Tuesday 1 September 2015

'गुड तालिबान' और 'बैड तालिबान'

दो दिन पहले मैं एक ऐसे शहर से वापस दिल्ली
लौटा हूँ जिसे कोलम्बस की अमरीका
की खोज से 81 साल पहले यानी
1411 में सुल्तान अहमद शाह ने बसाया था. ये अब गुजरात
का सबसे बड़ा और भारत का सातवां सबसे बड़ा शहर है.
मैं कई सालों से अहमदाबाद जाता रहा हूँ. पहली बार
इसे इतना 'स्वच्छ' देखा है. शायद प्रधानमंत्री के
स्वच्छता अभियान का ये एक जीता जागता उदाहरण
है.
मेरे वहां पहुँचने के दो दिन पहले शहर में पटेलों की
एक महारैली में लाखों लोगों का जमावड़ा लगा था इसके
बावजूद शहर में कमाल की सफ़ाई नज़र आई.
पहले जब दंगे होते थे तो केवल शहरों में कर्फ़्यू लगते थे.
गुजरात सरकार ने इस बार हुए अशांति के कारण शहरों के अलावा
सोशल मीडिया और इंटरनेट पर भी कर्फ़्यू
लगा दिया था.
इसी कारण मुझे बहुत बाद में पता चला कि औरंगज़ेब
की भी घर वापसी हो गई है.
मैं अपने भाई के ड्राइवर औरंगज़ेब की बात
नहीं कर रहा हूँ बल्कि मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब
की घर वापसी की बात कर
रहा हूँ.
औरंगज़ेब से लंबी सड़क की उम्र
दिल्ली के लुटियन ज़ोन के औरंगज़ेब रोड का नाम
अब्दुल कलाम रोड रखने का फ़ैसला किया जा चुका है.
औरंगज़ेब लगभग 90 साल की उम्र में मरे. कम से
कम दिल्ली की एक सड़क को दिया गया
उनका नाम उनकी उम्र से अधिक जीवित
रहा.
मुझे सड़क से औरंगज़ेब के नाम मिटाये जाने का ग़म
नहीं हुआ. मुझे अफ़सोस हुआ अब्दुल कलाम
की बेइज़्ज़ती पर.
क्या 'मिसाइल मैन' का इतना ही सम्मान है कि 'एक
कट्टर मुस्लिम' सम्राट के नाम पर उनके नाम की
तख़्ती लगा दें?
माना कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने
उन्हें भारत रत्न और दूसरे पुरस्कारों से नवाज़ा.
ये भी माना कि उनकी मौत पर हिन्दू,
मुस्लिम और गंगा-जमनी तहज़ीब के
अलंबरदारों ने ट्विटर और फ़ेसबुक पर ख़ूब आंसू बहाए. और ये
भी माना कि उनका अंतिम संस्कार
प्रधानमंत्री की मौजूदगी में
तोपों की सलामी के साथ हुआ.
लेकिन दिल्ली की सड़क से औरंगज़ेब जैसे
'हिन्दू-विरोधी' सम्राट का नाम हटाकर इससे देशभक्त
अब्दुल कलाम का नाम जोड़ना लोकप्रिय पूर्व राष्ट्रपति का क़द छोटा
करने के बराबर है.
'सरासर अपमान है'
अगर शाहजहाँ रोड का नाम बदल कर अब्दुल कलाम रोड रखते तो
मुझे कोई आपत्ति नहीं होती क्योंकि
शाहजहाँ रोमांटिक स्वभाव के थे और उन्होंने ताजमहल बनवाया.
लेकिन औरंगज़ेब ने 'मंदिरों को तुड़वाया', हिन्दुओं पर जज़िया टैक्स
लागू किया और 'सूफ़ी इस्लाम को पनपने
नहीं दिया'. उन्होंने म्यूज़िक का 'गला घोट दिया'.
इस 'कट्टर' सुन्नी सम्राट का मुक़ाबला भारत को
मिसाइल पावर बनाने वाले देशप्रेमी अब्दुल कलाम से
कैसे किया जा सकता है? ये सरासर उनका अपमान है.
लेकिन कहते हैं कि इस तरह की प्रतिक्रियाएं
सतही ज्ञान रखने वालों की तरफ़ से
ही आ सकती हैं.
ऐसा लगता है कि नाम बदलने की प्रक्रिया से जुड़े
तमाम लोगों ने औरंगज़ेब और अब्दुल कलाम की
पर्सनालिटी का गहरा अध्ययन किया है और इस
नतीजे पर पहुंचे हैं कि दोनों व्यक्तियों में
काफ़ी समानताएं हैं.
उनके रिसर्च से उन्हें ये ज़रूर पता चला होगा कि दोनों मुसलमान हैं,
एक अच्छा मुसलमान और दूसरा बुरा मुसलमान. ठीक
उसी तरह से जैसे अमरीका ने कुछ साल
पहले 'गुड तालिबान' और 'बैड तालिबान' तलाशने की
कोशिश की थी.
तो अगर एक मुसलमान का नाम हटाकर दूसरे मुसलमान का नाम इस
सड़क को दे दिया जाए तो मुस्लिम समुदाय को बुरा नहीं
लगेगा.
दोनों में समानता भी थी
नाम बदलने वालों ने ये भी खोज निकाला होगा कि
औरंगज़ेब और अब्दुल कलाम दोनों काफ़ी साधारण
व्यक्ति थे और बहुत ही साधारण ज़िंदगी
गुज़ारते थे.
दोनों सरकारी राजकोष को जनता की संपत्ति
मानते थे.
दोनों ने अपने-अपने समय में देश का नाम ऊंचा किया.
अगर औरंगज़ेब ने भारत का विस्तार अफ़ग़ानिस्तान से बंगाल तक
और दक्षिण से कश्मीर तक करके इसे दुनिया का एक
विशाल देश बनाया तो अब्दुल कलाम ने भी विभिन्न रेंज
की मिसाइलें ईजाद करके भारत को दुनिया के
शक्तिशाली देशों में शामिल कराया.
इन लोगों के मुक़ाबले मेरा ज्ञान सतही हो सकता है
इसके बावजूद मेरा ऐतराज़ अपनी जगह पर अब
भी सही है. एक गुड मुस्लिम का नाम
एक बैड मुस्लिम के साथ जोड़कर उसका अपमान कैसे किया जा
सकता है?
एक देशप्रेमी का नाम एक 'कट्टरवादी
धार्मिक मुल्ला' के साथ एक ही सांस में कैसे लिया जा
सकता है?
एतराज़ वापसी की 'शर्त'
हाँ, मैं अपना एतराज़ उस समय वापस ले लूंगा जब शाहजहाँ रोड या
हुमायूं रोड का नाम अब्दुल कलाम रोड रखा जाए.
मैं उस समय अपनी आपत्ति वापस ले लूंगा जब 15
अगस्त को प्रधानमंत्री लाल क़िले के बजाय नेहरू
स्टेडियम से तिरंगा झंडा फहराएंगे या फिर लाल क़िले का नाम बदलकर
अब्दुल कलाम क़िला रख दें.
एक शहर में एक व्यक्ति के दो जगहों से नाम जुड़ सकते हैं.
उदाहरण के तौर पर नेहरू स्टेडियम, नेहरू प्लेस और नेहरू
प्लनेटेरियम.
जब मैं अहमदाबाद से दिल्ली लौट रहा था तो मेरे ज़हन
में ये बात आ रही थी कि क्या
अगली बार जब मैं इस शहर को लौटूंगा तो इसका नाम
अहमदाबाद बाक़ी रहेगा?
मैंने एयरपोर्ट पर बैठे एक स्थानीय
आदमी से यही सवाल पूछा. वो हंसा और
कहने लगा, क्या फ़र्क़ पड़ता है 'अमदावाद' तो पहले
ही बदल चुका है.
http://www.bbc.com/hindi/india/2015/09/150831_good_bad_muslim_aurangzeb_abdul_kalam_rns

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