Tuesday 17 March 2015

साम्प्रदायिक एकता अभियान

भारतीय इस्लामी विद्वानों का प्रमुख संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद देश
में साम्प्रदायिक एकता को मजबूत करने के मकसद से अभियान चला रहा है. देश के सभी राज्यों में जनसम्पर्क जारी है. जमीयत से जुड़े उलेमा देश के विभिन्न धर्म गुरुओं को साम्प्रदायिकता के खिलाफ एक मंच पर लाने की कवायद कर रहे हैं. आगामी अप्रैल माह में रामलीला ग्रांउड में एक बड़ा कार्यक्रम किया जाना  प्रस्तावित है. इस अभियान को साम्प्रदायिक घटनाओं और बयानों के बाद प्रतिक्रिया के तौर पर भी देखा जा सकता है.
अभियान का मकसद
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस अभियान को सामाजिक एकता और अखंडता को समर्पित किया है. अभियान की कमान खुद जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी संभाल रहे हैं. उनके मुताबिक देश में पिछले कुछ महीनों से लगातार अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच तनाव पैदा करने की कोशिशें की जा रही हैं. साम्प्रदायिकता और नफरत से भरे बयान आ रहे हैं. समाज के एक वर्ग में दहशत पैदा करने की कोशिशे हो रही हैं. हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है. इसी को मद्देनजर रखते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस देश व्यापी अभियान की शुरूआत की है. मदनी के मुताबिक राज्यों में जाकर जनसम्पर्क और जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है. राज्यों के बाद दिल्ली में 26 अप्रैल को एक राष्ट्रीय सम्मलेन बुलाया गया है. जिसमें सभी धर्मों के गुरु भाग लेंगे. उन्होंने बताया कि 28 मार्च को लखनऊ में भी एक बड़ा कार्यक्रम होगा. जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख इसाई, बौद्ध, जैन आदि कई धर्मों के गुरू भागीदारी करेंगे. अभियान का मकसद जनता को सच्चाई से रूबरू कराना है. इसके लिए जमीयत के पदाधिकरियों ने हरिद्वार और पुरी में संतों से मुलाकात भी की है. मौलाना अरशद मदनी देश की साम्प्रदायिक ताकतों को दिखाना चाहते हैं कि आज भी देश का एक बड़ा वर्ग मजहब से ऊपर उठकर एकता और भाईचारे में विश्वास रखता है.
स्थापना और परिचय
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की स्थापना 19 नवंबर 1919 को हुई थी. इसके संस्थापको में शेख-उल-हिंद मौलाना महमूद हसन, मौलाना सैयद हुसैन अहमद मदनी, मौलाना अहमद सईद देहलवी आदि समेत कई मुस्लिम विद्वान शामिल थे. जमीयत उलेमा-ए-हिंद आजादी के वक्त एक ऐसा संगठन था, जिसने अलग पाकिस्तान के गठन का जमकर विरोध किया था. यह संगठन अपने राष्ट्रवादी विचारों और दर्शन के लिए जाना जाता है. जमीयत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में विश्वास रखती है. दिल्ली के 1, बहादुरशाह जफर मार्ग पर इस संगठन का मुख्यालय स्थित है.
कितना सफल होगा अभियान?
मौलाना अरशद मदनी को देश के अग्रणी मुस्लिम विद्वानों में गिना जाता है. उनका परिवार स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल रहा है. केन्द्र में मोदी की सरकार आने के बाद कई विवादित बयान आए. कई स्थानों पर अल्पसंख्यकों के धर्म स्थलों को निशाना बनाए जाने की ख़बरे आई. तभी से जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने आपसी सौहार्द को मजबूत बनाने के लिए इस अभियान का मन बना लिया था. अब संगठन के अध्यक्ष और सभी पदाधिकारी रात-दिन एक करके अप्रैल के कार्यक्रम को सफल बनाने की तैयारी में जुटे हैं. कई बड़े धर्म गुरूओं ने अपनी सहमति भी जमीयत को दे दी है. लेकिन ये अभियान कितना सार्थक होगा ये तो आने वाली 26 अप्रैल को ही पता चलेगा.

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