लॉकडाउन
में ईद की नमाज कैसे पढ़ें?
डॉक्टर मुहम्मद नजीब क़ासमी
कोरोना वाइरस के कारण लॉकडाउन बढ़ा दिया गया है। यानि इतिहास में पहली बार ईदुल फित्र की नमाज मुसलमान ईदगाह या मसाजिद में अदा ना कर सकेंगे। सबसे पहले, ईद से संबंधित आवश्यक मसाइल को जानें। इस्लाम ने ईदुल फित्र के मौक़ा पर शरई हुदूद के अंदर रहते हुए मिल जुल कर खुशियां मनाने की इजाज़त दी है। ईदुल फित्र के दिन रोज़ा रखना हराम है जैसा कि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशादात में वारिद हुआ है। ईद के दिन गुस्ल करना, मिसवाक करना, हसबे इस्तिताअत उमदा कपड़े पहनना, खुशबू लगाना, सुबह होने के बाद ईद की नमाज़ से पहले खजूर या कोई मीठी चीज़ खाना, ईद की नमाज़ के लिए जाने से पहले सदक़ए फित्र अदा करना, एक रास्ता से ईदगाह जाना और दूसर रास्ते से वापस आना, नमाज़ के लिए जाते हुए तकबीर ((اَللّٰہُ اَکْبَر، اَللّٰہُ اَکْبَر،لَا اِلہَ اِلَّا اللّٰہ، وَاللّٰہُ اَکْبَر، اَللّٰہُ اَکْبَر، وَلِلّٰہِ الْحَمْد)) कहना यह सब ईद की सुन्नतों में से हैं।
ईद की नमाज ईदगाह और मस्जिदों में अदा की जाती है, लेकिन लॉकडाउन के कारण जुमआ की तरह घरों में भी ईद की नमाज अदा की जाएगी, जिसके लिए इमाम के अलावा तीन लोग काफी हैं। ईद की नमाज़ न पढ़ने से बेहतर है कि ईद की नमाज़ घर पर अदा की जाए। कुछ उलामा ने घर में होने वाली जुमआ की नमाज़ से असहमति जताई थी मगर मौजूदा हालात में वे उलामा भी घर पर ईद-उल-फ़ित्र की नमाज़ अदा करने की अनुमति दें ताकि मुसलमान इस समय निराश न हो, और वे कम से कम घर पर ईद की नमाज़ अदा करके खुद को कुछ हद तक संतुष्ट कर सके।
ईदुल फित्र की नमाज: ईदुल फित्र के दिन दो रिकात नमाज़ जमाअत के साथ बतौर शुक्रया अदा करना वाजिब है। ईदुल फित्र की नमाज़ का वक़्त सूरज के निकलने के बाद से शुरू हो जाता है जो ज़वाल तक रहता है, लेकिन ज़ियादा देर करना उचित नहीं है। ईदुल फित्र और ईदुल अज़हा की नमाज़ में ज़ायद तकबीरें भी कहीं जाती हैं जिनकी तादाद में फुक़हा का इख्तिलाफ है, अलबत्ता ज़ायद तकबीरों के कम या ज़्यादा होने की सूरत में उम्मते मुस्लिमा नमाज़ के सही होने पर मुत्तफिक़ है। हज़रत इमाम अबू हनीफा ने 6 ज़ायद तकबीरों के क़ौल को इख्तियार किया है
ईद की नमाज के लिए आजान व इक़ामत नहीं: जुमआ की नमाज के लिए आजान और इक़ामत दोनों होती हैं। ईद की नमाज के लिए आजान और इक़ामत दोनों नहीं होती हैं।
जुमआ की नमाज के लिए जो शर्तें हैं वही ईद की नमाज के लिए भी हैं, अर्थात् जिन पर नमाजे जुमआ है उन्हीं पर ईद की नमाज भी हैं। जहाँ जुमआ की नमाज जायज है वहीं ईद की नमाज भी जायज है। जिस तरह जगह-जगह जुमआ की नमाज अदा की जा सकती है उसी तरह ईद की नमाज भी एक ही शहर में विभिन्न स्थानों में बल्कि लॉकडाउन जैसी स्थिति में घरों में भी ईद की नमाज अदा कर सकते हैं।
अगर कोई व्यक्ति लॉकडाउन के कारण ईद की नमाज अदा नहीं कर पा रहा है, तो वह दो दो करके चार रकअत चाशत की पढ़ ले। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ी अल्लाह उनहु से रिवायत है कि जो कोई भी ईद की नमाज़ न पढ़ सके, वह चार रकअतें पढ़ ले। कुछ उलमा ने इससे असहमति जताई है लेकिन यह उन लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प है जो लॉकडाउन में ईद की नमाज अदा नहीं कर सकते। घर में अदा होने वाली ईद की नमाज़ में घर की औरतें भी शरीक हो सकती हैं वे सब से आखरी सफ में खड़ी होंगी।
नमाजे ईद पढ़ने का तरीका: सबसे पहले नमाज की नीयत करें। नीयत असल में दिल के इरादे का नाम है, जबान से भी कहलें तो बेहतर है कि मैं दो रिकअत वाजिब नमाजे ईद छः जायद तकबीरों के साथ पढ़ता हूं फिर अल्लाहु अकबर कहकर हाथ बांध लें और सुबहानका अल्लाहुम्मा..पढ़ें। इसके बाद तकबीरे तहरीमा की तरह दोनों हाथों को कानों तक उठाते हुए तीन बार अल्लाहु अकबर कहें। दो तकबीरों के बाद हाथ छोड़ दें और तीसरी तकबीर के बाद हाथ बांध लें। हाथ बांधने के बाद इमाम साहब सूरए फातिहा और सूरत पढ़ें, मुकतदी खामोश रहकर सुनें। इस के बाद पहली रिकअत आम नमाज की तरह पढ़ें। दूसरी रिकअत में इमाम साहब सबसे पहले सूरए फातिहा और सूरत पढ़ें मुकतदी खामोश रहकर सुनें। दूसरी रिकअत में सूरत पढ़ने के बाद दोनों हाथों को कानों तक उठा कर तीन बार तकबीर कहें और हाथ छोड़ दें। फिर अल्लाहु अकबर कहकर रुकूअ करें और बाकी नमाज आम नमाज की तरह पूरी करें। ईद की नमाज के बाद दुआ मांग सकते हैं लेकिन खुतबा के बाद दुआ मसनून नहीं है।
खुतबाए ईदुल फित्र:
ईदुल फित्र की नमाज के बाद इमाम का खुतबा पढ़ना सुन्नत है, खुतबा आरम्भ हो जाये तो खामोश बैठकर उसको सुनना चाहिये।
लॉकडाउन में संक्षिप्त नमाज पढ़ाई जाये और खुतबा संक्षेप में दिया जाये। देखकर भी खुतबा पढ़ा जा सकता है।
(ईद उल फितर का पहला खुतबा)
अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर।
अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन, वल आकिबतु लिल मुत्तकीन, वस्सलातु अला रसूलिही मुहम्मदिव्व व आलिही व असहाबिही अजमईन।
अम्मा बअ्द।
फअ्लमू! अन्न याैमकुम हाज़ा याैमु ईदिन, लिल्लाहि अलैकुम फीही अवाइदुल एहसान, व रजाअु नैलिद्दरजात,वल अफ्वि वल गुफरान
अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर वलिल्लाहिल हम्द, वक़द क़ाल रसूलुल्लाहि स्वल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इन्न लिकुल्लि काैमिन ईदन,व हाज़ा ईदुना, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर वलिल्लाहिल हम्द,
बारकल्लाह, बारकल्लाहु लना वलकुम फिल कुरआनिल अजीम, वनफअना व इय्याकुम बिल आयाति वज्जिकरिल हकीम, अस्तगफिरुल्लाह ली वलकुम वलिसाइरिल मुस्लिमीन, फस्तगफिरूह, इन्नहु हुवल गफूरुर्रहीम।
(ईद उल फितर का दूसरा खुतबा)
अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर।
अलहम्दु लिल्लाह, अलहम्दु लिल्लाहि नहमदुहू व नस्तईनुहू व नस्तगफिरुहू, व नुअ्मिनु बिही व नतवक्कलु अलैहि, व नऊजु बिल्लाहि मिन शुरूरि अनफुसिना व मिन सय्यिआति अअ्मालिना, मय् यहदिहिल्लाहु फला मुज़िल्लल्लाह, व मय् युज़लिल्हु फला हादिय लह,व नशहदु अल्ला इलाह इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीक लह, व नशहदु अन्न सय्यिदना व माैलाना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुह।
क़ालन्नबिय्यु स्वल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, अरहमु उम्मती बि उम्मती अबू बकर, व अशद्दुहुम फी अमरिल्लाहि उमर, व असदकुहुम हयाअन उस्मान, व अकज़ाहुम अली, व फातिमतु सय्यिदतु निसाइ अहलिल जन्नह, वल हसनु वल हुसैन सय्यिदा शबाबि अहलिल जन्नह, व हमज़तु असदुल्लाहि व असदु रसूलिह, रजीयल्लाहु अन्हुम अजमईन।
फजकुरुल्लाह यजकुरकुम, वद्ऊहु यस्तजिब् लकुम,वलजिकरुल्लाहि अकबर, वल्लाहु यअ्लमु मा तसनऊन।
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यदि किसी जगह कोई खुतबा नहीं पढ़ सकता है तो खुतबा के बगैर भी नमाज हो जायेगी क्योंकि ईद का खुतबा सुन्नत है फर्ज नहीं। कुरआन करीम की छोटी सूरतें भी खुतबे में पढ़ी जा सकती हैं। जुमआ की तरह दो खुतबे दिये जायें, दोनों खुतबों के बीच थोड़ी देर के लिए ईमाम साहब मिमबर या कुर्सी इत्यादि पर बैठ जायें।
ईद की नमाज के बाद ईद मिलना: ईद की नमाज से फरागत के बाद गले मिलना या मुसाफहा करना ईद की सुन्नत नहीं है और इन दिनों कोरोना वबाई मर्ज भी फैला हुआ है, इसलिए ईद की नमाज से फरागत के बाद गले मिलने या मुसाफहा करने से बचें क्योंकि एहतियाती तदाबीर का एख्तियार करना शरीयते इस्लामिया के मुखालिफ नहीं है।
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عید الفطر کا پہلا خطبہ
"اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰه أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ ۞ اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الْمُنْعِمِ الْمُحْسِنِ الدَّیَّانِ، ذِي الْفَضْلِ وَالْجُوْدِ وَالْاَحْسَانِ، ذِي الْکَرَمِ والْمَغْفِرَةِ وَالْاِمْتِنَانِ ۞ اَللهُ أَکْبَرْاَللّٰهُ أَکْبَرْ لَآ اِلٰهَ إِلَّا اللهُ وَاللهُ أَکْبَرْ اَللّٰه أَکْبَرْ وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ ۞ وَأَشْهَدُ أَنْ لَّا إِلٰهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهٗ لَا شَرِیْکَ لَهٗ وَأَشْهَدُ أَنَّ سَیِّدَنَا وَمَوْلَانَا مُحَمَّدًا عَبْدُهٗ وَرَسُوْلُهٗ، اَلَّذِيْ أُرْسِلَ حِیْنَ شَاعَ الْکُفْرُ فِي الْبُلْدَانِ، صَلَّی اللهُ عَلَیْهِ وَعَلیٰ آلِهٖ وَأَصْحَابِهٖ مَا لَمَعَ الْقَمَرَانِ وَتَعَاقَبَ الْملَوَانِ ۞ اَللهُ أَکْبَرْاَللّٰهُ أَکْبَرْ لَآ إِلٰهَ إِلَّا اللهُ وَاللهُ أَکْبَرْ اَللّٰه أَکْبَرْ وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ۞
أَمَّا بَعْدُ! فَاعْلَمُوْا أَنَّ یَوْمَکُمْ هٰذَا یَوْمُ عِیْدٍ، لِلّٰهِ عَلَیْکُمْ فِیْهِ عَوَائِدُ الْاِحْسَانِ، وَرَجَاءُ نَیْلِ الدَّرَجَاتِ وَالْعَفْوِ وَالْغُفْرَانِ ۞ اَللهُ أَکْبَرْاَللّٰهُ أَکْبَرْ لَآ إِلٰهَ إِلَّا اللهُ وَاللهُ أَکْبَرْ اَللّٰهُ أَکْبَرْ وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ ۞ وَقَدْ قَالَ رَسُوْلُ اللهِ ﷺ: إِنَّ لِکُلِِّ قَوْمٍ عِیْدًا وَّهٰذَا عِیْدُنَا ۞ اَللهُ أَکْبَرْاَللّٰهُ أَکْبَرْ لَآ إِلٰهَ إِلَّا اللهُ وَاللهُ أَکْبَرْ اَللّٰهُ أَکْبَرْ وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ ۞ وَقَدْ قَالَ صَلَّی اللهُ عَلَیْهِ وَسَلَّمَ فَإِذَا کَانَ یَوْمُ عِیْدِهِمْ یَعْنِيْ یَوْمَ فِطْرِهِمْ بَاهیٰ بِهِمْ مَلائِکَتَهٗ، فَقَالَ: یَا مَلائِکَتِيْ! مَا جَزَآءُ أَجِیْرٍ وَفّٰی عَمَلَهٗ ؟ قَالُوْا: رَبَّنَا جَزَائُهٗ أَنْ یُّوَفّٰی أَجْرُهٗ، قَالَ: مَلَائِکَتِيْ! عَبِیْديْ وَإِمَائِيْ قَضَوْا فَرِیْضَتِيْ عَلَیْهِمْ ثُمَّ خَرَجُوْا یَعُجُّوْنَ إِلَی الدُّعَاءِ، وَعِزَّتِيْ وَجَلَالِيْ وَکَرَمِيْ وَعُلُوِّيْ وَارْتِفَاعِِ مَکَانِيْ لَأُجِیْبَنَّهُمْ، فَیَقُوْلُ: ارْجِعُوْا فَقَدْ غَفَرْتُ لَکُمْ، وَبَدَّلْتُ سَیِّاٰتِکُمْ حَسَنَاتٍ، فَیَرْجِعُوْنَ مَغْفُوْرًا لَّهُمْ ۞ اَللهُ أَکْبَرْاَللّٰهُ أَکْبَرْ لَآ إِلٰهَ إِلَّا اللهُ وَاللهُ أَکْبَرْ اَللّٰهُ أَکْبَرْ وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ۔
عیدالفطر کا دوسرا خطبہ
"اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ، اَللّٰهُ أَکْبَرْ،اَللّٰه أَکْبَرْ ۞
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ نَحْمَدُهٗ وَنَسْتَعِیْنُهٗ وَنَسْتَغْفِرُهٗ وَنُؤْمِنُ بِهٖ وَنَتَوَکَّلُ عَلَیْهِ وَنَعُوْذُ بِاللّٰهِ مِنْ شُرُوْرِ أَنْفُسِنَا وَمِنْ سَیِّاٰتِ أَعْمَالِنَا مَن یَّهدِهِ اللهُ فَلاَ مُضِلَّ لَهٗ وَمَنْ یُّضْلِلْهُ فَلاَ هَادِيَ لَهٗ ۞ اَللهُ أَکْبَرْ اَللهُ أَکْبَرْ لَآ إِلٰهَ إِلاَّ اللهُ وَاللهُ أَکْبَرْ اَللهُ أَکْبَرْ وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ ۞ وَنَشْهَدُ أَنْ لَآ إِلٰهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهٗ لَا شَرِیْکَ لَهٗ ۞ وَنَشْهَدُ أَنَّ سَیِّدَنَا وَمَوْلَانَا مُحَمَّدًا عَبْدُهٗ وَرَسُوْلُهٗ، أَرْسَلَهٗ بِالْحَقِّ بَشِیْرًا وَّنَذِیْرًا بَیْنَ یَدَيِ السَّاعَةِ ، مَنْ یُّطِعِ اللهَ وَرَسُوْلَهٗ فَقَدْ رَشَدَ، وَمَنْ یَّعْصِهِمَا فَإِنَّهٗ لَا یَضُرُّ إِلاَّ نَفْسَهٗ وَلاَ یَضُرُّ اللهَ شَیْئاً ۞ اَللهُ أَکْبَرْاَللّٰهُ أَکْبَرْ لَآ اِلٰهَ إِلَّا اللهُ وَاللهُ أَکْبَرْ اَللّٰهُ أَکْبَرْ وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ
أَعُوْذُ بِاللّٰهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيْم ۞ بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِِْ۞ ﴿ اِنَّ اللهَ وَمَلٰئِكَتَهٗ يُصَلُّوْنَ عَلَى النَّبِيِّ يَآ اَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا صَلُّوْا عَلَيْهِ وَسَلِّمُوْا تَسْلِيْمًا﴾۞ اَللّٰهُمَّ صَلِّ عَلٰی سَیِّدِنَا وَمَوْلَانَا مُحَمَّدٍ عَبْدِکَ وَرَسُوْلِکَ وَصَلِّ عَلَی الْمُؤْمِنِیْنَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَالْمُسْلِمِیْنَ وَالْمُسْلِمَاتِ، وَبَارِکْ عَلٰی سَیِّدِنَا وَمَوْلَانَا مُحَمَّدٍ وَّأَزْوَاجِهٖ وَذُرِّیَّتِهٖ وَصَحْبِهٖ أَجْمَعِیْنَ ۞
اَللهُ أَکْبَرْاَللّٰهُ أَکْبَرْ لَآ إِلٰهَ إِلَّا اللهُ وَاللهُ أَکْبَرْ اَللّٰهُ أَکْبَرْ وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ.
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