व्यक्ति सावधान की
मुद्रा में बैठता है तथा अपने दोनों पैर मोड़कर अपने घुटनों पर
अपनी कलाई रखता है चित्र में देखे
वैदिक धर्म तथा बौद्ध धर्म के अनुसार ध्यान के तरीके
ऊर्जा उत्सर्जन – अगर हम किसी से पूछे की ईश्वर क्या
है? अल्लाह क्या है? तो जवाब मिलेगा अल्लाह कोई वस्तु
नही है न उसके हाथ है न पैर वह इन सब चीजों से पाक है
अल्लाह एक नूर है, यही बात आध्यात्मिकता में कही
जाती है की ईश्वर का कोई अकार नही है वह निराकार है
ईश्वर एक ऊर्जा है.
आध्यात्मिकता के अनुसार हमारा शरीर पांच तत्वों से
मिलकर बना है भगवान, भ – भूमि ग – गगन व- वायु अ-
अनल न -नीर , यानी मिटटी,हवा,पानी,आकाश,आग,
आध्यात्मिकता के साथ साथ विज्ञान ने भी ये साबित
कर दिया है की हमारे शरीर के प्रत्येक अंग की एक
फ्रीक्वेंसी होती है यहाँ तक के हमारे विचारो की भी
एक फ्रीक्वेंसी होती है जो निर्भर करती है की हम कैसा
सोचते है अगर हम नेगेटिव सोचते है तो हमारे विचार
नकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन करते है तथा अच्छा ,
पॉजिटिव सोचने पर विचार सकारात्मक ऊर्जा को
उत्सर्जित करते है, लेकिन सवाल ये उठता है की ये
विचार आते कहाँ से है ? इसका जवाब भी हमारा शरीर
ही है कुछ अंग ऊर्जा को अब्सोर्ब ( आत्मसात ) करते है
तथा कुछ अंग ऊर्जा का उत्सर्जन करते है आत्मसात करने
वाले अंगो में आंख,नाक,कान,है तथा ऊर्जा उत्सर्जित करने
वालो अंगो में शरीर के अंतिम सिरे है जैसे हाथ तथा पैरो
की हथेली,अंगुलियाँ,सिर,माथा और दिमाग एक ऐसा
भाग है जो ऊर्जा आत्मसात भी करता है और उत्सर्जित
भी करता है.
अब जब भी कोई व्यक्ति ध्यान में बैठता है तो मन में ईश्वर
के विचार लाता है जिससे उसका शरीर पॉजिटिव एनर्जी
उत्सर्जित करने लगता है तथा ये ऊर्जा उसके अंगो द्वारा
शरीर से बहार निकलने लगती है ध्यान करने वाले महा
ऋषियों को इस बात का ज्ञान था की अगर हम शरीर के
सिरों को एक दुसरे पर रख दे तो काफी समय तक ये
पॉजिटिव ऊर्जा हमारे शरीर में ही रहती है इसीलिए
ध्यान में बैठकर वो अंगुलियों को अंगूठे से मिला दिया
करते थे जिससे एक च्रक बन जाया करता था और बाहर
निकलने वाली ऊर्जा पुनह शरीर में प्रवेश कर जाती थी
( देखे चित्र). बौद्ध धर्म में हाथ के उपर हाथ भी इसीलिए
रखा जाता है ताकि शरीर में बनने वाली पॉजिटिव
ऊर्जा व्यर्थ न हो और वापस शरीर में चली जाये, यही
काम नमाज़ में भी होता है जब नियत बांधी जाती है,
दूसरी बात हमारा सिर बहुत अधिक ऊर्जा का उत्सर्जन
करता है अगर हम उसे किसी चीज़ से ढक दे तो ऊर्जा का
उत्सर्जन कम किया जा सकता है ढकने के लिए बाल बढ़ाये
जा सकते है या किसी कपडे से सिर को ढका जा सकता है
( ध्यान रहे बड़े बाल रखना सुन्नत है )
चलिए अब बात आती है ध्यान करने की जब भी ध्यान
किया जाता है तो पांच तत्वों में से एक महत्वपूर्ण तत्व
भूमि का उपयोग होना ज़रूरी है जो हमारी ऊर्जा को
शोषित करता है,ध्यान करने वाले ऋषि मुनि कहीं एकांत में
भूमि पर बैठकर ही ध्यान करते थे , अपने कभी गद्दे पर बैठकर
या फिर पेड़ पर लटक ध्यान करने वाले के बारे में नही सुना
होगा, दूसरा ध्यान पानी में रहकर भी किया जा सकता
है लेकिन वो काफी मुश्किल हो जाता है इसीलिए उसे
आम जनता के लिए नही रखा गया. मैंने जगह जगह इन तत्वों
के बारे में पढ़ा है लेकिन हल्का फुल्का इशारा ये मिला है
की परमात्मा को महसूस करने के लिए पांच तत्वों में से
कोई एक तत्व को माध्यम बनाना अति आवश्यक है.
अब एक बात पर गौर कीजिये हमारे शरीर के वो अंग जिनसे
ऊर्जा निकल रही है माथा, हाथ की उँगलियाँ, पैरो की
उँगलियाँ,हथेली है अगर में नंगे पैर खड़े होकर ध्यान करूं तो मेरे
पैर ज़मीन पर है और ऊर्जा उत्सर्जित रही है ज़ाहिर सी
बात है मैं अल्लाह का ध्यान कर रहा हु तो ऊर्जा
पॉजिटिव ही निकलेगी, ऊर्जा का एक सिधान्त आप सब
लोगो ने पढ़ा होगा ‘ अगर दो तत्वों में सम्बंध स्थापित
किया जाये तो ऊर्जा अधिक से कम की तरफ बहती है ‘
नमाज़ की अध्यात्मिक शक्ति – चलिए अब आते है
नमाज़ पर, मैंने नियत बांधी और अल्लाह का कलाम पढना
शुरू किया जिससे मेरे शरीर में पॉजिटिव एनर्जी
निकालनी शुरू हो गयी, उस एनर्जी को रोकने के लिए
अपने हाथो को एक दुसरे के ऊपर रखा ( नियत बांधी ),
अल्लाह हु अकबर कहकर रुकू में गया हथेलियों से निकलने
वाली पॉजिटिव ऊर्जा वापस घुटनों से शरीर में चली
गयी और जैसे ही सजदे में गया मेरे शरीर के वो सब अंग जो
पॉजिटिव ऊर्जा को निकाल रहे थे सब के सब एक साथ
भूमि पर आ गये , हथेलियाँ, उगलियाँ,माथा, मतलब इस समय
मेरे शरीर एक पॉजिटिव ऊर्जा को सबसे अधिक ताक़त से
बहार निकाल रहा है और भूमि के माध्यम से महान स्त्रोत
से ऊर्जा जुड़ रही है. ( सजदे में इंसान अल्लाह के सबसे
ज्यादा नजदीक होता है ) क्या ये बात इसीलिए कही
गयी थी.?
इसे रेडियो के काम करने के तरीके से अच्छी तरह समझ जा
सकता है, रेडियो स्टेशन से एक फ्रीक्वेंसी छोड़ी जाती है
तथा घर पर मौजूद ट्रांसिस्टर के चैनल को घुमाते है जैसे ही
रेडियो की फ्रीक्वेंसी ,स्टेशन से छोड़ी गयी फ्रीक्वेंसी के
बराबर हो जाती है वैसे ही रेडियो पर एक सम्बंध स्थापित
हो जाता है और हमे आवाज़ सुनाई देने लगती है.
दुआ के बाद हाथो को चेहरे पर फेरना, सिर पर फेरना भी इस
बात की निशानी है की पॉजिटिव ऊर्जा को अपने
आत्मसात करने वाले अंगो पर फेर दो जिससे जैसी एनर्जी
वो ग्रहण करेंगे वैसी ही ऊर्जा शरीर से निकलेगी.
इस बात से ये साबित होता है की नबी
सल्लाल्हूअलेहेवासल्लम ( अ.) ने उम्मत को दुसरे नबियो
से दो कदम आगे बढ़कर नूर से जुड़ने का सबसे आसान
तरीका बता दिया है.
मैं कुछ वाक्यों का ज़िक्र करता हु जिससे इस बात को
समझने में और आसानी होगी
एक बार एक युद्ध में हज़रत अली (र.) के पैर में तीर लग गया।
वह तीर पैर की हड्डी तक पहुंच गया था जिससे हज़रत अली
को बहुत पीड़ा होती थी। चिकित्सकों ने जितना प्रयास
किया किन्तु वे उस तीर को नहीं निकाल सके। एक
चिकित्सक ने कहा कि जब तक मांस और त्वचा को नहीं
चीरा जाएगा तीर नहीं निकल सकता। हज़रत अली के
निकटवर्तियों में से कुछ लोगों ने जिन्हें हज़रत अली
(र ) की विशेषताओं की पहचान थी और वे जानते थे कि
हज़रत अली (र ) किस सीमा तक ईश्वर की उपासना में
लीन हो जाते हैं कहाः अब ये तीर सिर्फ एक ही समय
निकाला जा सकता है , हज़रत अली ने नियत बाँधी रुकू में
गये और जैसे ही सजदे में गये वह तीर खींच लिया गया ,
क्या आप उम्मीद कर सकते है की हज़रत अली जैसी
शख्सियत जहाँ से पॉजिटिव एनर्जी का अम्बार निकल
रहा हो और वो जब सजदे में जाएँ और नूर से जुड़ जाये उस
समय दर्द का अहसास हो सकता है ?
ठीक ऐसा ही वाकया हज़रत ईमाम हुसैन (रज़ी.) की
शहादत के समय भी हुआ दुनिया भर की नजरो में वो सजदे
में शहीद हुए लेकिन सजदे में ही दुनिया पर रहने वाले नूर,
महान नूर में मिल गया.
क्या आप बता सकते है की नमाज़ के बाद मुसाफा करने
तथा किसी बुज़ुर्ग का हाथ सिर पर रखवाने से क्या
फ़ायदा हो सकता है ?
में नबी के ना होना इस बात को कतई साबित नही करता
के उसके लिए कोई नबी आये या नही, हदीस शरीफ़ के
मुताबिक एक लाख चौबीस हजार अम्बिया दुनिया पर
तशरीफ़ लाये लेकिन उसमे से मात्र कुछ दर्जनों का ही
ज़िक्र कुरान शरीफ़ में है, ऐसी ही एक सभ्यता है वैदिक
धर्म जो नबी के होने ना होने का कोई सुबूत नही देती
लेकिन अपने वेदों में हुजूरे अकरम सल्लाहो अलेहे वसल्लम का
ज़िक्र करती है. तो हम ये कतई नहीं कह सकते की फलां धर्म
के लिए कोई नबी आये या नही हो सकता है धर्म में काफी
बदलाव किया जा चूका हो.
अथर्व वेद अध्याय 20 में हम निम्नलिखित श्लोक देख
सकते हैं
• हे भक्तो! इसको ध्यान से सुनो। प्रशंसा किया गया,
प्रशंसा किया जाने वाला वह महामहे ऋषि साठ हजार
नब्बे लोगो के बीच आयेगा। मुहम्मद के मायने हैं जिसकी
प्रशंसा की गर्इ हो। आप स0 की पैदाइश के समय मक्का
की आबादी साठ हजार थी। वे बीस नर और मादा ऊटो
पर सवारी करेंगे। उनकी प्रशंसा और बड़ार्इ स्वर्ग तक
होगी। उस महा ऋषि के सौ सोने के आभूषण होंगे।
ऊट पर सवारी करने वाले महा ऋषि को हम भारत में
नही पाते।
अत: यह संकेत मुहम्मद स0 ही की ओर हैं। सौ सोने के आभूषण
से अभिप्रेत हबशा की हिजरत में जाने वाले आप सल्ल0 के
सौ प्राणोत्सगी मित्र हैं।
ये मात्र एक उदाहरण नही है ऐसे कई श्लोक वेदों में भरे पड़े है,
वैदिक धरम में ईश्वर की इबादत का जो तरीका बताया
गया है वह है ध्यान करना सीधे शब्दों में कहा जाये तो
ईश्वर के बारे में सोचना, अब इस ध्यान करने के तरीके पर
ज़रा गौर करते है ध्यान करते समय व्यक्ति सावधान की
मुद्रा में बैठता है तथा अपने दोनों पैर मोड़कर अपने घुटनों पर
अपनी कलाई रखता है चित्र में देखे
वैदिक धर्म तथा बौद्ध धर्म के अनुसार ध्यान के तरीके
ऊर्जा उत्सर्जन – अगर हम किसी से पूछे की ईश्वर क्या
है? अल्लाह क्या है? तो जवाब मिलेगा अल्लाह कोई वस्तु
नही है न उसके हाथ है न पैर वह इन सब चीजों से पाक है
अल्लाह एक नूर है, यही बात आध्यात्मिकता में कही
जाती है की ईश्वर का कोई अकार नही है वह निराकार है
ईश्वर एक ऊर्जा है.
आध्यात्मिकता के अनुसार हमारा शरीर पांच तत्वों से
मिलकर बना है भगवान, भ – भूमि ग – गगन व- वायु अ-
अनल न -नीर , यानी मिटटी,हवा,पानी,आकाश,आग,
आध्यात्मिकता के साथ साथ विज्ञान ने भी ये साबित
कर दिया है की हमारे शरीर के प्रत्येक अंग की एक
फ्रीक्वेंसी होती है यहाँ तक के हमारे विचारो की भी
एक फ्रीक्वेंसी होती है जो निर्भर करती है की हम कैसा
सोचते है अगर हम नेगेटिव सोचते है तो हमारे विचार
नकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन करते है तथा अच्छा ,
पॉजिटिव सोचने पर विचार सकारात्मक ऊर्जा को
उत्सर्जित करते है, लेकिन सवाल ये उठता है की ये
विचार आते कहाँ से है ? इसका जवाब भी हमारा शरीर
ही है कुछ अंग ऊर्जा को अब्सोर्ब ( आत्मसात ) करते है
तथा कुछ अंग ऊर्जा का उत्सर्जन करते है आत्मसात करने
वाले अंगो में आंख,नाक,कान,है तथा ऊर्जा उत्सर्जित करने
वालो अंगो में शरीर के अंतिम सिरे है जैसे हाथ तथा पैरो
की हथेली,अंगुलियाँ,सिर,माथा और दिमाग एक ऐसा
भाग है जो ऊर्जा आत्मसात भी करता है और उत्सर्जित
भी करता है.
अब जब भी कोई व्यक्ति ध्यान में बैठता है तो मन में ईश्वर
के विचार लाता है जिससे उसका शरीर पॉजिटिव एनर्जी
उत्सर्जित करने लगता है तथा ये ऊर्जा उसके अंगो द्वारा
शरीर से बहार निकलने लगती है ध्यान करने वाले महा
ऋषियों को इस बात का ज्ञान था की अगर हम शरीर के
सिरों को एक दुसरे पर रख दे तो काफी समय तक ये
पॉजिटिव ऊर्जा हमारे शरीर में ही रहती है इसीलिए
ध्यान में बैठकर वो अंगुलियों को अंगूठे से मिला दिया
करते थे जिससे एक च्रक बन जाया करता था और बाहर
निकलने वाली ऊर्जा पुनह शरीर में प्रवेश कर जाती थी
( देखे चित्र). बौद्ध धर्म में हाथ के उपर हाथ भी इसीलिए
रखा जाता है ताकि शरीर में बनने वाली पॉजिटिव
ऊर्जा व्यर्थ न हो और वापस शरीर में चली जाये, यही
काम नमाज़ में भी होता है जब नियत बांधी जाती है,
दूसरी बात हमारा सिर बहुत अधिक ऊर्जा का उत्सर्जन
करता है अगर हम उसे किसी चीज़ से ढक दे तो ऊर्जा का
उत्सर्जन कम किया जा सकता है ढकने के लिए बाल बढ़ाये
जा सकते है या किसी कपडे से सिर को ढका जा सकता है
( ध्यान रहे बड़े बाल रखना सुन्नत है )
चलिए अब बात आती है ध्यान करने की जब भी ध्यान
किया जाता है तो पांच तत्वों में से एक महत्वपूर्ण तत्व
भूमि का उपयोग होना ज़रूरी है जो हमारी ऊर्जा को
शोषित करता है,ध्यान करने वाले ऋषि मुनि कहीं एकांत में
भूमि पर बैठकर ही ध्यान करते थे , अपने कभी गद्दे पर बैठकर
या फिर पेड़ पर लटक ध्यान करने वाले के बारे में नही सुना
होगा, दूसरा ध्यान पानी में रहकर भी किया जा सकता
है लेकिन वो काफी मुश्किल हो जाता है इसीलिए उसे
आम जनता के लिए नही रखा गया. मैंने जगह जगह इन तत्वों
के बारे में पढ़ा है लेकिन हल्का फुल्का इशारा ये मिला है
की परमात्मा को महसूस करने के लिए पांच तत्वों में से
कोई एक तत्व को माध्यम बनाना अति आवश्यक है.
अब एक बात पर गौर कीजिये हमारे शरीर के वो अंग जिनसे
ऊर्जा निकल रही है माथा, हाथ की उँगलियाँ, पैरो की
उँगलियाँ,हथेली है अगर में नंगे पैर खड़े होकर ध्यान करूं तो मेरे
पैर ज़मीन पर है और ऊर्जा उत्सर्जित रही है ज़ाहिर सी
बात है मैं अल्लाह का ध्यान कर रहा हु तो ऊर्जा
पॉजिटिव ही निकलेगी, ऊर्जा का एक सिधान्त आप सब
लोगो ने पढ़ा होगा ‘ अगर दो तत्वों में सम्बंध स्थापित
किया जाये तो ऊर्जा अधिक से कम की तरफ बहती है ‘
नमाज़ की अध्यात्मिक शक्ति – चलिए अब आते है
नमाज़ पर, मैंने नियत बांधी और अल्लाह का कलाम पढना
शुरू किया जिससे मेरे शरीर में पॉजिटिव एनर्जी
निकालनी शुरू हो गयी, उस एनर्जी को रोकने के लिए
अपने हाथो को एक दुसरे के ऊपर रखा ( नियत बांधी ),
अल्लाह हु अकबर कहकर रुकू में गया हथेलियों से निकलने
वाली पॉजिटिव ऊर्जा वापस घुटनों से शरीर में चली
गयी और जैसे ही सजदे में गया मेरे शरीर के वो सब अंग जो
पॉजिटिव ऊर्जा को निकाल रहे थे सब के सब एक साथ
भूमि पर आ गये , हथेलियाँ, उगलियाँ,माथा, मतलब इस समय
मेरे शरीर एक पॉजिटिव ऊर्जा को सबसे अधिक ताक़त से
बहार निकाल रहा है और भूमि के माध्यम से महान स्त्रोत
से ऊर्जा जुड़ रही है. ( सजदे में इंसान अल्लाह के सबसे
ज्यादा नजदीक होता है ) क्या ये बात इसीलिए कही
गयी थी.?
इसे रेडियो के काम करने के तरीके से अच्छी तरह समझ जा
सकता है, रेडियो स्टेशन से एक फ्रीक्वेंसी छोड़ी जाती है
तथा घर पर मौजूद ट्रांसिस्टर के चैनल को घुमाते है जैसे ही
रेडियो की फ्रीक्वेंसी ,स्टेशन से छोड़ी गयी फ्रीक्वेंसी के
बराबर हो जाती है वैसे ही रेडियो पर एक सम्बंध स्थापित
हो जाता है और हमे आवाज़ सुनाई देने लगती है.
दुआ के बाद हाथो को चेहरे पर फेरना, सिर पर फेरना भी इस
बात की निशानी है की पॉजिटिव ऊर्जा को अपने
आत्मसात करने वाले अंगो पर फेर दो जिससे जैसी एनर्जी
वो ग्रहण करेंगे वैसी ही ऊर्जा शरीर से निकलेगी.
इस बात से ये साबित होता है की नबी
सल्लाल्हूअलेहेवासल्लम ( अ.) ने उम्मत को दुसरे नबियो
से दो कदम आगे बढ़कर नूर से जुड़ने का सबसे आसान
तरीका बता दिया है.
मैं कुछ वाक्यों का ज़िक्र करता हु जिससे इस बात को
समझने में और आसानी होगी
एक बार एक युद्ध में हज़रत अली (र.) के पैर में तीर लग गया।
वह तीर पैर की हड्डी तक पहुंच गया था जिससे हज़रत अली
को बहुत पीड़ा होती थी। चिकित्सकों ने जितना प्रयास
किया किन्तु वे उस तीर को नहीं निकाल सके। एक
चिकित्सक ने कहा कि जब तक मांस और त्वचा को नहीं
चीरा जाएगा तीर नहीं निकल सकता। हज़रत अली के
निकटवर्तियों में से कुछ लोगों ने जिन्हें हज़रत अली
(र ) की विशेषताओं की पहचान थी और वे जानते थे कि
हज़रत अली (र ) किस सीमा तक ईश्वर की उपासना में
लीन हो जाते हैं कहाः अब ये तीर सिर्फ एक ही समय
निकाला जा सकता है , हज़रत अली ने नियत बाँधी रुकू में
गये और जैसे ही सजदे में गये वह तीर खींच लिया गया ,
क्या आप उम्मीद कर सकते है की हज़रत अली जैसी
शख्सियत जहाँ से पॉजिटिव एनर्जी का अम्बार निकल
रहा हो और वो जब सजदे में जाएँ और नूर से जुड़ जाये उस
समय दर्द का अहसास हो सकता है ?
ठीक ऐसा ही वाकया हज़रत ईमाम हुसैन (रज़ी.) की
शहादत के समय भी हुआ दुनिया भर की नजरो में वो सजदे
में शहीद हुए लेकिन सजदे में ही दुनिया पर रहने वाले नूर,
महान नूर में मिल गया.
क्या आप बता सकते है की नमाज़ के बाद मुसाफा करने
तथा किसी बुज़ुर्ग का हाथ सिर पर रखवाने से क्या
फ़ायदा हो सकता है ?
नमाज़
إِنَّ الصّلوةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَابًا مَّوْقُوتًا
1. नमाज़ मोमिनों पर वक़्त की पाबंदी के साथ वाजिब कर दी गई है।(निसा103)
حَافِظُواْ عَلَى الصَّلَوَاتِ والصَّلوةِ الْوُسْطَى
2. तमाम नमाज़ों की और ख़ुसूसन दरमियानी नमाज़ की पाबंदी करो। (बक़रह 238)
وَأْمُرْ أَهْلَكَ بِالصَّلوةِ وَاصْطَبِرْ عَلَيْهَا
3. अपने अहल को नमाज़ का हुक्म दो और फिर सब्र करो। (ताहा 132)
أَقِمِ الصَّلاَةَ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ إِلَى غَسَقِ اللَّيْلِ وَقُرْآنَ الْفَجْرِ إِنَّ قُرْآنَ الْفَجْرِ كَانَ مَشْهُودًا
4. ज़वाले आफ़ताब, तारीकिये शब और फ़ज्र के वक़्त नमाज़ क़ाइम करो। (इसरा 78)
فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ
5. नमाज़ के वक़्त अपना रुख़ मस्जिदुल हराम की तरफ़ कर लिया करो। (बक़रह 144)
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ارْكَعُوا وَاسْجُدُوا وَاعْبُدُوا رَبَّكُمْ
6. ईमान वालो! रुकूअ, सजदह और इबादते परवर दिगार करो।(हज77)
وَلاَ تَجْهَرْ بِصَلاَتِكَ وَلاَ تُخَافِتْ بِهَا
7. तमाम नमाज़ें न बलन्द आवाज़ से पढ़ो न आहिस्ता। (इसरा 110)
وَأَقِمِ الصَّلوةَ لِذِكْرِي
8. मेरे ज़िक्र के लिए नमाज़ क़ाइम करो। (ताहा14)
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا نُودِي لِلصَّلوةِ مِن يَوْمِ الْجُمُعَةِ فَاسْعَوْا إِلَى ذِكْرِ اللَّهِ
9. ऐ ईमान लाने वालों ! जब जुमे के दिन नमाज़ के लिए बुलाया जाये तो तो अल्लाह के ज़िक्र के लिए दौड़ पड़ो। (जुमुआ 9)
وَإِذَا ضَرَبْتُمْ فِي الأَرْضِ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَقْصُرُواْ مِنَ الصَّلوةِ
10. जब तुम सफ़र करो तो नमाज़ें कस्र कर दो। (निसा101)
فَإنْ خِفْتُمْ فَرِجَالاً أَوْ رُكْبَانًا
11. खौफ़ की मंज़िल में हो तो पयादा या सवारी पर ही नमाज़ पढ़लो। (बक़रह239)
وَأَقِيمُواْ الصَّلوةَ وَآتُواْ الزَّكَوةَ وَارْكَعُواْ مَعَ الرَّاكِعِينَ
12. नमाज़ क़ाईम करो, ज़कात दो और जमाअत के साथ रुकूअ करो। (बक़रह 43)
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