चीन से 1965 की जंग के दौरान जब भारत की आर्थिक स्थिती बेहद कमजोर हो गई थी और देश इस स्थिति में नहीं था कि वह युद्ध लड़ सके। ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने संभावित खतरों से निपटने के लिये देश के बड़े – बड़े टाटाओं से आर्थिक सहायत करने की अपील की थी। जब इन सबने एक स्वाभिमानी प्रधानमंत्री की अपील को नहीं माना, तो प्रधानमंत्री ने हैदराबाद का रुख किया उन्हें मालूम था कि निजाम हैदराबाद मीर उस्मान अली उन्हें खाली हाथ नहीं लौटायेंगे। ऐसे में निजाम मीर उस्मान अली ने भारत सरकार को पांच टन सोना राष्ट्रीय रक्षा कोष की स्थापना के लिये देने की घोषणा की निजाम की इस घोषणा ने सबको हैरत में डाल दिया क्योंकि किसी भी एक व्यक्ति द्वारा दान में दी जानी वाली यह सबसे बड़ी रकम थी। आज के सोने के मूल्य में इस रकम को देखा जाये तो यह 1600 करोड़ से अधिक है। यहां ध्यान देने देने योग्य है कि 1948 में ऑपरेशन पोलो जिसमें निजी आंकड़ोंके मुताबिक ढ़ाई लाख मुसलमान पांच दिन के अंदर मराठा, और जाट बटालियन ने मारे थे। उसके बाद भी मुसलमानों का लगाव इस देश के प्रति रहा निजाम मीर उस्मान अली ने लाल बहादुर शास्त्री से किसी भी तरह की कोई शर्त नहीं रखी, जबकि वह चाहते तो भारत की राष्ट्रीय रक्षा कोष में दान करने से इन्कार भी कर सकते थे मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने उस देश सेना के लिये दान किया जिसने लगभग दो दशक पहले उन्हीं की प्रजा के ढाई लाख निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारा था। यह है मुसलमानों का इतिहास, यह उनकी देश के प्रति निष्ठा, यह है उनका देश प्रेम, यह उस कौम का माजी है जिसे आज संदेह की दृष्टी से कुछ तथाकथित राष्ट्रभक्त, कुछ तथाकथित राष्ट्रप्रेमी, यां यूं कहूं कि छद्म राष्ट्रवादी देखते हैं। उनकी राष्ट्रीय निष्ठा पर शक करते हैं। भारतीय मुसलानों की राष्ट्रीय निष्ठा पर सवालिया निशान लगाने वाले तंग मानसिकता के ठेकेदार बतायें कि उन्होंने देश के लिये क्या किया ? कौनसा बड़ा दान दिया ? और वह भी तब जब देश में दो जून की रोटी के लाले हों, वह भी तब जब देश की छाती पर एक तरफ पाकिस्तान खड़ा हो और दूसरी और चीन। आज के ‘टाटा’ बतायें, अंबानी बतायें, बिड़ला बतायें, और वे राष्ट्रभक्त बतायें जो बात - बात पर भारतीय मुसलमानों को राष्ट्र विरोधी कहदेते हैं, वे अधिकारी भी बतायें जो कहते हैं कि मुसलमान देश से पहले मज्हब को मानते हैं इसलिये उनकी राष्ट्रीयता संदिग्ध है। वे अधिकारी भी बतायें जिन्होंनेबयान जारी किये हैं कि मुसलमानों और सिक्खों को गोपनीयपदों पर इसलिये नहीं रखा जा सकता क्योंकि इनके रिश्तेदारियां दुश्मन देश पाकिस्तान में हैं। यह सही है मुसलमानों को अपनी राष्ट्रीयता सिद्ध करने के लियेकिसी सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है, मगर फिर भी कुछ लोग पूर्वाग्रह से इस कद्र ग्रस्त हैं कि जहां, अब्दुल, अली, खान, आदि नाम आया तुरंत अपनी मानसिकता उजागर कर देते हैं।
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