Monday, 6 April 2015

प्रोन्नति पर दोनों पक्ष फिर हुये आमने -सामने

सभी विभागों में रद्द हुई परिणामी सीनियरिटी तो बदल जाएगा दफ्तरों का प्रशासनिक ढांचा : प्रोन्नति पर दोनों पक्ष फिर हुये आमने -सामने
सभी विभागों में रद हुई परिणामी सीनियरिटी तो बदल जाएगा
दफ्तरों का प्रशासनिक ढांचा2 लाख कर्मियों में डिमोशन का डर
प्रस्ताव में कहा गया कि अनुच्छेद 335 राज्य सरकारों को ऐसा कोई कानून बनाने से नहीं रोकेगा, जिसमें वह एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण और परिणामी ज्येष्ठता का लाभ देना चाहते हों। चूंकि यूपी सरकार ने 1995 में यह नियम लागू किया था, इसलिए संशोधन विधेयक को 17 जून 1995 से लागू करने का प्रावधान किया गया। राज्यसभा से विधेयक पास हो गया। इस दौरान कई राज्यों में बड़ा आंदोलन चला। हालांकि आरक्षण चाहने वालों ने काम जारी रखा। राज्यसभा से पास होने के बाद यह बिल अब तक लोकसभा में अटका हुआ है।
19 अक्टूबर 2006 को एम नागराज केस में संविधान पीठ के फैसले को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा केवल तीन आधार पर प्रमोशन में आरक्षण हो सकता है। सरकारी सेवा में एससी कम हों, अधिकारियों को समुचित प्रतिनिधित्व न मिले। उससे काम-काज पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े।
भांप नहीं सके सुगबुगाहट
पिछले दिनों होमगार्ड विभाग और पुलिस विभाग में कुछ अधिकारी डिमोट किए गए थे। यह सुगुबुगाहट तभी शुरू हो गई थी कि आरक्षण के आधार पर मिला प्रमोशन रद करने की कवायद शुरू हो चुकी है। हालांकि इसे विभागीय आदेश बताकर मामले को दबाने की कोशिश की गई। सूत्रों की मानें तो सरकार ने एक सामान्य आदेश सभी विभागों के लिए इसलिए नहीं जारी किया क्योंकि इससे आंदोलन और विरोध की स्थिति पैदा हो सकती थी। लगभग सभी विभागों में अंदरखाने डिमोशन और प्रमोशन दोनों की ही सूची तैयार हो चुकी है। सामान्य आदेश आते ही इसका असर दिखा देने लगेगा।
2012  : हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ बीएसपी सरकार सुप्रीम कोर्ट गई। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा।
2011 : 4 जनवरी को हाई ञँञकोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण व व परिणामी ज्येष्ठता को गैरकानूनी बताया और प्रक्रिया रोक दी।
2007 : में फिर बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनी। उसने फिर से प्रदेश में आरक्षण का नियम लागू कर दिया।
2005 : में मुलायम सरकार आई। उसने पहले से लागू किया गया परिणामी ज्येष्ठता का नियम समाप्त कर दिया।
2002 : में बीएसपी-बीजेपी सरकार ने परिणामी ज्येष्ठता के आधार पर प्रमोशन का नियम बनाया। इससे जूनियर सीनियर बनने लगे।
1994 : बीएसपी-सपा सरकार ने एससी-एसटी संवर्ग के लिए प्रमोशन में आरक्षण का कानून बनाया जो 1997 से लागू हुआ।
प्रमोशन में आरक्षण का सवाल जब भी सियासत के पर्चे में आता है उसका जवाब वोट की किताब में ही तलाशा जाता है। नजीर के तौर पर बीजेपी को ही ले लीजिए। सपा सरकार को छींक आने पर भी प्रवक्ताओं में बयान जारी करने की होड़ लग जाती है। सवाल आरक्षण पर फैसले का उठा तो प्रदेश प्रवक्ता मनोज मिश्र कहते हैं कि नेतृत्व राष्ट्रीय कार्यकारिणी में व्यस्त है इसलिए उनसे बात किए बना वह कुछ नहीं कह पाएंगे। जाहिर है फैसले से प्रदेश के 22 लाख कर्मचारियों में हलचल है लेकिन सियासत अपना सुर नफा-नुकसान तौल ही साधेगी।
पिछले विधानसभा चुनाव में भी प्रोन्नति में आरक्षण मुद्दा बना था। सपा इसे खत्म करने के वादे के साथ आई थी। 2012 में इस पर आए संविधान संशोधन के विरोध में सपा इकलौती मुखर थी। उसे लगा कि लोकसभा चुनाव में पिछड़ा, मुस्लिम वोटों के साथ ही सवर्ण वोट भी वह साध सकेगी। हालांकि मोदी लहर में कोई समीकरण टिक नहीं सका। अब विधानसभा चुनाव से दो साल पहले परिणामी ज्येष्ठता के आधार पर प्रमोशन पाए लोगों को डिमोट करने का सरकार का फैसला जितना अमल में आएगा सियासत उतना गहराएगी। सपा का रुख और वोटबैंक दोनों ही इस मसले पर साफ है। सुस्त पड़ी बीएसपी को जरूर इससे मौका मिलेगा। राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं कि फैसला दलित विरोधी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण की आवश्यकता का सर्वे होना चाहिए। कहीं भी किसी को डिमोट करने की बात नहीं हुई थी। खुद मुलायम जब सत्ता में थे तब प्रमोशन में आरक्षण का फैसला हुआ था। बीएसपी इसका हर स्तर पर विरोध करेगी।
कांग्रेस-बीजेपी का 'धर्मसंकट'
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए कांग्रेस सरकार खुद संशोधन विधेयक लेकर आई थी। अब जब पार्टी के बुरे दिन चल रहे हैं वह इस मुद्दे पर मुखर होने से कतरा रही है। सबका साथ की बात कर सत्ता में आई बीजेपी भी हां-ना करते हुए विधेयक पर कांग्रेस के साथ हो गई थी। लोकसभा में दलित वोट जोड़ने में सफल रही बीजेपी विधानसभा में भी इसे अपने साथ रखना चाहती है। फैसले का विरोध करती है तो सवाल सर्वण-पिछड़े वोट पर खड़ा होगा और समर्थन करती है तो दलित विरोधी का ठप्पा लग सकता है। ऐसे में पार्टी ने चुप रहना ही बेहतर समझा।
मिस्टर एक्स और मिस्टर वाई दोनों 1986 बैच में असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर भर्ती हुए थे। एक सामान्य  या पिछड़े श्रेणी के हैं तो दूसरे अनुसूचित जाति के। एक ही बैच के होने के कारण दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी। प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण होने पर एक्स एई ही रह गए और वाई एक्जीक्यूटिव इंजीनियर होकर बॉस बन गए। इससे दोनों के बीच खटास आ गई। कई साल बीत गए और धीरे-धीरे दिलों की खाई पट सी गई। इसी बीच प्रदेश सरकार ने आदेश जारी कर दिए कि नवंबर 1997 के बाद जिन्हें आरक्षण से प्रमोशन मिला है, उन्हें फिर से डिमोट किया जाएगा। प्रदेश सरकार ने ऐसा निर्णय सुप्रीम कोर्ट में चल रहे इस मामले में अवमानना से बचने के लिए लिया है। इस आदेश के बाद अब वाई को फिर से एई के पद पर काम करना होगा। इससे दोनों के बीच एक बार फिर से कड़वाहट आ गई। अब वाई को लग रहा है कि मैं जिसका बॉस रहा, उसके साथ फिर से काम करना होगा।
कहानी हर ऑफिस की...
यह सिर्फ दो लोगों की बात नहीं है। पूरे सिंचाई महकमे में करीब 30 इंजीनियर और 1000 कर्मचारी हैं, जिन्हें इस आदेश के बाद डिमोट किया जाएगा। सिंचाई विभाग में सभी जातियों के करीब 1.5 लाख कर्मचारी हैं, जिनमें लगभग 40 हजार एससी/एसटी हैं। बहस में ये सब शामिल हैं। प्रमोशन में आरक्षण की यह नीति सभी विभागों में लागू है तो ऐसे में इसका असर सभी जगह होगा।
प्रदेश के राज्य कर्मचारियों में इस वक्त डिमोशन का खौफ है। सूबे में परिणामी ज्येष्ठता के आधार पर 15 सालों में हुए प्रमोशन रद हुए तो लगभग दो लाख कर्मचारियों की कुर्सी पलट जाएगी। इसमें हजारों कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। सरकार ने हालांकि कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान न हो इसके लिए उनको मिल रही आर्थिक सुविधाओं को बहाल रखने का फैसला किया है। फिर भी इस व्यवस्था के लागू होने से विभागों के प्रशासनिक ढांचे में बड़ा बदलाव नजर आ सकता है। फैसले के विरोध में आरक्षण समर्थक कर्मचारी 6 अप्रैल से आंदोलन शुरू कर रहे हैं।
कार्मिक विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को आधार बनाकर कहा है कि 15 नवंबर 1997 के बाद पदोन्नति में आरक्षण का लाभ और परिणामी ज्येष्ठता प्राप्त कर जो कर्मचारी प्रमोशन पाए हैं, उन्हें डिमोट कर दिया जाए। यह डिमोशन उस पद के स्तर तक होगा जहां तक उनके समकक्ष कर्मचारी जिन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिला है, काम कर रहे हैं। सपा सरकार ने अपने चुनावी अजेंडे में भी प्रमोशन में आरक्षण खत्म करने की बात कही थी। चूंकि परिणामी ज्येष्ठता के आधार पर प्रमोशन 2012 तक हुआ था इसलिए सभी विभागों में इन 15 सालों में प्रमोशन पाने वाले कर्मचारी प्रभावित होंगे। कर्मचारी संगठनों की मानें तो शिक्षा विभाग में ही ऐसे 30 हजार कर्मचारी होंगे। सिंचाई विभाग में महज 30 इंजीनियरों के डिमोशन की बात आ रही है लेकिन वह केवल ए श्रेणी के पदों की है। यह आदेश सभी श्रेणी के पदों पर लागू होना है इसलिए संख्या और बढ़ेगी। अहम यह है कि नई सीनियरिटी लिस्ट बनने के बाद जो सीनियर बने थे वह समकक्ष या जूनियर हो जाएंगे। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि इसका असर आपसी सामंजस्य और काम पर पड़ना तय है।
इसलिए लागू करना होगा शासनादेश
28 अप्रैल 2012 के शासनादेश में कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण और परिणामी ज्येष्ठता से पदोन्नति प्राप्त कर्मियों के संबंध में जब तक कोई निर्देश प्रसारित न हो तब तक उनके डिमोशन की कार्यवाही न की जाए। अब 30 मार्च को कार्मिक विभाग का जो शासनादेश सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव को संशोधित कर जारी किया गया है उसमें साफ लिखा है कि पूर्व का आदेश इस सीमा तक संशोधित समझा जाए। 28 अप्रैल का शासनादेश सभी विभागों के लिए हुआ था इसलिए संशोधन भी सभी विभागों पर समान रूप से लागू करना होगा।
पदोन्नति में आरक्षण और परिणामी ज्येष्ठता के खिलाफ सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ने वाली सर्वजन हिताय संरक्षण समिति ने फैसले का स्वागत किया है। अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे का कहना है कि डिमोशन से खाली पदों को सामान्य एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के योग्य अभ्यर्थियों से भरने की कार्रवाई सरकार शुरू करे। समिति के डीसी दीक्षित का कहना है कि असंवैधानिक आधार पर प्रमोट हुए कर्मचारियों को डिमोट करने का आदेश सभी विभागों और निगमों को भेजा जाना चाहिए। रिक्त हो रहे पदों को एकल वरिष्ठता सूची के आधार पर प्रमोशन से भरा जाना चाहिए। अख्तर अली फारुखी का कहना है कि आदेश जारी करने में लिपकीय त्रुटि है। पिछला आदेश सभी विभागों से जुड़ा था इसलिए कार्मिक विभाग का मौजूदा आदेश सभी प्रमुख सचिवों को भेजा जाए।
आरक्षण एवं परिणामी ज्येष्ठता के आधार पर प्रमोशन पाए कर्मचारियों को रिवर्ट किए जाने के फैसले के बाद कर्मचारी बंट गए हैं। आरक्षण समर्थक कर्मचारियों ने जहां सरकार के फैसले के खिलाफ आंदोलन पर जाने का निर्णय लिया है, वहीं आरक्षण विरोधी कर्मचारियों ने आदेश को सभी विभागों में लागू करने की मांग की है।
आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक मंडल की बैठक शनिवार को फील्ड हॉस्टल में हुई, जिसमें कई विभागों के कर्मचारी शामिल हुए। होमगार्ड, पुलिस और अब सिंचाई विभाग में डिमोशन किए जाने की कार्यवाही की घोर निन्दा की गई और सरकार के निर्णय के खिलाफ लड़ाई का ऐलान किया गया। सोमवार को पूरे प्रदेश में 8 लाख आरक्षण समर्थक कर्मचारी अपने-अपने विभागों में काली पट्टी बांधकर विरोध करेंगे। सोमवार को सिंचाई विभाग कार्यालय पर प्रदर्शन होगा और आगे के आंदोलन की भूमिका तय होगी।
खबर साभार :  दैनिक जागरण / नवभारत टाइम्स  / डेली न्यूज एक्टिविस्ट

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