Monday 23 February 2015

इशरत जहां आरोपियों के 'अच्छे दिन'!

इशरत जहां केस में CBI के गड़बड़झाला से 
आरोपियों के 'अच्छे दिन'!
गुजरात में 2004 से 2005 के बीच फर्जी मुठभेड़ों के मामलों में प्रदेश के जिन पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगे थे, उनमें से आईपीएस ऑफिसर एन. के. अमीन को छोड़कर बाकी सभी जेल से बाहर आ गए हैं। अमीन के सीनियर रहे डी. जी. वंजारा, पी. पी. पांडेय और अभय चूड़ासमा के अलावा कई जूनियर ऑफिसर्स भी जमानत पर बाहर हैं।
  इन ऑफिसर्स को जमानत मिलने की वजह यह है कि सीबीआई ने इशरत जहां एनकाउंटर केस में बेहद खराब ढंग से काम किया। इसका अंदाजा इससे मिल जाता है कि उसने इस केस में अपनी पहली एफआईआर में गुजरात पुलिस के 20 अधिकारियों को आरोपी बनाया। बाद में उसने इनमें से केवल सात के खिलाफ चार्जशीट पेश की। 10 तो सीबीआई के गवाह बन गए।
इससे भी हैरानी की बात यह रही कि सीबीआई चार्जशीट में कहा गया है कि एफआईआर में जिन 20 पुलिसकर्मियों के नाम थे, उनमें से 14 'फर्जी मुठभेड़ के घटनास्थल' पर मौजूद थे। चार्जशीट में कहा गया है कि इससे संकेत मिलता है कि ये अपराध में शामिल थे। ऐसा कहने के बावजूद सीबीआई ने वंजारा और पांडेय के साथ इनमें से केवल पांच के खिलाफ फाइनल आरोप लगाए। सीबीआई ने कहा कि वंजारा और पांडेय घटनास्थल पर तो नहीं थे . लेकिन साजिश इन्हीं ने बनाई थी। इन बातों पर विचार करने वाली और करीब 15 दिनों पहले वंजारा और पांडेय को जमानत पर छोड़ने का आदेश देने वाली सीबीआई की एक अदालत ने अपने आदेश में व्यंग्य के लहजे में कहा था कि सीबीआई जांच किसी भी पैमाने पर 'उल्लेखनीय' नहीं कही जा सकती है।
  सीबीआई ने गुजरात के आईपीएस अधिकारियों और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों से निपटने में दोहरा रवैया भी अपनाया। इन अधिकारियों के बारे में सीबीआई ने कहा था कि इन्होंने मिलकर 'फर्जी' ऑपरेशन किया था। सीबीआई ने गुजरात के आईपीएस अधिकारियों वंजारा, पांडेय, अमीन और जी एल सिंघल को अरेस्ट किया और उन पर आरोप तय किए, लेकिन गुजरात सरकार या होम मिनिस्ट्री से इनके खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं मांगी, जबकि आईपीएस की काडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी होम मिनिस्ट्री ही है।
हालांकि सीबीआई ने आईबी के फॉर्मर स्पेशल डायरेक्टर राजिंदर कुमार या उनके तीन अधीनस्थ अधिकारियों को अरेस्ट नहीं किया, जिन पर इसने एक साल पहले सप्लीमेंटरी चार्जशीट में आरोप लगाए थे। ऐसा इस बात के बावजूद किया गया कि सीबीआई ने वंजारा और पांडेय की तरह कुमार पर भी साजिश रचने का आरोप लगाया था। फिर सीबीआई ने इस बार आईबी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए होम मिनिस्ट्री से इजाजत मांगी। मंजूरी अभी तक नहीं मिली है और इस तरह सप्लीमेंटरी चार्जशीट का कोई कानूनी मतलब नहीं रह गया है।
मंजूरी न मिलने के कारण आईबी अधिकारियों का बच जाना इशरत जहां केस को बेहद कमजोर कर देगा क्योंकि गुजरात पुलिस के आरोपी अधिकारी भी इसका फायदा उठा सकते हैं। इनके खिलाफ सीबीआई की मूल चार्जशीट के आधार पर सुनवाई अभी भी शुरू नहीं हो सकी है क्योंकि सप्लीमेंटरी चार्जशीट का मामला लटका हुआ है। सीबीआई अपनी जांच का यह कहते हुए बचाव कर रही है कि यह तो जांच एजेंसी का विशेषाधिकार है कि वह किसे आरोपी बताए। सीबीआई को दरअसल इसका जवाब देना चाहिए कि उसने इतने संवेदनशील मामले में गड़बड़झाला क्यों किया और 10 साल बाद भी इशरत जहां का आतंकवादी होना या नहीं होना लोगों की आधी-अधूरी राय का मामला क्यों बना हुआ है।
अमन शर्मा, अहमदाबाद 

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