Friday 11 September 2015

गौ रक्षा और इस्लाम

भारत में गौ हत्या को रोकने के नाम पर मुसलमानों को निशाना बनाया जाता रहा है...अलकबीर नाम के स्लाटर हाउस में हर रोज़ हजारों गाय काटी जाती हैं...कुछ साल पहले हिन्दू संगठनों ने इसके ख़िलाफ़ मुहिम भी छेड़ी थी, लेकिन जब यह पता चला कि इसका मालिक कोई मुसलमान नहीं, बल्कि गैर मुस्लिम यानी जैनी है तो आन्दोलन को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया...यह जगज़ाहिर है कि गौहत्या से सबसे बड़ा फ़ायदा गौ तस्करों और गाय के चमड़े का कारोबार करने वाले बड़े कारोबारियों को ही होता है।
इन वर्गों के दबाव के कारण ही सरकार गौहत्या पर पाबंदी लगाने से गुरेज़ करती है। वरना दूसरी क्या वजह हो सकती है कि जिस देश में गाय को माता के रूप में पूजा जाता हो, उस देश की सरकार गौहत्या को रोकने में नाकाम है।
क़ाबिले-गौर है कि भारत में मुस्लिम शासन के दौरान कहीं भी गौवध को लेकर हिन्दू और मुसलमानों में टकराव का वाकिया देखने को नहीं मिलता। अपने शासनकाल के आखिरी साल में जब मुगल बादशाह बाबर बीमार हो गया तो उसके प्रधान ख़लीफा निज़ामुद्दीन के हुक्म पर सिपाहसालार मीर बकी ने गैर मुस्लिमों को परेशान करना शुरू कर दिया। जब इसकी थे़बर बाबर तक पहुंची तो उन्होंने क़ाबुल में रह रहे अपने बेटे हुमायूं को एक पत्र लिखा।
बाबरनामे में दर्ज इस पत्र के मुताबिक़ बाबर ने अपने बेटे हुमायूं को नसीहत करते हुए लिखा-  ''हमारी बीमारी के दौरान मंत्रियों ने शासन व्यवस्था बिगाड़ दी है, जिसे बयान नहीं किया जा सकता। हमारे चेहरे पर कालिख पोत दी गई है, जिसे पत्र में नहीं लिखा जा सकता। तुम यहां आओगे और अल्लाह को मंजूर होगा तब रूबरू होकर कुछ बता पाऊंगा। अगर हमारी मुलाकात अल्लाह को मंजूर न हुई तो कुछ तजुर्बे लिख देता हूं जो हमें शासन व्यवस्था की बदहाली से हासिल हुए हैं, जो तुम्हारे काम आएंगे-
1. तुम्हारी जिन्दगी में धार्मिक भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। तुम्हें निष्पक्ष होकर इंसाफ करना चाहिए। जनता के सभी वर्गों की धार्मिक भावना का हमेशा ख्याल रखना चाहिए।
2. तुम्हें गौहत्या से दूर रहना चाहिए। ऐसा करने से तुम हिन्दोस्तान की जनता में प्रिय रहोगे। इस देश के लोग तुम्हारे आभारी रहेंगे और तुम्हारे साथ उनका रिश्ता भी मजबूत हो जाएगा।
3. तुम किसी समुदाय के धार्मिक स्थल को न गिराना। हमेशा इंसाफ करना, जिससे बादशाह और प्रजा का संबंध बेहतर बना रहे और देश में भी चैन-अमन कायम रहे।''
हदीसों में भी गाय के दूध को फ़ायदेमंद और गोश्त को नुकसानदेह बताया गया है।
1. उम्मुल मोमिनीन (हज़रत मुहम्मद साहब की पत्नी) फ़रमाती हैं कि नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद सलल्लाह फ़रमाते हैं कि गाय का दूध व घी फ़ायदेमंद है और गोश्त बीमारी पैदा करता है।
2. नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद सलल्लाह फरमाते हैं कि गाय का दूध फ़ायदेमंद है। घी इलाज है और गोश्त से बीमारी बढ़ती है। (इमाम तिबरानी व हयातुल हैवान) 3. नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद सलल्लाह फ़रमाते हैं कि तुम गाय के दूध और घी का सेवन किया करो और गोश्त से बचो, क्योंकि इसका दूध और घी फ़ायदेमंद है और इसके गोश्त से बीमारी पैदा होती है। (इबने मसूद रज़ि व हयातुल हैवान)
4. नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद सलल्लाह फ़रमाते हैं कि अल्लाह ने दुनिया में जो भी बीमारियां उतारी हैं, उनमें से हर एक का इलाज भी दिया है। जो इससे अनजान है वह अनजान ही रहेगा। जो जानता है वह जानता ही रहेगा। गाय के घी से ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक कोई चीज़ नहीं है। (अब्दुल्लाबि मसूद हयातुल हैवान)
कुरान में सात आयतें ऐसी हैं, जिनमें दूध और ऊन देने वाले पशुओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की गई है। गाय और बैलों से इंसानों को मिलने वाले फ़ायदों के लिए उनका आभार जताया गया है।
भारत में गौ हत्या को बढ़ावा देने में अंग्रेजों ने अहम भूमिका निभाई। जब सन् 1700 ई. में अंग्रेज़  भारत में व्यापारी बनकर आए थे, उस वक्त तक यहां गाय और सुअर का वध नहीं किया जाता था। हिन्दू गाय को पूजनीय मानते थे और मुसलमान सुअर का नाम तक लेना पसंद नहीं करते, लेकिन अंग्रेज़ इन दोनों ही पशुओं के मांस का सेवन बड़े चाव से करते हैं। अंग्रेज़ों को इन दोनों ही पशुओं के मांस की ज़रूरत थी। इसके अलावा वे भारत पर भी क़ब्जा करना चाहते थे। उन्होंने मुसलमानों को भड़काया कि कुरान में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाय की कुर्बानी हराम है। इसलिए उन्हें गाय की कुर्बानी करनी चाहिए। उन्होंने मुसलमानों को लालच भी दिया और कुछ लोग उनके झांसे में आ गए। इसी तरह उन्होंने दलित हिन्दुओं को सुअर के मांस की बिक्री कर मोटी रक़म कमाने का झांसा दिया।
गौरतलब है कि यूरोप दो हज़ार बरसों से गाय के मांस का प्रमुख उपभोक्ता रहा है। भारत में भी अपने आगमन के साथ ही अंग्रेज़ों ने यहां गौ हत्या शुरू करा दी। 18वीं सदी के आखिर तक बड़े पैमाने पर गौ हत्या होने लगी। यूरोप की ही तर्ज पर अंग्रेजों की बंगाल, मद्रास और बम्बई प्रेसीडेंसी सेना के रसद विभागों ने देशभर में कसाईखाने बनवाए। जैसे-जैसे भारत में अंग्रेजी सेना और अधिकारियों की तादाद बढ़ने लगी वैसे-वैसे ही गौहत्या में भी बढ़ोतरी होती गई।  ख़ास बात यह रही कि गौहत्या और सुअर हत्या की वजह से अंग्रेज़ों की हिन्दू और मुसलमानों में फूट डालने का भी मौका मिल गया। इसी दौरान हिन्दू संगठनों ने गौहत्या के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी। आखिरकार महारानी विक्टोरिया ने वायसराय लैंस डाऊन को पत्र लिखा। पत्र में महारानी ने कहा-''हालांकि मुसलमानों द्वारा की जा रही गौ हत्या आंदोलन का कारण बनी है, लेकिन हकीकत में यह हमारे खिलाफ है, क्योंकि मुसलमानों से कहीं ज्यादा हम गौ हत्या कराते हैं। इसके जरिये ही हमारे सैनिकों को गौ मांस मुहैया हो पाता है।''
आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफ़र ने भी 28 जुलाई 1857 को बकरीद के मौके पर गाय की कुर्बानी न करने का फ़रमान जारी किया था। साथ ही यह भी चेतावनी दी थी कि जो भी गौहत्या करने या कराने का दोषी पाया जाएगा उसे मौत की सज़ा दी जाएगी। इसके बाद 1892 में देश के विभिन्न हिस्सों से सरकार को हस्ताक्षर-पत्र भेजकर गौ हत्या पर रोक लगाने की मांग की जाने लगी। इन पत्रों पर हिन्दुओं के साथ मुसलमानों के भी हस्ताक्षर होते थे.
[9/10, 8:44 PM] ‪+91 92242 89271‬: फिरदोस खान का लेख बहस का मुद्दा है, उन्होंने reference book का हवाला नहीं दिया है । हयातुल हैवान हदीस की किताब नहीं है।कुरआन में गाय के बारे में खुसूसी तौर से कोई हुक्म आया हो ऐसा मैंने नहीं देखा।
[9/10, 9:58 PM] RaeesKhanQFrmn: कुरआन में मना होने की बात कहां है लेख में...? कुरआन की सूरह बकरा मे हजरत मूसा अलैहिस्सलाम की कौम को साफ साफ गाय को जिबह करने का.बाकायदा हुक्म ..गाय की पहचान के साथ साथ आयत ६८-७१ तक  जाहिर किया गया है. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने भी ..तब बछड़ा भुना हुआ पेश किया था जब कौमे लूत की तबाही लाने से पहले उनके घर पर जिबराईल अ० मेहमान की शक्ल में दूसरे फरिश्तों के साथ हाजिर हुए थे.ये अलग बात है उन्होंने उसे हाथ न लगाया था....
यह लेख गुजरात में लगाये पोस्टर की हिमायत में लिखा गया लगता ,लेख में लिखा गया हैै कि कुरआन में सात जगह.........कृतञता ब्यक्त की गई है, उसके बाद में लिखा गया है कि गाय और बैल से इंसानों को मिलने  वाले फायदे के बारे में आभार जताया गया हैै। क्या कुरआन में खुसूसियत के साथ गाय और बैल का जिक्र है? इब्राहीम (अ स) के ज़रिये बछड़े का जिबह करना और मूसा (अ स) का अपनी कौम जो आप के पीछे बछड़े की पूजा करने लगे थे को गाय की कुर्बानी का हुक्म देना मौजूद लेकिन इस लेख में इस बारे में कुछ नहीं कहा गयी । गाय और बैल को कुरआन व हदीस के हवालों से महत्वपूर्ण साबित करने की कोशिश है.
फ़िरदौस ख़ान

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