ایس اے ساگر
ہندوستان میں گزشتہ 10 سال میں ہندوؤں اور
مسلمانوں کی آبادی بڑھنے کی رفتار میں
کمی واقع ہوئی ہے .
یہ صورت حال آبادی کے اضافہ کی شرح میں کمی کی وجہ سے پیش آئی ہے.
ہندو، مسلم ہی نہیں بلکہ عیسائی، سکھ، بدھ مت اور جینیوں کی آبادی کےاضافہ کی شرح میں بھی
کمی آئی ہے.
دراصل ملک میں مردم شماری ہر دس سال میں ہوتی ہے.2011 میں ہونے والی مردم شماری کے مطابق ہندوؤں کی
آبادی میں اضافہ کی شرح 16.76 فیصد رہی جبکہ 10
سال قبل کی مردم شماری میں یہ شرح 19.92 فیصد پائی گئی تھی.
یعنی کہ ملک کی کل آبادی میں شامل ہونے والے ہندوؤں کی
تعداد میں 3.16 فیصد کی کمی آئی ہے.
مسلم آبادی میں اضافہ کی بات کی
جائے تو اس میں زیادہ بڑی کمی دیکھی گئی ہے.
گزشتہ مردم شماری کے مطابق ہندوستان میں مسلم آبادی 29.5 فیصد کی شرح سے بڑھ رہی تھی
جو اب گر کر 24.6 فیصد رہ گئی ہے.
یہ کہا جا سکتا ہے کہ ملک میں مسلمانوں کی شرح
آج بھی ہندوؤں کی آبادی میں اضافہ کی شرح سے زیادہ ہے،
لیکن یہ بھی سچ ہے کہ مسلم آبادی
بڑھنے کی شرح میں ہندوؤں کے مقابلے میں مزید کمی
آئی ہے.
جبکہ عیسائیوں کی آبادی میں اضافہ کی شرح 15.5 فیصد،
سکھوں کی 8.4 فیصد، بدھ مت کے پیروکاروں کی 6.1 فیصد اور
جینوں کی 5.4 فیصد ہے.
آبادی کی کہانی
مردم شماری کے اعداد و شمار کے مطابق ملک میں ہندوؤں کی
آبادی 96.63 کروڑ ہے جو کہ کل آبادی کا
79.8 فیصد ہے جبکہ مسلم آبادی 17.22
کروڑ ہے جو کہ آبادی کا 14.23 فیصد ہوتا
ہے.
عیسائیوں کی آبادی 2.78 کروڑ ہے جو کہ کل
آبادی کا 2.3 فیصد اور سکھوں کی آبادی
2.08 کروڑ (2.16 فیصد) اور بدھ مت کے پیروکاروں کی آبادی
0.84 کروڑ (0.7 فیصد) ہے.
وہیں 29 لاکھ لوگوں نے مردم شماری میں اپنے مذہب پر
ذکر نہیں کیا.
گزشتہ ایک دہائی میں آبادی 17.7 فیصد کی شرح سے
اضافہ ہوا ہے جبکہ 2001 سے
2011 کے درمیان مسلم آبادی 0.8 فیصد
بڑھی ہے تو ہندو آبادی میں 0.7 فیصد کی
کمی درج کی گئی. 2001 کے دوران ہونے والی مردم شماری میں ملک کی
کل آبادی 102 کروڑ تھی. اس میں ہندو آبادی 82.75 کروڑ (8045 فیصد) اور
مسلم آبادی 13.8 کروڑ (13.4 فیصد)
تھی.
ذات پات پر مبنی اعداد و شمار ابھی جاری نہیں ہوئے ہیں. فی الحال حکومت نے ذات مردم شماری کے اعداد و شمار جاری نہیں کئے ہیں.
راشٹریہ جنتا دل، جے ڈی یو اور ڈی ایم حکومت پر مسلسل زور دے رہے ہیں کہ وہ ذات مردم شماری کے اعداد و شمار بھی منظر عام پر لائے. آبادی کی سماجی و اقتصادی سطح کی بنیاد پر
اعداد و شمار امسال تین جولائی کو جاری کئے گئے تھے جس کے مطابق 2011 کے دوران ملک کی آبادی
121.09 کروڑ تھی.
مسلمانوں کی آبادی بڑھنے کی رفتار میں
کمی واقع ہوئی ہے .
یہ صورت حال آبادی کے اضافہ کی شرح میں کمی کی وجہ سے پیش آئی ہے.
ہندو، مسلم ہی نہیں بلکہ عیسائی، سکھ، بدھ مت اور جینیوں کی آبادی کےاضافہ کی شرح میں بھی
کمی آئی ہے.
دراصل ملک میں مردم شماری ہر دس سال میں ہوتی ہے.2011 میں ہونے والی مردم شماری کے مطابق ہندوؤں کی
آبادی میں اضافہ کی شرح 16.76 فیصد رہی جبکہ 10
سال قبل کی مردم شماری میں یہ شرح 19.92 فیصد پائی گئی تھی.
یعنی کہ ملک کی کل آبادی میں شامل ہونے والے ہندوؤں کی
تعداد میں 3.16 فیصد کی کمی آئی ہے.
مسلم آبادی میں اضافہ کی بات کی
جائے تو اس میں زیادہ بڑی کمی دیکھی گئی ہے.
گزشتہ مردم شماری کے مطابق ہندوستان میں مسلم آبادی 29.5 فیصد کی شرح سے بڑھ رہی تھی
جو اب گر کر 24.6 فیصد رہ گئی ہے.
یہ کہا جا سکتا ہے کہ ملک میں مسلمانوں کی شرح
آج بھی ہندوؤں کی آبادی میں اضافہ کی شرح سے زیادہ ہے،
لیکن یہ بھی سچ ہے کہ مسلم آبادی
بڑھنے کی شرح میں ہندوؤں کے مقابلے میں مزید کمی
آئی ہے.
جبکہ عیسائیوں کی آبادی میں اضافہ کی شرح 15.5 فیصد،
سکھوں کی 8.4 فیصد، بدھ مت کے پیروکاروں کی 6.1 فیصد اور
جینوں کی 5.4 فیصد ہے.
آبادی کی کہانی
مردم شماری کے اعداد و شمار کے مطابق ملک میں ہندوؤں کی
آبادی 96.63 کروڑ ہے جو کہ کل آبادی کا
79.8 فیصد ہے جبکہ مسلم آبادی 17.22
کروڑ ہے جو کہ آبادی کا 14.23 فیصد ہوتا
ہے.
عیسائیوں کی آبادی 2.78 کروڑ ہے جو کہ کل
آبادی کا 2.3 فیصد اور سکھوں کی آبادی
2.08 کروڑ (2.16 فیصد) اور بدھ مت کے پیروکاروں کی آبادی
0.84 کروڑ (0.7 فیصد) ہے.
وہیں 29 لاکھ لوگوں نے مردم شماری میں اپنے مذہب پر
ذکر نہیں کیا.
گزشتہ ایک دہائی میں آبادی 17.7 فیصد کی شرح سے
اضافہ ہوا ہے جبکہ 2001 سے
2011 کے درمیان مسلم آبادی 0.8 فیصد
بڑھی ہے تو ہندو آبادی میں 0.7 فیصد کی
کمی درج کی گئی. 2001 کے دوران ہونے والی مردم شماری میں ملک کی
کل آبادی 102 کروڑ تھی. اس میں ہندو آبادی 82.75 کروڑ (8045 فیصد) اور
مسلم آبادی 13.8 کروڑ (13.4 فیصد)
تھی.
ذات پات پر مبنی اعداد و شمار ابھی جاری نہیں ہوئے ہیں. فی الحال حکومت نے ذات مردم شماری کے اعداد و شمار جاری نہیں کئے ہیں.
راشٹریہ جنتا دل، جے ڈی یو اور ڈی ایم حکومت پر مسلسل زور دے رہے ہیں کہ وہ ذات مردم شماری کے اعداد و شمار بھی منظر عام پر لائے. آبادی کی سماجی و اقتصادی سطح کی بنیاد پر
اعداد و شمار امسال تین جولائی کو جاری کئے گئے تھے جس کے مطابق 2011 کے دوران ملک کی آبادی
121.09 کروڑ تھی.
हिंदू-मुस्लिम आबादी की पेचीदगी
भारत में पिछले 10 सालों में हिंदुओं और
मुसलमानों की आबादी बढ़ने की रफ़्तार में
गिरावट आई है.
ऐसा भारत में जनसंख्या में बढ़ोतरी की दर में आई
कमी की वजह से हुआ है.
हिंदू, मुस्लिम ही नहीं, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन,
इन सभी समुदायों की जनसंख्या वृद्धि की दर में
गिरावट आई है.
भारत में जनगणना हर दस साल में होती है. साल
2011 में हुई जनगणना के मुताबिक़ हिंदुओं की
जनसंख्या वृद्धि दर 16.76 फ़ीसद रही जबकि 10
साल पहले हुई जनगणना में ये दर 19.92 फ़ीसद पाई गई
थी.
यानी, देश की कुल आबादी में जुड़ने वाले हिंदुओं की
तादाद में 3.16 प्रतिशत की कमी आई है.
मुसलमानों की जनसंख्या में बढ़ोतरी की बात की
जाए तो उसमें ज़्यादा बड़ी गिरावट देखी गई है.
पिछली जनगणना के मुताबिक़ भारत में मुसलमानों
की आबादी 29.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी
जो अब गिरकर 24.6 फ़ीसद हो गई है.
ये कहा जा सकता है कि भारत में मुसलमानों की दर
अब भी हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर से अधिक है,
लेकिन यह भी सच है कि मुसलमानों की आबादी
बढ़ने की दर में हिंदुओं की तुलना में अधिक गिरावट
आई है.
वहीं, ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धि दर 15.5 फ़ीसद,
सिखों की 8.4 फ़ीसद, बौद्धों की 6.1 फ़ीसद और
जैनियों की 5.4 फ़ीसद है.
जनसंख्या की कहानी
जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक़ देश में हिंदुओं की
आबादी 96.63 करोड़ है, जो कि कुल जनसंख्या का
79.8 फ़ीसद है. वहीं मुसलमानों की आबादी 17.22
करोड़ है, जो कि जनसंख्या का 14.23 फ़ीसद होता
है.
ईसाइयों की आबादी 2.78 करोड़ है, जो कि कुल
जनसंख्या का 2.3 फ़ीसद और सिखों की आबादी
2.08 करोड़ (2.16 फ़ीसद) और बौद्धों की आबादी
0.84 करोड़ (0.7 फ़ीसद) है.
वहीं 29 लाख लोगों ने जनगणना में अपने धर्म का
जिक्र नहीं किया.
पिछले एक दशक में जनसंख्या 17.7 फ़ीसद की दर से
बढ़ी है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ 2001 से
2011 के बीच मुसलमानों की आबादी 0.8 फ़ीसद
बढ़ी हैं तो हिंदुओं की आबादी में 0.7 फ़ीसद की
कमी दर्ज की गई.
साल 2001 में हुई जनगणना के मुताबिक़ भारत की
कुल आबादी 102 करोड़ थी. इसमें हिंदुओं की
जनसंख्या 82.75 करोड़ (80.45 फ़ीसद ) और
मुसलमानों की आबादी 13.8 करोड़ (13.4 फ़ीसद)
थी.
जातिगत आंकड़े अभी नहीं
फिलहाल सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े
जारी नहीं किए हैं.
राजद, जदयू और डीएमके सरकार पर लगातार दबाब
बना रहे हैं कि वो जातिगत जनगणना के आंकड़े भी
सार्वजनिक करे.
जनसंख्या के सामाजिक आर्थिक स्तर आधारित
आंकड़े इस साल तीन जुलाई को जारी किए गए थे.
आंकड़ों के मुताबिक़ 2011 में भारत की जनसंख्या
121.09 करोड़ थी.
गिरावट आई है.
ऐसा भारत में जनसंख्या में बढ़ोतरी की दर में आई
कमी की वजह से हुआ है.
हिंदू, मुस्लिम ही नहीं, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन,
इन सभी समुदायों की जनसंख्या वृद्धि की दर में
गिरावट आई है.
भारत में जनगणना हर दस साल में होती है. साल
2011 में हुई जनगणना के मुताबिक़ हिंदुओं की
जनसंख्या वृद्धि दर 16.76 फ़ीसद रही जबकि 10
साल पहले हुई जनगणना में ये दर 19.92 फ़ीसद पाई गई
थी.
यानी, देश की कुल आबादी में जुड़ने वाले हिंदुओं की
तादाद में 3.16 प्रतिशत की कमी आई है.
मुसलमानों की जनसंख्या में बढ़ोतरी की बात की
जाए तो उसमें ज़्यादा बड़ी गिरावट देखी गई है.
पिछली जनगणना के मुताबिक़ भारत में मुसलमानों
की आबादी 29.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी
जो अब गिरकर 24.6 फ़ीसद हो गई है.
ये कहा जा सकता है कि भारत में मुसलमानों की दर
अब भी हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर से अधिक है,
लेकिन यह भी सच है कि मुसलमानों की आबादी
बढ़ने की दर में हिंदुओं की तुलना में अधिक गिरावट
आई है.
वहीं, ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धि दर 15.5 फ़ीसद,
सिखों की 8.4 फ़ीसद, बौद्धों की 6.1 फ़ीसद और
जैनियों की 5.4 फ़ीसद है.
जनसंख्या की कहानी
जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक़ देश में हिंदुओं की
आबादी 96.63 करोड़ है, जो कि कुल जनसंख्या का
79.8 फ़ीसद है. वहीं मुसलमानों की आबादी 17.22
करोड़ है, जो कि जनसंख्या का 14.23 फ़ीसद होता
है.
ईसाइयों की आबादी 2.78 करोड़ है, जो कि कुल
जनसंख्या का 2.3 फ़ीसद और सिखों की आबादी
2.08 करोड़ (2.16 फ़ीसद) और बौद्धों की आबादी
0.84 करोड़ (0.7 फ़ीसद) है.
वहीं 29 लाख लोगों ने जनगणना में अपने धर्म का
जिक्र नहीं किया.
पिछले एक दशक में जनसंख्या 17.7 फ़ीसद की दर से
बढ़ी है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ 2001 से
2011 के बीच मुसलमानों की आबादी 0.8 फ़ीसद
बढ़ी हैं तो हिंदुओं की आबादी में 0.7 फ़ीसद की
कमी दर्ज की गई.
साल 2001 में हुई जनगणना के मुताबिक़ भारत की
कुल आबादी 102 करोड़ थी. इसमें हिंदुओं की
जनसंख्या 82.75 करोड़ (80.45 फ़ीसद ) और
मुसलमानों की आबादी 13.8 करोड़ (13.4 फ़ीसद)
थी.
जातिगत आंकड़े अभी नहीं
फिलहाल सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े
जारी नहीं किए हैं.
राजद, जदयू और डीएमके सरकार पर लगातार दबाब
बना रहे हैं कि वो जातिगत जनगणना के आंकड़े भी
सार्वजनिक करे.
जनसंख्या के सामाजिक आर्थिक स्तर आधारित
आंकड़े इस साल तीन जुलाई को जारी किए गए थे.
आंकड़ों के मुताबिक़ 2011 में भारत की जनसंख्या
121.09 करोड़ थी.
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