Tuesday, 27 January 2015

नसीहत

एक बार एक आलिमे-दीन
बीमार पड़ गए, उन्हें इलाज के
लिए अस्पताल में
भर्ती कराया गया।
अस्पताल में उनकी देखभाल के
लिए जिस लेडी डॉक्टर
को तैनात किया गया वह
मुस्लिम थी, वह हज़रत के इल्म,
अखलाक़ और
तक़वा परहेज़गारी की वजा से
हज़रत की बहुत इज़्ज़त
करती थी और उनकी खिदमत
करने मैं फख्र समझती थी।
हज़रत ने एक बात पर गौर
क्या कि डॉक्टर मुस्लिम है
और इनकी ड्रेस मगरिबी है।
जो इस्लामिक
होना चाहिये।
क्यूंकि इस्लाम इस तरह के
लिबास की इजाज़त
नहीं देता, खासकर "शॉर्ट
स्कर्ट" की वजा से टांगे बहार
दिखना। हज़रत चाहते थे
कि लेडी डॉक्टर को कपड़े से
मना करें। लेकिन
किसी सही टाइम और बेहतर
ढंग से। एक दिन वह
लेडी डॉक्टर बाजार
जा रही थीं, उन्होंने हज़रत से
पूछा कि आप को कोई चीज़
मंगानी तो नहीं।
हजरत ने फरमाया: "बेटा!
बकरी की एक रान
लेती आना लेकिन एक शर्त है
कि किसी थैली या शॉपिंग
बैग में डालकर
नहीं बल्कि सरेआम हाथ में
थाम कर" डॉक्टर
साहिबा कहने लगीं हज़रत! "मैं
बकरी की रान ले तो आउंगी।
लेकिन जिस तरह से आप
फरमा रहे हैं इस तरह तो मेरे
लिए मुमकिन नहीं। "
हज़रत ने
पूछा बेटा क्यों मुमकिन नहीं?
"कहने लगीं:
बिना किसी थैली खाली रान
को थामे देखकर लोग
मेरा मज़ाक़ उड़ाएंगे और यह मेरे
लिए नाक़ाबिले बर्दाश्त है। और अगर किसी कुत्ते ने देख लिया तो वह उसे खाने के लिए पीछे ही पड़ जाएगा, मैं उससे रान कैसे बचा पाऊँगी?"
हज़रत ने मौका गनीमत
जाना और कहने लगे बेटा!
"मुसलमान औरत की रान
बकरी की रान से
कहीं ज़्यादा छिपाए जाने के
लायक है।"
इतने शफीक और असरदार
अंदाज़ में की गई नसीहत सुनकर
डॉक्टर साहिबा की आंखें नम
हो गईं।
"वह हज़रत को गवाह बनाकर
अल्लाह से तौबा करने
लगी और मुस्तक़बिल में
कभी भी मगरिबी लिबास
(गैर शरई लिबास) न पहनने
का अहद लिया।"
सच है कि नसीहत अगर
सही टाइम पर बेहतर तरीके से
की जाए तो जरूर असर
दिखाती है।

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