झूठी कहानियों से ‘तहलका’ नहीं मचता साब
प्रतिष्ठित पत्रिका तहलका को दिया साहित्य अकादमी प्राप्तकर्ता मुनव्वर राना का कथित इंटरव्यू चर्चा का विषय है, यह इंटरव्यू तहलका संवाददाता हिमांशू वाजपेयी द्वारा लिया गया है। बहुत लोग इस इंटरव्यू को सिर्फ इसलिये खुश होकर शेयर कर रहे हैं, पढ़ रहे हैं, कि ‘बहुत आसान है कमरे में वंदेमातरम कहना’ वाले शायर मुनव्वर राना ने ‘गुजरात के कातिल पे मुकदमा भी नहीं है’ कहने वाले इमरान प्रतापगढ़ी को ‘डिटेन’ करने की मांग की है। और कहा है कि ‘प्रशासन अगर एक बार सख्ती कर दे और ऐसे लोगों को डिटेन करवा दे तो ऐसी शाइरी खत्म हो जाएगी. ये शाइरी नुकसान पहुंचा रही है’. मगर क्या सच यही है जो तहलका के पन्नों पर उकेरा गया है ? क्योंकि पत्रिका प्रकाशित हो चुकी है बिक भी चुकी है जाहिर बड़ी संख्या में लोगों ने सिर्फ उस पहलू को पढ़ा होगा जो पत्रिका के पन्नों पर प्रकाशित है, जिसे मुनव्वर राना के हवाले से कहा गया है। मगर कौन जाने कि वह जो पढ़ रहे हैं वह सच ही नहीं है ? बल्कि सच के नाम पर ‘तहलका’ मचाने के लिये उसे ‘प्लांट’ किया गया है। इस इंटरव्यू को लेने वाले हिमांशू तो मुनव्वर राना के पास गये तक नहीं बल्कि फोन पर ही बात चीत कर डाली और फिर अपनी ही तरफ से इसमें ऐसा सवाल घुसेड़ दिया जिससे ‘तहलका’ मच जाये। दो शायर आमने सामने आ जायें, जिनमें एक पिता की उम्र का हो और एक बेटे।
मुनव्वर राना साफ कह चुके हैं कि उनसे इमरान के संबंध में कोई बातचीत ही नहीं की गई फिर हिमांशू साब को किसने यह अधिकार दे दिया कि वह इंटरव्यू के नाम पर झूठा सवाल और जवाब करें जिससे तहलका मच जाये ? क्या यह एक प्रतिष्ठित पत्रिका के संवाददाता को शोभा देता है ? क्या यह पत्रकारिता के उसूलों के खिलाफ नहीं ? जो सवाल ही नहीं किया गया उसका जवाब आखिर किसने दे दिया ? और उससे भी अधिक संवाददाता मुनव्वर राना के हवाले से कहते हैं कि उनकी किताब मां की एक लाख प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं, जबकि मुनव्वर राना कहते हैं कि एक नहीं बल्कि दस लाक प्रतियां इस किताब की प्रकाशित हुई हैं । यहां भी झूठ परोसा गया। और इमरान के मामले में भी झूठ परोसा गया। और फिर इसी झूठ को ‘तहलका’ नाम देकर सोशल साईटों पर शेयर कराया गया, ताकि अधिक से अधिक लोग मुनव्वर राना के बारे में यह राय बना सकें कि वे अपनों से छोटों के साथ किस तरह का व्यवहार करते हैं ? मगर था तो यह झूठ ही जिसे मजे ले लेकर, अब तक सबसे श्रेष्ठ इंटरव्यू के खिताब दिये जा रहे थे ? हिमांशू साफ बतायें कि उनको इस तरह झूठ का सहारा क्यों लेना पड़ा ? क्या इसलिये कि वे इमरान के खिलाफ महीने भर पहले भी अपनी फेसबुक पेज पर मुहिम चला चुके हैं ? या इसलिये कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी का प्रचार किया था ? अगर यही सब वजहें थीं तो फिर इसके लिये इंटरव्यू का सहारा लेकर दो हस्तियों को क्यों एक दूसरे के खिलाफ खड़ा किया गया। इमरान प्रतापगढ़ी से संबंधित तहलका में जो प्रकाशित हुआ है मुनव्वर राना उसके बरअक्स बोल रहे हैं। अब किसे सच माना जाये ? तहलका के पन्नों को या फिर 63 साल के हो चुके मुनव्वर राना की गुर्राई हुई आवाज को जिसमें वे साफ कह रहे हैं कि ऐसा कहीं भी कोई भी जिक्र ही नहीं था ? कहीं तो झोल है साब, हिमांशू जैसे पत्रकार जो वेदवृत वाजपेयी से यह मालूम करने की हिम्मत नहीं करते कि उन्होंने लालकिले पर केसरिया फहराने की बात करके क्या संविधान का अपमान नहीं किया, जो हरी ओम पंवार से यह पूछने की हिम्मत नहीं करते कि बाल ठाकरे की भाषा तो एक बिहारी को सौ बीमारी, और मुसलमानों की कैंसर की बीमारी बताती थी तो फिर उन्हें बाल ठाकरे का कौनसा वाक्य पसंद आ गया जिसके लिये वो ‘न मानें तो बाल ठाकरे की भाषा में समझा दो’ बाकायदा मंच से कहते हैं। क्या तब 'कविता' के साथ बलात्कार नहीं होता ? हरि ओम पंवार से कोई सवाल नहीं, वेदवृत वाजपेयी से कोई सवाल नहीं, आशीष अनल से कोई सवाल नहीं। मगर मुनव्वर राना का कांधा इस्तेमाल करके इमरान पर जरूर निशाना लगा दिया ? वह भी सच हो तो चल सकता था मगर अफसोस खुद ही सवाल बनाया और जवाब भी खुद ही लिखा डाला। क्या ऐसी झूठी कहानियों से ‘तहलका’ मचेगा ?
@Wasim Akram Tyagi की कलम से
Tuesday 20 January 2015
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