हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर (र0) अकसर मस्जिद के इमाम
को मस्जिद से निकाल दिया करते थे।
लोगो को इसकी वजह समझ नही आती थी।
हर चौथे दिन इमाम साहब बदल दिए जाते थे।
एक दिन जमात का टाइम था,
और हज़रत औरंगज़ेब (र0) तशरीफ नही लाए थे।
इमाम साहब इन्तेज़ार कर रहे थे।
आप देर से आए।
इमाम ने नमाज़ पड़ानी शुरू की।
बाद जमात के आप ने इमाम को निकाल दिया।
थोड़े दिन गुज़र गये।
नये इमाम रखे गये।
फिर वही....जमात का टाइम हो गया।
और बादशाह नही आए थे।
पर इमाम साहब जमात के लिए खड़े हो गये।
लोगो ने कहा भी...अरे बादशाह के लिए थोड़ी देर रूक
जाइये।
इमाम ने फरमाया-औरंगज़ेब मेरे रब से बड़ा बादशाह
नही है।
नमाज़ शुरू हो गयी।
बादशाह जब बाद मे पहुँचे,तो लोगो ने सोचा कि आज
बादशाह इस इमाम को ख़तम कर देंगे।
पर हजरत औरंगज़ेब(र0) ने पास जाकर इमाम को गले
लगा लिया और फरमाया-चाहे बादशाह
हो या अमीर,
नमाज़ किसी के लिए रूकती नही।
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