Monday 26 October 2015

दूल्हा के साथ बारात

सवाल :- क्या शादी के मौके पर दूल्हा के साथ बारात का जाना किसी हदीस से साबित है ?
जवाब :- शादी-ब्याह के मौके पर रिवाजन बारात ले जाना शरअन बिल्कुल साबित नहीं, इससे परहेज करना चाहिए।
अहदे-रिसालत मआब और खुल्फा-ए-राशिदीन के दौरे-खिलाफत में कहीं भी इसका कोई सबूत नहीं मिलता।
निकाह के लिए दूल्हा, दो गवाह और लड़की के वली व सरपरस्त का होना काफी है।रसूले करीम सल्ल● की मुबारक
जिन्दगी में आपके कई सहाबा किराम रजि● की शादियां हुई, किसी ने भी बारात का एहतिमाम नहीं किया।
हजरत अनस रजि●से रिवायत है कि नबी करीम सल्ल● ने अब्दुलर्रहमान बिन औफ रजि● पर जर्दी (पीलापन)
का निशान देखा तो फरमाया:ये क्या है? उन्होंने कहा-मैंने एक औरत से सोने की एक डली के बराबर मेहर के जरिये
निकाह किया है।आप सल्ल● ने फरमाया:अल्लाह तेरे लिए बरकत डाले, वलीमा करो, अगरचे एक बकरी ही हो।
मुस्लिम
इस हदीस से मालूम हुआ कि अब्दुलर्रहमान रजि● की शादी का इल्म रसूलुल्लाह सल्ल●को उस वक्त हुआ जब आपने
अब्दुलर्रहमान रजि●पर जाफरान का जर्द रंग देखा।अगर इस्लाम में बारात का कोई तसव्वुर होता तो रसूलुल्लाह सल्ल●
को सबसे पहले बुलाया जाता।लेकिन इस्लाम में ऐसी मिसाल नहीं मिलती कि नबी सल्ल● या किसी भी सहाबी की
शादी पर बारात गई हो।
नोट :
दूल्हे का बारात लेकर जाना और दुल्हन को डोली में बिठाकर लाना हिन्दू धर्म का रिवाज है, इन रिवाजों का
इस्लाम से दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं क।अल्लाह के रसूल सल्ल● एक हदीस का मफ्हूम है कि जो कोई मुसलमान
होकर भी किसी दूसरी कौम की रविश अख्तियार करेगा तो आखिरत में उन्हीं के साथ उठाया जाएगा।
कुरआन मजीद में अल्लाह तआला ने ईमानवालो के लिए रसूल सल्ल●की जिन्दगी को उस्वतुल हसना कहा है।आप
सल्ल● ने खुद जितने निकाह किये हैं उनमें कहीं भी बारात का एहतिमाम नहीं मिलता मिसालें मुलाहिजा हो:-
(1) नबी करीम सल्ल● का निकाह सय्यिदा आयशा रजि● से जब हुआ तो वे अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थी ।
उन्हें शादी के दो या तीन साल के बाद रूख्सती करके भेजा गया था।
(2) सय्यिदिना उमर रजि● की बेटी सय्यिदा हफ्सा रजि●जब विधवा हो गई तो अल्लाह के रसूल सल्ल●से उनका निकाह
हुआ और यहां भी बारात का कोई सुबूत नहीं मिलता।
(3) एक बड़ी मिसाल आप सल्ल●के सय्यिदा उम्मे हबीबा रजि●से निकाह की है आप सल्ल●का जब उनसे निकाह हुआ
तब वे हब्शा में थी।नबी करीम सल्ल●ने मदीना से हब्शा के बादशाह नजाशी के नाम खखत भेजा था और उन्हें अपना
वकील बनाते हुए उम्मे हबीबा रजि●को निकाह का पैगाम दिया, जिसे उन्होंने कुबूल कर लिया।
(4) एक औरत ने मस्जिदे नबवी में आकर आप सल्ल●से निकाह की ख्वाहिश जाहिर की, आप सल्ल●ने इंकार कर दिया।
और मस्जिद में मौजूद एक गरीब सहाबी के साथ कुरआन की आयतों के मेहर के बदले निकाह करवा दिया।
इस तरह की अनेकों मिसालें इस्लामी शरीयत में मौजूद हैं।कितनी अजीब बात है कि लोग एक तरफ शादी के
कार्ड पर "अन् निकाहु मिन् सुन्नती" लिखते हैं दूसरी तरफ खिलाफे शरीयत काम लाजिम समझकर करते हैं।दीन
में हर नया काम बिदअत है।किसी सुन्नत तरीके में कोई काम अपनी ओर से बढा लेना और फिर उसे अपने लिए
लाजिम और जरूरी कर लेना हराम है।लिहाजा याद रखे कि बारात एक गैर इस्लामी फेअल है।

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