Saturday 2 July 2016

نہ ادھر کے رہے، نہ ادھر کے رہے

ایس اے ساگر

ہندوستان میں آئے دن 'لیو ان ریلیشن شپ' کے تاریک پہلو اجاگر ہورہے ہیں. مرکزی دارالحکومت دلی میں ایک شادی شدہ عورت اور مرد کی بدچلنی کے ایک ایسے شرمناک واقعہ پر سے پردہ ہٹا ہے جس نے مشرقی اقدار کی چولیں ہلاکے رکھ دی ہیں. دہلی ہائی کورٹ نے گذشتہ روز عصمت دری معاملے میں ملزم کو بری کرتے ہوئے کہا ہے کہ اگر عورت بالغ ہے اور وہ شادی کے وعدہ کے عنوان پر تعلقات بنانے کے لئے رضامندی ہوتی ہے اور طویل عرصہ تک اس تعلق میں رہتی ہے تو یہ ایکٹ باہمی رضامندی تعلق
بنانے کے زمرے میں آئے گا نہ کہ غلط فہمی میں. عدالت نے ایک ایسے معاملے میں ہی لڑکی کے بیان کو
ناقابل یقین قرار دیتے ہوئے عصمت دری کے ملزم کو بری کر دیا.

کیا ہے معاملہ؟

یہ معاملہ پالم ولیج علاقے کا ہے. پولیس کے مطابق خاتون نے شکایت درج کروائی تھی کہ اگست 2013
سے لے کر نومبر 2013 کے دوران ملزم نے اسے شادی کا جھانسہ دیا اور اس کے ساتھ تعلقات قائم کئے. پولیس نے اس شکایت کی بنیاد پر 9 مارچ 2014 کو
ملزم کے خلاف عصمت دری اور دھوکہ دہی کا مقدمہ درج کر لیا. تاہم ملزم نے اپنے دفاع میں کہا کہ اسے اس معاملے میں پھنسایا گیا ہے.

 شادی شدہ مرد پر ڈالے ڈورے :

خاتون نے اسے خود فون کیا تھا اور پھر دونوں کی باہمی رضامندی سے تعلقات قائم ہو ئے تھے. اس نے عورت کو بتادیا تھا کہ وہ خود شادی شدہ ہے اور دو بچے بھی ہیں. اس معاملے میں ذیلی عدالت نے تمام گواہوں اور ثبوتوں کی بنیاد پر ملزم کو 10 سال
قید کی سزا سنائی جس کے بعد ملزم نے معاملے میں ہائی کورٹ کا دروازہ کھٹکھٹایا.

متاثرہ کو بتایا ناقابل اعتبار :

ہائی کورٹ نے کہا کہ معاملے میں ملزم کو متاثرہ خاتون کے بیان پر سزا سنائی گئی ہے. قانون کہتا ہے کہ لڑکی کا بیان اگر پختہ ہو اور قابل اعتماد ہو تو اس بیان کی بنیاد پر مجرم قرار دیا جا سکتا ہے. اس معاملے میں لڑکی نے بیان دیا تھا کہ وہ ملزم سے ملی تھی اور اسی دوران دونوں میں دوستی ہوئی
اور محبت ہو گئی. اس دوران ملزم اس کے گھر
آکر رکتا بھی تھا. پھر 12 دسمبر 2012
شادی کی تجویز پیش کی، دونوں بالاجی گئے اور وہاں ہوٹل میں دونوں میں جسمانی تعلقات قائم ہوئے.

دوکشتیوں کی سواری :

ملزم کے کہنے پر اس نے اپنے شوہر سے طلاق لے لی. نومبر 2014 تک اس نے رشتے قائم کئے اور اس کے بعد غائب ہوگیا. ہائی کورٹ نے اپنے فیصلے میں کہا کہ خاتون 34 سال کی تھی. دونوں میں دوستی
تھی. 12 دسمبر 2012 کو خاتون کے لئے شادی کی تجویز پیش کی گئی لیکن اس کے پہلے بھی دونوں میں تعلقات قائم تھے. ایسا کوئی ثبوت نہیں ہے کہ شادی کے وعدہ پر تعلقات استوار ہوئے تھے.

عورت پر پڑی لتاڑ :

عورت بالغ تھی اور اسے علم تھا کہ دونوں میں کیا ہو رہا ہے اور اس کا نتیجہ کیا ہو سکتا ہے پھر بھی
اس نے روابط قائم  کئے. اگر ایک بالغ عورت جسمانی تعلقات قائم کرنے پر رضامند ہوتی ہے اور طویل عرصہ تک اس کے تعلق میں رہتی ہے تو یہ اسے اپنی
مرضی سے تعلقات قائم کرنا کہا جائے گا، اسے غلط فہمی قرار نہیں دیا جا سکتا. دونوں شادی شدہ تھے ایسی صورت میں عورت کا یہ بیان قابل اعتماد نہیں ہے کہ شادی کے وعدہ کی وجہ سے جسمانی تعلقات قائم کرنے کے لئے رضامند ہوئی .

ترے انجام پہ رونا آیا :

عدالت نے کہا کہ دونوں میں جسمانی تعلقات رضامندی سے تھے اور شادی کے وعدہ کی وجہ سے ایسا ہوا تھا، یہ ثابت نہیں ہوتا. عدالت نے کہا کہ
لڑکی کے بیان پر ملزم کو مجرم قرار دیا جا سکتا ہے لیکن بیان اعلی عدلیہ کا ہونا چاہئے. اس معاملے میں خاتون کا بیان قابل اعتماد نہیں ہے. ایف آئی آر میں تاخیر کی کوئی وجہ نہیں ہے ساتھ ہی لڑکی کا بیان مشکوک ہے. ہائی کورٹ نے کہا کہ حالات کے ثبوت استغاثہ کی کہانی کو اسپرٹ نہیں کرتا. ایسے میں نچلی عدالت کے فیصلے کو مسترد کیا جاتا ہے اور
ملزم کو بری کیا جاتا ہے.

It was live-in relationship

By S A Sagar

The court set aside the order passed by the trial court in 2013 in which it had convicted the man for alleged offences and had awarded him a 10-year jail along with a fine of Rs 15,000. According to reports, June 19, 2016. the Delhi High Court has acquitted a man, who was jailed for 10 years by a trial court for raping a woman in Delhi in 2011, observing that she was in a live-in relationship with him and her statement regarding the alleged incident was suffering from ‘serious infirmities’.
The court set aside the order passed by the trial court in 2013 in which it had convicted the man for alleged offences under sections 376 (rape) and 506 (criminal intimidation) of the IPC and had awarded him a 10-year jail along with a fine of Rs 15,000.
“From the above documents (referred in the judgement), which have not been considered in right perspective by trial court, it is clear that the prosecutrix (woman), who had been living alone away from her husband in Delhi, was in live-in relationship with the appellant (man),” Justice Pratibha Rani said.

While allowing the appeal filed by the man against his conviction, the high court said that ‘deliberate improvements’ were made by the woman on material points related to the case and her testimony does not inspire confidence.

लंबे समय तक रिलेशनशिप स्वच्छंद संबंध है
न कि गलतफहमी

दिल्ली हाई कोर्ट ने रेप मामले में
आरोपी को बरी करते हुए कहा है
कि अगर महिला परिपक्व है और वह शादी के
वादे के नाम पर रिलेशनशिप बनाने के लिए सहमति
देती है और लंबे समय तक उस रिलेशनशिप
में रहती है तो यह ऐक्ट स्वच्छंद संबंध
बनाने के श्रेणी में आएगा न कि
गलतफहमी में। अदालत ने एक ऐसे मामले में
ही लड़की के बयान को
अविश्वसनीय करार देते हुए रेप के
आरोपी को बरी कर दिया।
यह मामला पालम विलेज इलाके का है। पुलिस के मुताबिक महिला ने शिकायत दर्ज कराई थी कि अगस्त 2013 से लेकर नवंबर 2013 के बीच में
आरोपी ने उसे शादी का झांसा दिया और उसके साथ संबंध बनाए।
पुलिस ने इस शिकायत के आधार पर 9 मार्च 2014 को आरोपी के खिलाफ रेप और
धोखाधड़ी का केस दर्ज कर लिया। हालांकि
आरोपी ने अपने बचाव में कहा कि उसे इस
मामले में फंसाया गया है।
महिला ने उसे खुद कॉल किया था और फिर दोनों की रजामंदी से रिलेशन बने थे। उसने महिला को बताया था कि वह खुद शादीशुदा है और दो बच्चे भी हैं।
इस मामले में निचली अदालत ने तमाम गवाहों
और साक्ष्य के आधार पर आरोपी को 10 साल
कैद की सजा सुनाई जिसके बाद
आरोपी ने मामले में हाई कोर्ट का दरवाजा
खटखटाया।
हाई कोर्ट ने कहा कि मामले में आरोपी को
विक्टिम के बयान पर सजा सुनाई गई है। कानून कहता है कि लड़की का बयान अगर पुख्ता हो और
विश्वसनीय हो तो उस बयान के आधार पर
दोषी करार दिया जा सकता है। इस मामले में
लड़की ने बयान दिया था कि वह
आरोपी से मिली थी
और इसी दौरान दोनों में दोस्ती हुई
और प्यार हो गया। इस दौरान आरोपी उसके घर
आकर रुकता भी था। फिर 12 दिसंबर 2012
को शादी का प्रस्ताव दिया, दोनों
बालाजी गए और वहां होटल में दोनों में
शारीरिक संबंध बने। आरोपी के
कहने पर उसने अपने पति से तलाक ले लिया। नवंबर
2014 तक उसने संबंध बनाए और उसके बाद गायब हो
गया।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिला 34 साल
की थी। दोनों में दोस्ती
थी। 12 दिसंबर 2012 को महिला को
शादी का प्रस्ताव दिया गया लेकिन उसके पहले
भी दोनों में संबंध बने थे। ऐसा कोई साक्ष्य
नहीं है कि शादी के वादे पर
रिलेशन बने थे। महिला परिपक्व थी और उसे
पता था कि दोनों में क्या हो रहा है और उसका
नतीजा क्या हो सकता है फिर भी
उसने रिलेशन बनाए। अगर एक परिपक्व लेडी
शारीरिक संबंध के लिए सहमति
देती है और लंबे समय तक उस रिलेशनशिप
में रहती है तो ये इसे अपनी
मर्जी से संबंध बनाना कहा जाएगा उसे
गलतफहमी की संज्ञा
नहीं दी जा सकती।
दोनों शादी-शुदा थे ऐसे में महिला का यह बयान
विश्वसनीय नहीं है कि
शादी के वादे के कारण शारीरिक
संबंध बनाने की सहमति दी।.
अदालत ने कहा कि दोनों में शारीरिक संबंध
सहमति से था और शादी के वादे के कारण ऐसा
था यह साबित नहीं होता।
अदालत ने कहा कि
लड़की के बयान पर आरोपी को
दोषी करार दिया जा सकता है लेकिन बयान उच्च
कोटि का होना चाहिए। इस मामले में महिला का बयान
विश्वसनीय नहीं है।
एफआईआर में देरी का कोई कारण
नहीं है साथ ही
लड़की का बयान संदिग्ध है।
हाई कोर्ट ने
कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य अभियोजन पक्ष
की कहानी को सपॉर्ट
नहीं करता। ऐसे में निचली
अदालत के फैसले को खारिज किया जाता है और
आरोपी को बरी किया जाता है।

http://nbt.in/t_TreZ/bga
राजेश चौधरी, नई दिल्ली

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