Tuesday, 19 May 2015

Her Hijab No Deterrent.....

Her Hijab no deterrent, this IAS officer determined to work for marginalised sector************
##‪#‎By‬ Shafeeq Hudavi, TwoCircles.net,

Kozhikode: It’s a long pending dream come true, not only for her but for the entire Muslim community in Kerala, especially the Muslim women.

Atheela Abdulla is not the first woman IAS officer in the state, but what makes her special is the fact that she has emerged as the first civil servant in Hijab. “There is an option to wear or not to wear it. I opted the choice of wearing it. As a civil servant, I am obliged to not raise such question and do justice to my duty and post,” Atheela says.

Atheela Abdulla:-----
Currently, she is posted as the Sub Collector and Additional District Magistrate in Malappuram, the district with second largest Muslim population in the country after Murshidabad in West Bengal.

Born at Valayam near Kuttyadi in Kozhikode district to Abdulla, an NRI businessman, and Biyyathu, a school teacher. Atheela completed her primary and secondary studies in Good Faith School in Kuttyadi. After completing the higher secondary studies from the Muslim Educational Society (MES) residential school at Chathamangalam in Kozhikode, she earned her MBBS degree from MES Medical College, Malapparamba in Malappuram.

But, the career as a doctor was not sufficient to fulfill her obligations to the society. “While it comes to lending service to the society, a doctor is confined with various restrictions. To become an IAS officer means a full time servant with adequate scope of service,” Atheela says.

Moreover, like most of the high school going girls, she always dreamt about a career as a civil servant with recognition. It was easier said than done. The challenge was not just the studies. Married, with two daughters, it was Atheela’s family, especially her in-laws, who helped her realize her dream. But what drove the family to help her accomplish her desire to become an IAS officer?

Her mother-in-law, Thahira, a retired school teacher, lent her support to Atheela with a “desire to draw Muslim girls towards civil service.”

“Our daughter-in-law has earned her place. This achievement might help in drawing more Muslim girls to civil services,” Thahira says.

Atheela’s husband Dr Rabeeh is pursuing his post graduation in medicine at Pariyaram Cooperative Medical College.

So, with hard work, burning the proverbial mid-night oil, Atheela became the IAS officer of Kerala cadre in 2012. She was appointed as the sub-collector trainee in Kannur district of Northern Kerala in 2013.

During the training period, her efforts to uplift the society received accolades as she initiated various schemes meant for child welfare. While it comes to discharging her duty as a civil servant, the doctor-turned-civil servant dreams of ensuring better service for the common men in different departments of the government. “One of my prime priority is to develop my office as friendly as possible for all who approach it for various purposes. I often come through several beneficiaries, who fail to get satisfying answers while approaching the government offices,” she says.

Atheela is trying to wriggle out of being a typical bureaucrats by making her office accessible to everyone and ensuring everyone gets satisfaction to his/her queries. “I try that none should leave my office without getting an answer,” she says.

According to her, environmental issues, which are least considered by the government officials, will be given befitting cognizance. And while it comes to her priority list, the welfare of senior citizen also assumes major consideration.

But it is her vision, her dream as an IAS that she says she will lay stress on the social sector in a bid to ensure the uplifting of the marginalised sector. “The social sector is in dire need for an emancipation.”

Sunday, 17 May 2015

'नेहरू ने बोस को यातनाएं देकर मरवाया'

दिनेश चंद्र मिश्र, वाराणसी
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत किसी विमान हादसे में नहीं बल्कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने साजिश के तहत उन्हें घोर यातनाएं देकर मरवाया था।  यह आरोप किसी नेता का नहीं बल्कि नेताजी की प्रपौत्री राज्यश्री चौधरी का है।
बनारस में बीजेपी के पूर्व थिंक टैंक गोविंदाचार्य की अगुवाई में चल रहे राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के स्थापना दिवस समारोह में हिस्सा लेने आईं राज्यश्री ने एनबीटी से खास बातचीत में यह बात कही। राज्यश्री ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर कुर्सी के लिए रूसी तानाशाह स्टालिन के जरिए अमानवीय यातनाएं देकर साइबेरिया में नेताजी को मरवाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह बात तथ्यों पर आधारित है। उनके मुताबिक संसद में मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट बिना संपादित किए रख दी जाए तो दूध का दूध,पानी का पानी सामने आ जाएगा।
यूएन से जुड़े एक एनजीओ को चलाने वाली राज्यश्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद नेताजी को वॉर क्रिमिनल घोषित कराने के बाद एक फर्जी सूचना फ्लैश कराई गई कि प्लेन क्रैश में नेताजी की मौत हो गई। हकीकत यह थी कि वह शरण लेने के लिए रूस पहुंचे तो स्टालिन ने उन्हें कैद करने के बाद नेहरू को इसकी जानकारी देते हुए पूछा कि नेताजी उसकी कैद में हैं क्या करें? अंग्रेजों के प्रति वफादारी दिखाने के लिए नेहरू ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली को खत भेज कर यह जानकारी देने के साथ लिखा कि 'आपका युद्ध अपराधी (नेताजी) रूस में है।' इसके साथ ही नेहरू ने स्टालिन को नेता जी की हत्या करने का इशारा किया। स्टालिन ने नेताजी को साइबेरिया के 'गुलाग' में अमानवीय यातनाएं देकर मारने के लिए भेज दिया। नेता जी की मौत हो वहीं हुई। नेताजी के रहस्यमय ढंग से गायब होने के बाद देश में बने जस्टिस संतोष मुखर्जी की रिपोर्ट तो दर्ज है और न ही बोस का नाम मृतकों की सूची में शामिल है। जवाहरलाल नेहरू के तत्कालीन स्टेनोग्राफर मेरठ निवासी श्यामलाल जैन ने खोसला कमिशन के सामने अपने बयान में बताया था कि रूस के प्रधानमंत्री स्टालिन ने संदेश भेजा था कि 'सुभाष चंद्र बोस हमारे पास हैं, उनके साथ क्या करना है?' राज्यश्री ने दावा किया कि 26 अगस्त 1945 को आसिफ अली के घर बुलाकर नेहरू ने उनसे यह पत्र टाइप कराया था। श्याम लाल ने खोसला आयोग के सामने यह बात तो रखी पर उनके पास सुबूत नहीं थे। राज्यश्री चौधरी ने कहा कि देश के सामने जब तक नेताजी की हत्या करने के साथ आजाद हिंद फौज का खजाना लुटवाने वाले गद्दारों का चेहरा नहीं लाएंगे तब तक चैन से नहीं बैठेंगे।
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क्रिमिनल घोषित कराने के बाद एक फर्जी सूचना फ्लैश कराई गई कि प्लेन क्रैश में नेताजी की मौत हो गई। हकीकत यह थी कि वह शरण लेने के लिए रूस पहुंचे तो स्टालिन ने उन्हें कैद करने के बाद नेहरू को इसकी जानकारी देते हुए पूछा कि नेताजी उसकी कैद में हैं क्या करें? अंग्रेजों के प्रति वफादारी दिखाने के लिए नेहरू ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली को खत भेज कर यह जानकारी देने के साथ लिखा कि 'आपका युद्ध अपराधी (नेताजी) रूस में है।' इसके साथ ही नेहरू ने स्टालिन को नेता जी की हत्या करने का इशारा किया। स्टालिन ने नेताजी को साइबेरिया के 'गुलाग' में अमानवीय यातनाएं देकर मारने के लिए भेज दिया। नेता जी की मौत हो वहीं हुई। नेताजी के रहस्यमय ढंग से गायब होने के बाद देश में बने जस्टिस संतोष मुखर्जी की रिपोर्ट संसद में रख दी जाए तो यह सच सामने आ जाएगा।
मोदी से मायूस पर उम्मीद जिंदा
नेताजी के रहस्यमय ढंग से गायब होने के मामले से पर्दा उठाने के लिए मोदी सरकार द्वारा एक साल के कार्यकाल में कुछ न किए जाने से मायूस राज्यश्री चौधरी ने कहा कि हम अभी नाउम्मीद नहीं है। मोदी सरकार के चार साल अभी बाकी है। राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन नेताजी की गुमशुदगी पर बने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को संसद में बिना कांट-छांट के रखने की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर आंदोलन की रणनीति बना रहा है। जंतर-मंतर पर होने वाले इस आंदोलन में नेताजी के ड्राइवर रहे आजमगढ़ के मूल निवासी निजामुद्दीन भी शिरकत करेंगे। नेताजी के फौज के एक मात्र जीवित साथी निजामुद्दीन से मिलने के लिए राज्यश्री रविवार को आजमगढ़ जाएंगी।
देश के गद्दारों का चेहरा सामने लाएंगे
सन 1945 में नेताजी के हवाईदुघर्टना में मारे जाने की खबर उड़वाने के पीछे नेहरू की सोची-समझी साजिश के हिस्सा बताते हुए राज्यश्री ने कहा कि 1945 में ताइवान में कहीं भी कोई हवाई दुर्घटना न तो दर्ज है और न ही बोस का नाम मृतकों की सूची में शामिल है। जवाहरलाल नेहरू के तत्कालीन स्टेनोग्राफर मेरठ निवासी श्यामलाल जैन ने खोसला कमिशन के सामने अपने बयान में बताया था कि रूस के प्रधानमंत्री स्टालिन ने संदेश भेजा था कि 'सुभाष चंद्र बोस हमारे पास हैं, उनके साथ क्या करना है?' राज्यश्री ने दावा किया कि 26 अगस्त 1945 को आसिफ अली के घर बुलाकर नेहरू ने उनसे यह पत्र टाइप कराया था। श्याम लाल ने खोसला आयोग के सामने यह बात तो रखी पर उनके पास सुबूत नहीं थे। राज्यश्री चौधरी ने कहा कि देश के सामने जब तक नेताजी की हत्या करने के साथ आजाद हिंद फौज का खजाना लुटवाने वाले गद्दारों का चेहरा नहीं लाएंगे तब तक चैन से नहीं बैठेंगे। 
http://m.nbt.in/text/details.php?storyid=47309261&section=top-news
यह कथित तौर पर माना जाता है कि राम वर्मा कुलशेखर के आदेश पर भारत में प्रथम मस्जिद का निर्माण ई॰ 629 में हुआ था, जिन्हें मलिक बिन देनार के द्वारा केरल के कोडुंगालूर में मुहम्मद (c. 571–632) के जीवन समय के दौरान भारत का पहला मुसलमान भी माना जाता है। मालाबार में, मप्पिलास इस्लाम में परिवर्तित होने वाले पहले समुदाय हो सकते हैं क्योंकि वे दूसरों के मुकाबले अरब से अधिक जुड़ें हुए थे। तट के आसपास गहन मिशनरी गतिविधियां चलती रहीं और कई संख्याओं में मूल निवासी इस्लाम को अपना रहे थे। इन नए धर्मान्तरित लोगों को उस समय माप्पीला समुदाय के साथ जोड़ा गया। इस प्रकार मप्पिलास लोगों में हम स्थानीय महिलाओं के माध्यम से अरब लोगों की उत्पत्ति और स्थानीय लोगों में से धर्मान्तरित, दोनों प्रकार को देख सकते हैं। 8वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन कासिम की अगुवाई में अरब सेना द्वारा सिंध प्रांत (वर्तमान में पाकिस्तान) पर विजय प्राप्त की गई। सिंध, उमय्यद खलीफा का पूर्वी प्रांत बन गया।10वीं सदी के प्रथम अर्द्ध भाग में गजनी के महमूद ने पंजाब को गज़नविद साम्राज्य में जोड़ा और आधुनिक समय के भारत में कई छापे मारे। 12वीं शताब्दी के अंत में एक और अधिक सफल आक्रमण घोर के मुहम्मद द्वारा किया गया था। इस प्रकार अंततः यह दिल्ली सल्तनत के गठन के लिए अग्रसर हुआ।
अरब-भारतीय संपर्कसंपादित करें
अरबिया में इस्लाम के आगमन से पहले, इस्लाम के प्रारम्भिक चरणों में भारत और भारतीयों के साथ अरब और मुसलमानों के संपर्क होने से संबंधित पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। अरब व्यापारियों ने भारतीयों द्वारा विकसित अंक प्रणाली को मध्य पूर्व और यूरोप में प्रसारित किया।आठवीं सदी के प्रारम्भ में कई संस्कृत पुस्तकों का अरबी में अनुवाद किया गया। जॉर्ज सलिबा अपनी पुस्तक 'इस्लामिक साइंस एंड द मेकिंग ऑफ द यूरोपियन रेनेसांस' में लिखते हैं कि "द्वितीय अब्बासिद खलीफा अल- मंसूर [754-775] के शासन के दौरान प्रमुख संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद शुरू किया गया था, अगर उससे पहले नहीं तो; यहां तक कि उससे पहले भी तर्क पर कुछ ग्रंथों का अनुवाद किया गया था और आम तौर पर यह स्वीकार किया गया था कि कुछ फ़ारसी और संस्कृत ग्रंथों को जैसे का तैसा रखा गया था, हालांकि वास्तव में पहले से ही उनका अनुवाद किया जा चुका था"। लोकप्रिय विश्वास के विपरीत, इस्लाम भारत में मुस्लिम आक्रमणों से पहले ही दक्षिण एशिया में आ चुका था। इस्लामी प्रभाव को सबसे पहले अरब व्यापारियों के आगमन के साथ 7वीं शताब्दी के प्रारम्भ में महसूस किया जाने लगा था। प्राचीन काल से ही अरब और भारतीय उपमहाद्वीपों के बीच व्यापार संबंध अस्तित्व में रहा है। यहां तक कि पूर्व-इस्लामी युग में भी अरब व्यापारी मालाबार क्षेत्र में व्यापार करने आते थे, जो कि उन्हें दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ती थी। इतिहासकार इलियट और डाउसन की पुस्तक द हिस्टरी ऑफ इंडिया एज टोल्ड बाय इट्स ओन हिस्टोरियंस के अनुसार भारतीय तट पर 630 ई॰ में मुस्लिम यात्रियों वाले पहले जहाज को देखा गया था। पारा रौलिंसन अपनी किताब: एसियंट एंड मिडियावल हिस्टरी ऑफ इंडिया में दावा करते हैं कि 7वें ई॰ के अंतिम भाग में प्रथम अरब मुसलमान भारतीय तट पर बसे थे। शेख़ जैनुद्दीन मखदूम "तुह्फत अल मुजाहिदीन" एक विश्वसनीय स्त्रोत है। इस तथ्य को जे॰ स्तुर्रोक्क द्वारा साउथ कनारा एंड मद्रास डिस्ट्रिक्ट मैनुअल्स में माना गया हैऔर हरिदास भट्टाचार्य द्वारा कल्चरल हेरीटेज ऑफ इंडिया वोल्यूम IV. में भी इस तथ्य को प्रमाणित किया गया है।[32] इस्लाम के आगमन के साथ ही अरब वासी दुनिया में एक प्रमुख सांस्कृतिक शक्ति बन गए। अरब व्यापारी और ट्रेडर नए धर्म के वाहक बन गए और जहां भी गए उन्होंने इसका प्रचार किया।
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE

پاکستانی اور امریکی فوج کی سفاکیت

گیارہ سال سے زائد عرصے سے پاکستانی فوج امریکی فوج کے ساتھ مل کر قبائلی علاقوں بلکہ پورے پاکستان میں دہشت گردی کے نام پر جو اسلام کیخلاف اب تک جنگ لڑرہی ہے اور جن جرائم کا ارتکاب کیا ہے اور اب تک کررہی ہے؛ کیا آپ سمجھتے ہیں کہ یہ سب کچھ پشاور میں بچوں کے قتل سے کم سفاکیت رکھتی ہے ؟
مدارس ومساجد کو شہید، گھروں کو تباہ، بیگناہ شہریوں کو ہلاک وزخمی کرنا، بازاروں اور علاقوں پر بموں کی بارش کرکے ان کو کھنڈرات میں تبدیل کرنا، گھروں اور چار دیواری کی حرمت کو پامال کرنا، اہل خانہ ومسلم بہنوں کو زدکوب کرنا، اسلامی شریعت کے نفاذ کا مطالبہ کرنے والے مسلمانوں کو اجتماعی سزا دیتے ہوئے ان کو اپنے علاقوں سے بے گھر کرکے کیمپوں اور کھلے آسمان تلے کسمپرسی کی زندگی گزارنے پر مجبور کرنا، امریکی فوجیوں اور اس کی بلیک واٹر جیسی کرائے کی سیکورٹی کمپنیوں کو پورے پاکستان میں قانونی طور پر بغیر کسی روک ٹوک کے گھوم پھر کر پاکستانی خفیہ ایجنسیوں کے ساتھ مل کر بازاروں اور پبلک مقامات پر بم دھماکے کرنا اور صرف مجاہدین کو بدنام کرنے کے لیے ان کیخلاف میڈیا پروپیگنڈے کا جواز حاصل کرنے کے لیے معصوم پاکستانی مسلمانوں اور عوام الناس کو نشانہ بنانا اور انہیں شہید وزخمی کرنا، امریکی ایجنسیوں کو حکومتی سرپرستی میں پورے ملک میں غنڈہ گردی اور دہشت گردی پھیلانے دینا، ڈرون اور امریکی جنگی طیاروں کو فوجی اڈے دینا، جہاد ومجاہدین کا ساتھی ہونے کا الزام لگاکر کسی کو بھی گرفتار کرنا، جیلوں میں قید مجاہدین کے ساتھیوں کو ماورائے عدالت گولیوں سے بھون کر سڑکوں پر ان کی لاشیں پھینکنا، مجاہدین کی مدد کرنے کے الزام میں بوڑھوں کو گلے میں رسیاں ڈال کر سڑکوں پر گھیسٹنا اور انہیں بے دردی سے مار کر شہید کرنا اور کوئی بھی اپنی ذاتی دشمنی یا خاندانی یا قبائلی یا تنظیمی تعصب کی بنا پر کسی کی بھی مخبری کرکے اسے مجاہد یا دہشت گرد قرار دیدے تو اسے فوراً گرفتار کرکے سلاخوں کے پیچھے بھیج دیا جاتا ہے یا پھر امریکیوں کو بیچ دیا جاتا ہے جیساکہ آئی ایس آئی ایجنسی کے مجرموں نے مسلم خاتون ڈاکٹر عافیہ صدیقی فک اللہ اسرا اور کئی سو مسلمانوں کو امریکہ کے حوالے کیا۔لیکن آفرین ہو پاکستانی میڈیا پر جسکو اگر دجال کا لقب دیا جائے تو غلط نہ ہوگا تمام مظالم کو جانتے جھوٹ کو سچ بنانے میں لگی ہوئی ہے قبائل کے مظلوم مسلمانوں کی آواز کو اس پوری صلیبی جنگ گھونٹا گیا قبائلی علاقوں کے عام شہریوں تک کو حکومت اور فوج کے جرائم کو بے نقاب کرنے والے بیانات اور اپنے اوپر ہونے والے مظالم کی تفصیل تک پاکستانی میڈیا اور ٹی وی چینلوں پر بیان کرنے کی اجازت حاصل نہیں ہے۔اس سے بھی بڑھ کر قبائلی علاقہ جات کی جو صحیح زمینی صورتحال ہے  اور وہاں فوج کے آپریشن سے جو تباہی پھیلی ہے اور جو کچھ اب وہاں ہورہا ہے، اس کی کوریج کرنے تک کی اجازت حاصل نہیں ہے۔پاکستان کا تمام الیکٹرونک وپرنٹ میڈیا صرف وہی کررہا ہے، جو فوج اپنے ذاتی مفادات کو پورا کرنے کی خاطر اپنی مرضی سے پاکستانی عوام کو سنانا اور دکھانا چاہتی ہے.      
محفوظ الرحمٰن مفتاحی

Janaza, Qabr aur Taa'ziyat ki bid'atain‏

Assalaamualaikum!
Aaj kal yeah sab bid’atain hum ne is taraah apna li hain k inhain apne deen ka hissaa hi bana liya hai. (Tauba Na’uzubillaah) Humain in bid’aton se jitna ho sakay bachna chahiye kyunk hadeeth e Nabwi sallaahu ‘alaihi wasallam hai:

“MAIN HAUZ-E-KAUTHAR PER TUM LOGON KA PAISH KHAIMA HOON GA OR TUM MEIN SE KUCH LOG MERI TARAF AAEN GE. JAB MAIN UNHAIN (HAUZ KA PAANI) DENE K LIYE JHUKOON GA TO UNHAIN MERE SAMNAY SE KHAINCH LIYA JAE GA. MAIN KAHOON GA, AE MERE RABB! YEAH TO MERI UMMAT K LOG HAIN. ALLAH TALAH FARMAAE GA AAP KO NAHI MAALOOM K INHON NE AAP K BAAD DEEN MEIN KYA NAYI BATAIN NIKAL LI THI”
SAHIH BUKHARI, VOLUME 8, KITAAB UL FITAN, PAGE 327, HADITH 7049

Mazeed aap sallaahu ‘alaihi wasallam ne farmaya:
“MAIN KAHOON GA KEH DOORI HO DOORI HO UN K LIYE JINHON NE MERE BAAD DEEN MEIN TABDEELIYAN KAR DI THI.”
SAHIH BUKHARI, VOLUME 8, KITAAB UL FITAN, PAGE 327, HADITH 7050-51


ą MURDAY KO DAFNANAY K BAAD LOG FORAN TAA’ZIYAT OR DAAWAT KI TARAF DOR PARTAY HAIN. MURDAY KI WASSIYYAT OR US KA QARZ PURA KARNE SE GHAAFIL HO JATAY HAIN. WHO LOG WAAJIB CHOR KAR BID’AT KI TARAF DOR RAHAY HAIN.
ą MAYYAT KI WAFAAT SE LE KAR US KI TAJHEEZ O TAKFEEN TAK QUR.AAN KHAANI KARNA, YA ISSI TARAH ROOH QABZ K WAQT SURAH YASEEN KA KHATM KARNA, IS K LIYE KARAAE PER PARHNAY WALON KO TALAB KARNA.
ą NOHAA KARNA, CHEEKHNA, CHILLAANA, GIREBAAN PHARNA, MUN NOCHNA, OR ALLAAH SUBHAANAHU WA TA’AALA KI TAQDEER PER YEAH KEH KAR AITRAAZ KARNA KEH FALAAN SHAKHS TO MUSEEBAT K LAYIQ NA THA, FALAAN SHAKHS KO ABHI TO NAHI MARNA CHAHIYE THA. YA YEAH KEHNA K AE RABB! MAIN NE TERA KYA KIYA HAI KEH TU MUJHE MUSEEBAT DE RAHA HAI. HALAANKEH AISE LOGON KO MAYYAT KI WAFAAT PER INNAA LILLAAHI WA INNAA ILAIHI RAAJEOON PARHNA CHAHIYE, OR ALLAAH KI TAQDEER PER RAAZI HO KA US KA SHUKR ADAA KARNA CHAHIYE.
ą YEAH AQEEDA RAKHNA K SHOHAR BIWI AIK DUSRAY KO GHUSAL NAHI DE SAKTAY HALAANKEH BAAZ SAHAABA KARAAM RADIALLAAH ‘ANHUMAA SE SAABIT HAI K UNHON NE APNI BIWIYON KO GHUSAL DIYA HAI.
ą MAYYAT KO QABRISTAAN LE JAATAY HAIN TO US KO AIK KAPRAY SE DHAANK DETE HAIN, JIS PER AAYAT UL KURSI YA KOI AAYAT LIKHI HOTI HAI, YEAH BHI AIK GHALATI HAI.
ą FARZ NAMAAZON KA QABRISTAAN MEIN ADAA KARNA. QABRON KI TARAF RUKH KAR K NAMAAZ PARHNA, DU’AA KARNA, QUR.AAN PARHNA. YEAH SAB SHIRK K WASAAYIL MEIN SE HAIN. ALBATTA JANAAZA KI NAMAZ QABRISTAAN MEIN PARHI JA SAKTI HAI.
ą TAAKHEER SE JANAAZA ADAA KARNA. BAAZ LOG APNE QAREEBI RISHTE DAARON K INTAZAAR MEIN YA KHATAM UL QUR.AAN K INTAZAAR MEIN JANAAZA MEIN TAAKHEER KARTAY HAIN, HALAANKEH IS SILSILAY MEIN SUNNAT YEAH HAI K JANAAZA MEIN JALD BAAZI SE KAAM LIYA JAAE, OR RISHTE DAAR WAGHAIRA JAB WAHAAN POHANCHAIN TO QABR PER JA KAR NAMAAZ E JANAZA ADAA KAR LAIN.
ą BE NAMAAZI KA JANAAZA ADAA KARNA. AISA KARNA DARUST NAHI HAI, BALKEH AIK DHOKA OR KHAYANAT HAI. IS LIYE JAB KISI BE NAMAAZI KA INTAQAAL HO JAAE TO NA USSE GHUSAL DIYA JAAE, NA HI US KI JANAAZA PARHI JAAE, OR NA HI USSE MUSALMAANO KAY QABRISTAAN MEIN DAFAN KIYA JAAE. (ASTAGHFIRULLAAH)
ą JANAAZAY KI NAMAZ K TAREEQAY SE GHAAFIL HONA.
ą 4 MAHEENAY SE ZIYAADA KA HAMAL SAQIT HO JAANAY PER JANAAZA ADAA NA KARNA. IS LIYE K IS MUDDAT MEIN ROOH PHOONK DI JAATI HAI. SO JAB 4 MAAH KA BACHA SAQIT HO TO BEHTAR YEAH HAI KEH USSE GHUSAL DIYA JAAE, US KI JANAAZA PARHI JAAE OR MUSALMAANO K QABRISTAN MEIN USSE DAFAN KIYA JAAE. ALBATTA 4 MAAH SE QABL PER JANAAZA NAHI.
ą YEAH AQEEDA RAKHNA K JAB SUAALEH SHAKHS  KA JANAAZA HO TO US KI MAYYAT HALKI HOTI HAI. IS KI KOI HAQEEQAT NAHI HAI.
ą JANAAZAY KO AHISTA RAFTAAR MEIN QABARISTAAN LE JANA. SUNNAT YEAH HAI K JANAAZAY KO TAIZI SE LE JAAYAA JAAE.
ą JANAAZA LE JAATAY WAQT ZOR SE ALLAAHU AKBAR, LAA ILAAHA ILLALLAAH, YA KALMAA E SHAHAADAT KEHNA.
ą JANAAZAY KI NAMAAZ K BAAD HAATH UTHA K AR IJTAMAA’I DUA KARNA.
ą RAAT MEIN DAFAN NA KARNA. HASB-E-ZAROORAT RAAT MEIN DAFAN KAR SAKTAY HAIN.
ą PEHLE SE APNI MANN PASAND QABAR KHUDWANA OR USSI MEIN DAFAN KI WASSIYYAT KARNA.
ą QABARISTAAN MEIN JA KAR KHAMOSHI S-E FIKR-E-AAKHRAT KI BAJAAE SHOR O GHUL KARNA.
ą QABAR PER KUTBA LAGAANA.
ą MAYYAT KO GHAR SE LE JAATAY WAQT YA DAFNAANAY K WAQT JAANWAR ZIBAH KARNA.
ą MURDA KA AHTARAAM NA KARNA. MASLAN QABAR PER JOOTAY YA CHAPPAL PEHAN KAR CHALNA, QABARISTAAN MEIN GANDAGI OR KACHRAA PHAINKNA, QABARON KO BATTIYON SE CHIRAGHAAN KARNA.
ą BAZURG YA WALI KI QABR KO MUQADDAS SAMAJHNA.
ą YEAH AQEEDA RAKHNA K DARAKHT MAYYAT KI KHUSH BAKHTI KI ILAAMAT HAIN. IN DARAKHTON KO KAATNE WALA MUSEEBAT MEIN GIRAFTAAR HO GA.
ą QABARON KI SHIRKIYAA ZAYAARAT KARNA; SAAHAB-E-QABAR SE DU’AA KI DARKHUAAST KAY LIYE SAFAR KARNA, IN SE HAAJAT TALAB KARNA, MURAADAIN MAANGNA, UN KI QABARON KA TAWAAF KARNAM, UN KAY NAAM KI NAZAR MAANGNA, YEAH SAB KHULA HUA SHIRK OR AZEEM GUMRAAHI HAI. YEAH WHO AMAL HAI JO BANDAY KI NAIKIYAAN MITA DETA HAI.
ą QABARON KI ZAYAARAT K LIYE SAFAR KARNA, KHAWAAH NABI KAREEM SALLAAHU ‘ALAIHI WASALLAM KI QABAR KAY LIYE HO, YEAH SAB BID’AT HAI. IS LIYE NABISALLAAHU ‘ALAIHI WASALLAM KI MASJID MEIN NAMAAZ PARHNE KAY LIYE SAFAR KARNE KA HUKM HAI, NA QABAR KI ZAYAARAT KI GHARZ SE. ALBATTA WAHAN KOI POHANCH JAAE TO NABI KAREEM SALLAAHU ‘ALAIHI WASALLAM KI QABAR KI ZAYAARAT KARAY, OR AAP PER DUROOD BHAIJE.
ą JUMU’AA (FRIDAY) OR ‘EED K DIN KHASUSIYYAT SE QABARON KI ZAYAARAT KARNA.
ą QABAR KI ZAYAARAT KAY WAQT QABAR PER PAANI CHIRANKNA.
ą QABAR PER QUR.AAN PARHNA.

Please forward this to all you know, so that, more and more people can prevent performing innovations. May Allaah subhaanahu wa ta’aala bless you in this world and hereafter. Aameen
http://dahonest.jimdo.com/new-page/#

عمر بن عبدالعزیز رحمۃ اللہ علیہ

رات گئے ایک شخص امیرالمونین کے دروازے پر دستک دیتاہے اور آدھی دنیاکا حکمران اپنے گھرسے باہر نکل آتاہے،وہ شخص اپنے ہاتھ میں پکڑی اشرفیوں کی بھری تھیلی امیرالمومنین کی طرف بڑھاتاہے اور عرض کرتاہے اتنے سو میل دور فلاں بستی سے آیاہوں اور یہ مال زکوۃ آپ کی خدمت میں پیش کرتاہوں،امیرالمومنین نہایت افسوس کے ساتھ کہتے ہیں کہ یہ مال راستے میں تقسیم کردیاہوتامیرے پاس لانے کی کیاضرورت تھی؟؟،نوواردعرض کرتاہے یاامیرالمومنین سارے راستے آواز لگاتاآیاہوں کہ لوگو زکوۃ کامال ہے کوئی تو لے لو،لیکن سینکڑوں میل کے اس سفر کوئی زکوۃ لینے والا نہ تھا۔
یہ امیرالمونین حضرت عمربن عبدالعزیزرحمۃ اللہ علیہ تھے جن کی خلافت اسلامیہ میں اس قدر امن و امان اورخوشحالی تھی کہ سینکڑوں میل تک اشرفیوں سے بھراہوامسافر بلاخوف و خطر سفرکرتارہااور اسے کوئی زکوۃ کا مستحق بھی نہ ملااور حکمران ایسا کہ جس کے گھرپر کوئی پہرہ نہ تھا نصف شب سائل کے دروازہ بجانے پر کسی نوپ دار نے ڈانٹ ڈپٹ نہیں کی بلکہ حکمران خود بستر سے بیدارہوا اور آنے والے کو خوش آمدیدکہا۔
حضرت عمربن عبدالعزیزؒ کی کنیت ’’ابوحفص‘‘تھی،بنوامیہ کے آٹھویں حکمران تھے،سلیمان بن عبدالملک کے بعد تخت نشین ہوئے اوراپنی عمدہ وپاکیزہ سیرت اورراست روی وپاک دامنی کے باعث مورخین کے ہاں خلفائے راشدین میں شمار کیے جاتے ہیں۔61ھ ،مدینہ منورہ میں جنم لیا،ننھیال فاروقی خاندان سے متعلق تھا ۔جوارروضہ اقدس کے باعث جہاں بچپن میں ہی قرآن پاک حفظ کرلیاوہاں عبداﷲبن عمرؓاورانس بن مالک ؒ سمیت متعدد صحابہ و تابعین کے سامنے زانوئے تلمذتہہ کرنے کی سعادت بھی میسر آگئی۔والد محترم نے بھی تربیت میں کمی نہ ہونے دی،ایک بار بالوں کی آرائش کے باعث جماعت میں غیر حاضری ہوئی تو سخت گیر باپ نے عنفوان شباب میں قدم رکھنے والے نوخیز حضرت عمربن عبدالعزیزؒ کے بال ترشوا دیے۔ شاہی خاندان کے چشم و چراغ تھے ،منہ میں سونے کا چمچ لے کر پیداہوئے اس لحاظ سے شباب نہایت ہی نفاست و خوش پوشاکی میں گزرا،خلیفہ بننے تک اعلی معیارزندگی کے شاہانہ طوروطریق وطیرہ خاص رہے۔عطریات و خوشبوئیات اور لباس و پہناوے میں حتی کہ شاہی خاندان کے نوجوان بھی مات تھے۔نازونعم کے باوجودنہ صرف یہ کہ کبائر سے ہمیشہ مجتنب رہے بلکہ عبادات میں ذوق و شوق اس پاکیزہ صفت نوجوان کا وصف خاص رہا۔شاید اسی کے باعث مدینہ منورہ جیسے مقدس ترین شہرکی خدمت بطورگورنری بھی آپ کے حصے میں آئی،706ء تا 713ء تک کم و بیش چھ سالہ اس دورمیں مسجد نبوی کی تعمیر نو آپ کا شاندار کارنامہ ہے ،جبکہ عدل و انصاف اور اہالیان مدینہ منورہ سے مہمانوں جیسے برتاؤ سے رعایاکے دل جیت لیے۔ولایت مدینہ منورہ کے دوران آپ نے دس قابل ترین افراد کی ایک مجلس مشاورت بنائی تھی جس کے پاس وسیع انتظامی و عدالتی اختیارات بھی تھے۔ درحقیقت آپ کے پیش رو حکمرانوں نے اہل مدینہ سے حجازسے کربلا تک جو سلوک کیاتھا ،حضرت عمربن عبدالعزیزؒ نے اس کی تاریخ ہی بدل ڈالی۔
سلیمان بن عبدالمک نے حضرت عمربن عبدالعزیزؒ کواپنا جانشین مقررکیاتھالیکن آپ کو اس کی اطلاع نہیں تھی۔718ء میں خلیفہ کے انتقال کے بعد مہرلگی بند وصیت پر شاہی عمائدین سلطنت واراکین خاندان خلافت سے بیعت لی گئی اور جب اس لفافے کو کھولاگیاتو حضرت عمربن عبدالعزیزؒ کا نام لکھاپایا۔اس فیصلے پر اکثر افراد شاہی خاندان نے اظہارناپسندیدگی کیالیکن شاہی چوب داروں نے زبردستی بیعت لی اور یوں حضرت عمربن عبدالعزیزؒ تخت نشین ہوئے۔تخت نشینی کے بعدمسجدمیں خطاب کرتے ہوئے کہاکہ کہ چاہوتوکسی اور کو اپنا حکمران بنالولیکن عوام کی اکثریت نے خوش دلی سے آپ کی خلافت کو قبول کرلیاجس سے ایک جمہوری حکومت کا آغاز ہوا اور آپ نے خلیفہ اول حضرت ابوبکر صدیقؓ کے اولین خطبہ خلافت سے ملتاجلتا خطبہ ارشاد فرمایاجسے تاریخ نے سنہرے حروف سے تحریر کیاہے۔درحقیقت یہی خطبہ ایک بار پھر امت مسلمہ کوملوکیت سے خلافت کی طرف گامزن کرنے والی دستاویزثابت ہوا۔بارخلافت سے زندگی بالکلیہ تبدیل ہو گئی اور نفاست و خوش لباسی ساری کی ساری فقرو درویشی میں تبدیل ہو گئی۔خلافت کے بعد سواری کے لیے اعلی نسل کے گھوڑے پیش کیے گئے لیکن یہ کہ کر لوٹا دیے کہ میرے لیے میرا خچر ہی کافی ہے،دوران سفر ایک نقیب آگے کو چلا تو اسے ہٹادیا کہ کہ میں بھی ایک عام سا مسلمان ہوں،سلیمان بن عبدالملک کے ترکے پر کل خاندان بنوامیہ کی نظر تھی لیکن ایک حکم شاہی کے ذریعے گزشتہ حکمران کی ساری جائدادونقد بیت المال میں جمع کرادیے،اہل بیت نبوی کی محبت و عقیدت میں باغ فدک،جوایک عرصے سے گھمبیرمسئلہ تھااورآپ کے پیش روحکمرانوں نے اس پر غاصبانہ قبضہ کررکھاتھا،اس کے اصل ورثاء خاندان بنوہاشم کو لوٹادیا،اس کے علاوہ بھی بنوامیہ نے آل علی کی جن جن جائدادوں کو زبردستی اپنی تحویل میں لے رکھاتھا انہیں واگزارکرایااور ان کے اصل مالکان کو لوٹا دیا،اورخطبہ جمعہ میں حضرت علی کرم اﷲ وجہ کی شان میں جو گستاخیاں کی جاتی تھیں انہیں اپنی خلافت کے روزاول سے بندکرادیا۔
حضرت عمربن عبدالعزیزؒ نے اپنی خاندانی و نجی زندگی بھی مکمل طورپر شریعت کے تابع کر دی اور خلفائے بنوامیہ کی بجائے خلفائے راشدین کے شعارکو اپنایا۔خلافت کے بعد اپنی زوجہ کو حکم دیاکہ اپنے زروجواہرات و زیورات بیت المال میں جمع کرادو،اتنی بڑی ریاست اور شاید اس وقت دنیا کی سب سے بڑی و متمدن ریاست کے حکمران کے گھر کوئی خادمہ و ملازمہ نہ تھی بلکہ سلطنت کی خاتون اول اپنی ہاتھوں سے ہی گھرکاساراکام سرانجام دیتی تھیں،جبکہ یہ خاتون اول ’’فاطمہ‘‘خلیفہ عبدالملک بن مروان کی بیٹی اور دو خلفا ولید بن عبدالملک اور سلیمان بن عبدالملک کی بہن تھی۔حضرت عمربن عبدالعزیزؒ نے بیت المال پر خلیفہ کے ذاتی تصرف کو کلیۃ ختم کردیااور سیاسی رشوت کے طورپر دیے جانے والے شاہی عطیات و تحائف پر پابندی لگادی۔شاہی خاندان کے وظائف بندکرکے تو بیت المال کا رخ عوام کی طرف موڑ دیااس اقدام سے شاہی خاندان کو بے حد تکلیف ہوئی یہاں تک کہ حضرت عمربن عبدالعزیزؒ نے عام اعلان کرادیا کہ شاہی خاندان کے کسی فرد نے کسی کی جائداد زبردستی غصب کررکھی ہے تو وہ اس پر دعوی کرے اسے انصاف فراہم کیاجائے گا۔اس وقت تک نومسلموں سے بھی اس لیے جزیہ وصول کیاجاتاتھا کہ وہ جزیہ کے ٹیکس سے بچنے کے لیے مسلمان ہوئے ہیں ،حضرت عمربن عبدالعزیزؒ نے اس ظالمانہ ٹیکس کے خاتمے کااعلان کیااور اس کے علاوہ بھی رعایا پر ناجائز لگان ختم کر دئے گئے۔ان اقدامات کے نتیجے میں فوری طورپر ریاست کی آمدنی میں بہت زیادہ کمی ہوگئی جسے آپ نے سرکاری اخراجات میں کٹوتی سے پوراکیا جبکہ دوررس نتائج بہت جلد نمودارہونے لگے اور عوام میں خوشحالی عام ہوگئی اور صرف ایک سال بعد یہ نوبت آگئی کہ لوگ صدقات لے کر نکلتے تھے اور لینے والا نہیں ملتاتھا۔فلاح عامہ کے لیے حضرت عمربن عبدالعزیزؒ نے جگہ جگہ سرائیں بنائیں اور مسافروں کودودنوں تک ریاست کی طرف سے کھانا مفت فراہم کیاجاتاتھا۔حکمران کی اس خوب سیرتی کااثربہت دور دور تک محسوس کیاگیا یہاں تک کہ سندھ میں راجہ داہر جیسے حکمران کا بیٹا’’جے سنگھ‘‘بھی حضرت عمربن عبدالعزیزؒ کے دور میں دائرہ اسلام میں داخل ہو گیا۔تدوین وتحریرحدیث نبوی ﷺآپ ہی حکم سے شروع کی گئی تھی،جو آپ کا لازوال علمی کانامہ ہے۔آپ نے اس وقت کے علما کو خط لکھا کہ میں دیکھ رہاہوں اسناد طویل ہوتی جارہی ہیں اور علم(حدیث نبویﷺ)مٹتاچلا جارہاہے،پس تم اس کو تحریر کر لو۔امیرالمومنین کے اس خط کے بعد سے احادیث کی کتابت کا باقائدہ آغاز ہوا جو بعد میں ایک زمانے کے اندر ایک بہت بڑے فن اور پھر قانون اسلامی و فقہ و شریعت کی بنیاد بنا۔
دشمنوں نے سر اٹھایا کہ حضرت عمربن عبدالعزیزؒ
رحمۃ اللہ علیہ  چونکہ فقیر منش حکمران ہیں اس لیے ان کی شرافت سے فائدہ اٹھایا جائے،چنانچہ باغیوں نے آذربائجان میں ہزاروں معصوم مسلمانوں کا خون کر ڈالا ۔امیرالمومنین نے اپنے سپہ سالارابن حاتم کو چڑھائی کا حکم دیاجنہوں اسلامی سپاہ کے ساتھ ایک بھرپو کاروائی کے ذریعے باغیوں کو بھاری نقصان پہنچاکر ان کا منہ موڑ ڈالا۔دشمنوں کے لیے لوہے کا چنا ثابت ہونے والا حضرت عمربن عبدالعزیزؒ اپنی رعایااورسگی اولاد پر بے حد شفقیق ومہربان تھا،اتنا زیادہ کہ انہیں دوزخ کی آگ کے قریب بھی نہیں پھٹکنے دیتاتھا۔ایک بار اپنی چہیتی بیٹی ‘‘آمنہ‘‘کو بلایا وہ محض اس لیے باپ کے سامنے نہ آسکی کہ اس وقت اس کے پاس مناسب ستر پوش کپڑے موجود نہ تھے جو بعد میں اس کی خالہ نے اسے خرید کر فراہم کیے۔حضرت عمربن عبدالعزیزؒ کسی طرح کا تحفہ یا ہدیہ بھی قبول نہ کرتے تھے ایک بارسیبوں کا ایک ٹوکرا پیش کیاگیا،دیکھ کر بہت تعریف کی لیکن قبول کرنے سے انکار کر دیا،سائل نے کہا کہ تحفہ قبول کرنا سنت نبوی ﷺ ہے جس پر جواب دیا کہ محسن انسانیت ﷺکے لیے تحفہ تھا مگر میرے لیے رشوت ہے۔کم و بیش ڈھائی سالہ اقتدارخلافت راشدہ خود خاندان بنوامیہ کے لیے درد سر بن گیاتھااور ان کے عیش و عشرت وچیرہ دستیاں ماند پڑ چکی تھیں چنانچہ ایک غلام کو سات ہزار کی رقم دے کر امیرالمومنین کو زہر دے دیا گیا،معلوم ہونے پر غلام سے رقم لے کر بیت المال میں جمع کرادی اور اسے آزادکرکے حکم دیا یہاں سے فوراََنکل جاؤ کہ مباداکوئی اسے قتل کردے۔25رجب 101ھ کو اس دار فانی سے کوچ کرکے شہادت کی منزل مراد حاصل کر لی اورترکہ میں کل سترہ دینار چھوڑے
،انا للہ وانا علیہ راجعون
(21رجب یوم وفات کے موقع پر خصوصی تحریر)
ڈاکٹر ساجد خاکوانی

http://www.fikrokhabar.com/index.php/enlightenment-news-article/item/9835-khaleefa-rashid-hazrat-umar-bin-abdulazeez

کیا فرماتے ہیں حضرت مولانا محمد سعد صاحب

بسم اللە الرحمن الرحیم----

(میرےکام کامقصداحیاءسنت ھے)---------------------------------------جب میں  اپنے ماحول میں کوئی عمل خلاف سنت دیکھتا ھوں تو سوچتاھوں کە ھمارا مجمع پیچھے جارھاھے-------------------------- ھماری مسجد میں لوگ تصویریں لیں اس کا مقصد یە ھےکە آج ھم سب استدراج میں ھیں کەجن علماء نےمشتبەچیزوں کے بارے میں تساھل برتا------،چونکە جس چیز سےفحش کے پھیلنے کا اندیشە ھو------------ اس چیز کے بارے میں "سکوت"-----فحش کے بڑھانے میں مددکرناھے---------- کیاعلماء---،کیاعوام-----کیاعلماء کی اولادیں- دین بے دین- سب ایک ھوے ھیں ،اور اس کو دین کا کام سمجھ رھے ھیں،حالانکە یە حرام میں----- گرفتارھیں،ھر ایک کے جیب میں مبائل ھے--------،بیٹھ کر تصویریں بنانا.فلمیں بنانا،شیطان ان کی گدی پر سوار ھے،---اور یە خود شیطان ھیں.جو کوئی بھی ھو ،اور کوئی بھی اس کے جواز کافتوی دیتا ھو ،بالکل شیطانیت کی مدد کرناھے-چاھے وە کوئی بھی مفتی ھو،--- ٹکنا لوجی حلت و حرمت کی بنیاد نھیں ھے ،اللە کا امرھے ،--(میرے نزدیک اس شخص کی نماز ھی نھیں ھوتی جس کے جیب میں کیمرےوالا موبائل ھے )------امت اپنےاعمال کو ضائع کررھی ھے،--------- سب کو دھوکاھے ---اس کا کە ھم اچھا کام کررھے ھیں، یە ساراگناە ان لوگوں کے سروں پر ھے کە جنھوں نے اس چیز کے بارے میں "سکوت"اختیار کیا ھواھے ،

(اللە کی طرف سے ڈھیل میں)--- استدراج کامطلب یە ھے- کە گمراە ھونا اپنے آپ کو حق پر سمجھتے ھوئے ---استدراج ایک ایساگڑاھے کەجس میں آدمی گرتا رھتاھے--- اورجھنم کے قریب ھوتارھتاھے-- اوراپنے آپ کو حق پر سمجھتا رھتا ھے چونکە آج ھم سب کے ذھن میں یە ھے ،کە ان سب اعمال سے گزرناتبلیغ ھے ------حالانکە حدیث صحیح ھے، کە ھر مصور جھنم میں جائیگا، یە طے  شدە بات ھے چاھے علماء کچھ بھی تاویلات کرتے ھوں ،میں سمجھتا ھوں،-----------------،(وە علماء سوء ھیں)

علماءسوءھیں وە----،جو مشتبەچیزوں کے بارے میں"سکوت" اختیار کرتے ھیں--------------- بڑی وعیدیں ھیں ایسے علماء کے لئے جو ان چیزوں کے بارےمیں تساھل برتتے ھیں .کە جن سے فحش کے پھیلنے کا اندیشە ھو (بالکل باطل ھے باطل)----------تم لاکھ تاویلات پیش کرتے رھو -----( بقول حضرت تھانوی علیھ الرحمە)------ "کە مصالح نےھی دین کو کھویا ھے"-----جولوگ علماءاور مشائخ کی تصویریں رکھتے ھیں--خداکی قسم وەشرک کرتے ھیں.---------------- شرک،شرک.شرک---؛؛؛؛؛-----------بت پرستی آئی ھی اسی راستے سے ھے-------یە عقیدے کی خرابی ھے،ایک ضرورت کی چیز تھی مبائل مگرلوگوں نے اسے کیا بنادیا،اسلام سے ھونا کیا چاھیے تھا مگر ھو کیا رھاھے ---اگر باطل کاباطل ھوناکام کرنےوالوں پر نھیں کھلتا توسب دھوکے میں ھیں------------------- یە زمانے کاایسافتنە ھے ،کە جس کو لوگ فتنە ھی نھیں سمجھتے-----بقول سیدابوالحسن علی ندوی رحمت اللە علیە--- "بےدینی کی اساس نظام عالم سے متائثرھوناھے-----،جوبھی متاثر ھوگا،اس کےلئےحق بات کھنا مشکل ھے،اللەکاواسطە اپنے آپ کو اس عذاب سے بچائیں---- اور اس کا منصفانە استعمال کریں--------------،آخری بات:--اھل نظر سے گذارش ھے اگر آپ کوئی خامی محسوس کریں تواصلاح فرمادیں-------------

(مستفاد آڈیو بیان
حضرت مولانا سعد صاحب
مدظلەالعالی)

Saturday, 16 May 2015

ڈاڑھ کا درد


ڈاڑھ کا درد وہ درد ہے، جسے انسان کا پورا جسم محسوس کرتا ہے،سوائے داڑھ کے !جب یہ ہوتا ہے تو انسان انسان نہیں رہتا ۔ سمٹ کرایک داڑھ بن جاتا ہے، جو یہاں سے وہاں لڑھکتی پھرتی ہے۔ اس مشاہدے کا بیان میں نے میاں عبدا لقدوس سے کیا توکہنے لگے کہ بات تم نے اچھی کہی ہے، لیکن یوں کہتے تو زیادہ اچھا رہتا کہ جب داڑھ میں درد جاگتا ہے تو وہ پھیل کر انسان بن جاتی ہے اور اس کے ساتھ وہی سلوک کرنے لگتی ہے جو وہ دوسرے انسانوں کے ساتھ کرتا ہے۔ یعنی خود تو پتہ نہیں کس غرور میں پھولا رہتا ہے اور باقی سب کو دکھ پہنچائے جاتا ہے۔چنانچہ داڑھ اور اس کے درد کے لئے ہی علامتاًکہا گیا ہے کہ : سمٹے تو دلِ عاشق پھیلے تو زمانہ ہے!
مجھے ایک بار پھر ان کے حسنِ تحریف و تحذیف کی داد دینا پڑی کہ ذرا سے لفظی ہیر پھیر سے انہوں نے شاعر کے مصرعے کو کہاں سے کہاں پہنچا دیا تھا۔ ایک روز پھراُن کی رگِ فلسفہ پھڑکی تو فرمایا: انسان کی شخصیت میں دو چیزیں ایسی ہیں، جو اس کے کردار اور مستقبل پر دور تک اور دیر تک اثر ڈالتی ہیں۔ داڑھ اور داڑھی! مگر موخرالذکر صرف آدھی انسانیت پر اپنے نیک و بد اثرات مرتب کر سکتی ہے۔‘‘
’’آدھی انسانیت ! یعنی؟‘‘مجھے پوچھنا پڑا۔
’’بھئی عورتوں کی داڑھی نہیں ہوتی نا، اس لئے نصف انسانیت کہاہے۔ خواتین کو نیک و بد اثرات مرتب کرانے کے لئے داڑھی کا نہیں داڑھی والوں کا احسان اٹھانا پڑتا ہے۔‘‘ 
خاں صاحب کچھ بھی کہیں میرا بہرحال یہ عقیدہ ہے کہ داڑھ کے درد سے انسان کی شخصیت آدھی کیا چوتھائی بھی نہیں رہ جاتی۔البتہ خود میرا جب اس درد سے پہلی بار واسطہ پڑا تو بے اختیار مجتبیٰ حسین کی داڑھ کا درد یا د آگیا، جس کا بیان کرتے ہوئے انہوں نے لکھا تھا کہ داڑھ دُکھتے ہی یوں محسوس ہوا جیسے منھ میں درد کی قوسِ قزح کھل اٹھی ہے!درد کی ایسی جمالیات دنیا کی کسی داڑھ کو نصیب نہ ہوئی ہوگی۔ مجتبیٰ صاحب داڑھ کے درد پر پورا مضمون لکھنے کی بجائے بس یہ ایک جملہ لکھ د یتے تب بھی مضمون کی مقبولیت میں کمی نہ آتی۔ یقین کیجئے مجتبیٰ صاحب کا جملہ یاد کرکے اس کی لذت سے کچھ دیر کے لئے میں اپنی داڑھ کا درد بھی بھول گیاکہ ان کی داڑھ بہر حال اردو کے مزاحیہ ادب میں میری داڑھ سے کہیں زیادہ بڑی اور سینئرہے۔ آخر جب ڈاکٹر کی دی ہوئی دافع دردPain Killer گولی منھ میں ڈالی، تب جا کر درد کو ہوش آیا اور گھر والوں کوہی نہیں بلکہ کچھ دیر بعد پڑوسیوں کوبھی معلوم ہوگیا کہ ان کے آس پاس کوئی داڑھ درد میں مبتلا ہو چکی ہے اور یہ کوئی بھوکی بلی نہیں، بلکہ ایک انسانی داڑھ شور مچا رہی ہے۔ 
یوں تو دنیا میں طرح طرح کے درد پائے جاتے ہیں۔ پیٹ کا درد، گردے کا درد، گھٹنے کا درد،گردن کا درد، سر کا درد، دل کا درد جیسے انفرادی دردوں کے علاوہ ایک اجتماعی درد موسوم بہ’ ملت کا درد‘ بھی ہے جو عام طور سے مسلم قائدین میں پایا جاتا ہے اور جسے قائدِ ملت کے ساتھ پوری قوم کو بھگتنا پڑتا ہے۔ لیکن درد کی نوعیت کو ملحوظ رکھا جائے تو یہ تمام درد، داڑھ کے درد کے آگے دودھ پیتے بچے ہیں، یعنی داڑھ کے درد کو آپ بابائے درد یا دردِ اعظم بھی کہہ سکتے ہیں۔یہ ٹھیک نہ لگے تو دردوں کا مغل اعظم کہہ لیجئے۔ 
یوں تو درد کی طرح داڑھوں کی بھی کئی قسمیں ہو تی ہیں۔ پہلی داڑھ ، دوسری داڑھ اور تیسری داڑھ تو نام سے ظاہر ہے کہ کن داڑھوں کو کہتے ہیں۔ ایک عقل داڑھ ہوتی ہے جو بالعموم جوانی میں نکلتی ہے۔ عقل داڑھ کے نکلتے ہی آدمی بے وقوفیاں شروع کر دیتا ہے۔وہ بے وقوفیاں جنہیں وہ تمام عمر جھیلتا اور ڈھوتا ہے۔ شادی بالعموم عقل داڑھ نکلنے کے بعدانسان کی پہلی ایسی حماقت ہوتی ہے، جس کاوہ بڑی شان، بڑی آرزو اور بڑی دھوم دھام سے ارتکاب کرتا ہے اور مسلمانوں میں تویہ حماقت، صاحبِ داڑھ و داڑھی کے باقاعدہ ایجاب و قبول اور گواہان کی موجودگی میں کرائی جاتی ہے تاکہ بعد میں وہ حماقت سے منحرف نہ ہو سکے۔داڑھ کے باقی درد تو اپنی اپنی طے شدہ مدت پوری کرکے رفع دفع ہو جاتے ہیں، لیکن عقل داڑھ کایہ منکوحہ دردانسان کا تب تک پیچھانہیں چھوڑتا، جب تک وہ نوبت نہ آجائے جس کی آرزو مرزا غالب نے اپنے ایک خط میں حبسِ دم کے اور ایک شعر میں قیدِ حیات و بندِ غم کے حوالوں سے کی تھی۔ یا پھر وہ صورت نہ پیداہوجائے، جس کا جشن مناتے ہوئے مزاح کے ایک شاعر نے مرزا کے شعر پر اپنا مصرعہ چپکاکرکہا تھا کہ:
بیویاں مرتی گئیں میں شادیاں کرتا گیا
مشکلیں اتنی پڑیں مجھ پر کہ آساں ہو گئیں
داڑھ کے درد میں مختلف لوگوں کے مختلف ردِّ عمل ہوا کرتے ہیں۔تاہم ایک مشترک ردِّ عمل یہ ہے کہ لوگ کان اور گال پر ہاتھ یا رومال رکھ کر علامہ اقبال کی تصویر بنے دنیا کی بے ثباتی پر غور کرتے رہتے ہیں۔کئی بار موبائل فون پر دیر تک باتیں سننے والی لڑکیوں کو دیکھ کر بھی یہ شبہ ہوجاتا ہے۔
ایک مرتبہ دفتر کے ایک ساتھی اسی طرح بڑی دیر سے ایک کان کو رومال سے دبائے بیٹھے تھے۔موصوف کرکٹ کے کم اور اس کی کمنٹری کے زیادہ شوقین تھے، اس لئے فوراً سمجھ میں آگیا کہ پاکٹ ٹرانزسٹر کان سے لگائے کرکٹ کمنٹری سن رہے ہیں اور ٹرانزسٹر کو رومال سے اس لئے چھپا رکھا ہے تاکہ ہر آنے جانے والابار بار اسکور پوچھ کر مزہ خراب نہ کرسکے۔ چہرے پر درد اور تکلیف کے جو آثار تھے، ان سے تازہ اسکور صاف پڑھا جارہا تھا کہ یقیناان کی محبوب ٹیم اس وقت خطرے میں تھی۔یہ دیکھ کرمیرے دل میں پورا اسکور جاننے کی ایسی تڑپ اٹھی کہ ان کے پاس جاکر بیٹھ گیا۔
’’مجھے افسوس ہے‘‘ میں نے کہا۔
’’شکریہ!‘‘ وہ بولے۔
’’غم نہ کیجئے یہ سب تو ہوتا ہی رہتاہے۔‘‘ میں نے تسلی دی۔
’’جی ہاں! آپ ٹھیک کہتے ہیں۔‘‘ انھوں نے کہا۔
جی تو چاہتا تھا کہ اب فوراً ان سے اسکور پوچھ لوں، مگروہ اتنے غمزدہ لگ رہے تھے کہ ہمت نہ ہوئی، اس لئے سوچا کہ انھیں باتوں میں لگا کر دھیرے دھیرے مطلب کی بات پر آنا چاہیے۔’’ویسے شروع کب ہو اتھا؟‘‘ میں نے میچ کے بارے میں پوچھا۔
’’آج صبح ہی، جب دفتر آرہا تھا تو راستے میں ا چانک شروع ہوگیا۔‘‘ وہ باقاعدہ کراہ کر بولے۔
’’اوہ! اب تو لنچ ہونے والا ہوگا۔‘‘
’’جی ہاں! دس منٹ اور ہیں۔‘‘ انھوں نے دفتر کی گھڑی دیکھ کر کہا۔
’’کون سا اوور چل رہاہے‘‘ میں نے دھیرے سے پوچھا۔
وہ عجیب سی نظروں سے دیکھنے لگے، پھر آپ ہی بولے۔ ’’مگر اوور ٹائم تو میں کرتا ہی نہیں۔‘‘
’’میں اوور ٹائم کی نہیں، اوور کی بات کررہاہوں۔ اب تک تو پینتالیس اوور ہوگئے ہوں گے۔‘‘
’’کیا مطلب!؟‘‘ ان کی آنکھوں سے غصہ جھلکنے لگا۔
’’مم... میرا مطلب ہے کہ ...اس وقت کیا اسکور ہواہے۔‘‘
’’اسکور!‘‘ وہ دہاڑے۔’’ آپ کو کرکٹ سوجھ رہا ہے؟ اور میں داڑھ کے درد سے مرا جارہاہوں، یہ دیکھئے پوری داڑھ پھولی ہوئی ہے۔‘‘انھوں نے منہ کھول دیا اور تب سمجھ میں آیا کہ انھوں نے رومال سے دایاں کان اور گال کیوں دبا رکھا تھا۔
اتفاق دیکھئے کہ ایک ہفتے بعد وہ پھر حکیم الامت کے پوز میں دکھائی دئیے۔ دیر سے دائیں کان اور گال پر رومال رکھے افسردہ بیٹھے تھے۔میں نے سوچا عیادت ہی کرلی جائے۔’’مجھے افسوس ہے‘‘میں نے کہا۔
’’شکریہ!‘‘ وہ گھور کر بولے۔
’’داڑھ تو آپ نے نکلوادی تھی نا۔‘‘
’’جی ہاں نکلوادی تھی۔‘‘
’’چلیے گھبرانے کی کوئی بات نہیں، کبھی کبھی داڑھ نکلوانے کے بعد بھی درد ہوجاتاہے۔‘‘
’’کیا مطلب!؟‘‘
’’مطلب یہ کہ ہمارے خالونے بھی ایک مرتبہ داڑھ نکلوائی تھی، مگر بعد میں اس میں مواد پڑ گیا اور سپٹک ہوگیا۔ خدا مغفرت کرے!‘‘
یہ سنتے ہی ان کی آنکھوں سے خوف جھلکنے لگا۔ بار بار گال دباکرداڑھ والی جگہ کو ٹٹولنے لگے، بلکہ بعد میں تو منہ میں ا نگلی ڈال کر بھی مرحومہ کی جڑ کو زور سے دبایا۔’’مگر مجھے تو کوئی درد نہیں ہورہاہے۔‘‘ انھوں نے کہا ’’ آپ مجھے خواہ مخواہ ڈرا رہے ہیں۔‘‘ 
’’درد نہیں ہورہاہے تو گال کو رومال سے دبائے کیوں بیٹھے ہیں۔‘‘
’’گال...رومال۔ لاحول ولاقوۃ۔ یہ تو ٹرانزسٹر ہے جناب، کمنٹری سن رہاہوں۔ ہماری ٹیم کی حالت بہت خراب ہے۔‘‘انھوں نے رومال سے ٹرانزسٹر نکال کر آنکھوں کے آگے لہرادیا اور میں خفیف ہو کر رہ گیا۔

نصرت ظہیر

Thursday, 14 May 2015

महिलाओं के बारे में क्या कहती है मनु स्म्रती

जानिये ,
महिलाओं के बारे में
" मनु स्म्रती"
( धार्मिक ग्रंथ)
क्या कहती है
The Manusmriti also known as Manav Dharam Shastra, is the earliest metrical work on Brahminical Dharma in Hinduism. According to Hindu mythology, the Manusmriti is the word of Brahma, and it is classified as the most authoritative statement on Dharma .The scripture consists of 2690 verses, divided into 12 chapters.  It is presumed that the actual human author of this compilation used the eponym ‘Manu’, which has led the text to be associated by Hindus with the first human being and the first king in the Indian tradition.
Although no details of this eponymous author’s life are known, it is likely that he belonged to a conservative Brahman class somewhere in Northern India. Hindu apologists consider the Manusmriti as the divine code of conduct and, accordingly, the status of women as depicted in the text has been interpreted as Hindu divine law.  While defending Manusmriti as divine code of conduct for all including women, apologists often quote the verse: “yatr naryasto pojyantay, ramantay tatr devta [3/56] (where women are provided place of honor, gods are pleased and reside there in that household), but they deliberately forget all those verses that are full of prejudice, hatred  and discrimination against women.
Here are some of the ‘celebrated’ derogatory comments about women in the Manusmriti:
1. “Swabhav ev narinam …..” – 2/213. It is the nature of women to seduce men in this world; for that reason the wise are never unguarded in the company of females.
2. “Avidvam samlam………..” – 2/214. Women, true to their class character, are capable of leading astray men in this world, not only a fool but even a learned and wise man. Both become slaves of desire.
3. “Matra swastra ………..” – 2/215. Wise people should avoid sitting alone with one’s mother, daughter or sister. Since carnal desire is always strong, it can lead to temptation.
4. “Naudwahay……………..” – 3/8. One should not marry women who has have reddish hair, redundant  parts of the body [such as six fingers], one who is often sick, one without hair or having excessive hair and one who has red eyes.
5. “Nraksh vraksh ………..” – 3/9. One should not marry women whose names are similar to constellations,  trees, rivers, those from a low caste, mountains, birds, snakes, slaves or those whose names inspires terror.
6. “Yasto na bhavet ….. …..” – 3/10. Wise men should not marry women who do not have a brother and whose parents are not socially well known.
7. “Uchayangh…………….” – 3/11. Wise men should marry only women who are free from bodily defects, with beautiful names, grace/gait like an elephant, moderate hair on the head and body, soft limbs and small teeth.

8. “Shudr-aiv bharya………” – 3/12.Brahman men can marry Brahman, Kshatriya, Vaish and even Shudra women but Shudra men can marry only Shudra women.
9. “Na Brahman kshatriya..” – 3/14. Although Brahman, Kshatriya and Vaish men have been allowed inter-caste marriages, even in distress they should not marry Shudra women.
10. “Heenjati striyam……..” – 3/15. When twice born [dwij=Brahman, Kshatriya and Vaish] men in their folly marry low caste Shudra women, they are responsible for the degradation of their whole family. Accordingly, their children adopt all the demerits of the Shudra caste.
11. “Shudram shaynam……” – 3/17. A Brahman who marries a Shudra woman, degrades himself and his whole family  ,becomes morally degenerated , loses Brahman status and his children too attain status  of shudra.
12. “Daiv pitrya………………” – 3/18. The offerings made by such a person at the time of established rituals are neither accepted by God nor by the departed soul; guests also refuse to have meals with him and he is bound to go to hell after death.
13. “Chandalash ……………” – 3/240. Food offered and served to Brahman after Shradh ritual should not be seen by a chandal, a pig, a cock,a dog, and a menstruating women.
14. “Na ashniyat…………….” – 4/43. A Brahman, true defender of his class, should not have his meals in the company of his wife  and even avoid looking at her. Furthermore, he should not look towards her when she is having her meals or when she sneezes/yawns.
15. “Na ajyanti……………….” – 4/44. A Brahman in order to preserve his energy and intellect, must not look at women who applies collyrium to her eyes, one who is massaging her nude body or one who is delivering a child.
16. “Mrshyanti…………….” – 4/217. One should not accept meals from a woman who has extra marital relations; nor from a family exclusively dominated/managed by women or a family whose 10 days of impurity because of death have not passed.
17. “Balya va………………….” – 5/150. A female child, young woman or old woman is not supposed to work independently even at her place of residence.
18. “Balye pitorvashay…….” – 5/151. Girls are supposed to be in the custody of their father when they are children, women must be under the custody of their husband when married and under the custody of her son as widows. In no circumstances is she allowed to assert herself independently.
19. “Asheela  kamvrto………” – 5/157. Men may be lacking virtue, be sexual perverts, immoral and devoid of any good qualities, and yet women must constantly worship and serve their husbands.
20. “Na ast strinam………..” – 5/158. Women have no divine right to perform any religious ritual, nor make vows or observe a fast. Her only duty is to obey and please her husband and she will for that reason alone be exalted in heaven.
21. “Kamam to………………” – 5/160. At her pleasure [after the death of her husband], let her emaciate her body by living only on pure flowers, roots of vegetables and fruits. She must not even mention the name of any other men after her husband has died.
22. “Vyabhacharay…………” – 5/167. Any women violating duty and code of conduct towards her husband, is disgraced and becomes a patient of leprosy. After death, she enters womb of Jackal.
23. “Kanyam bhajanti……..” – 8/364. In case women enjoy sex with a man from a higher caste, the act is not punishable. But on the contrary, if women enjoy sex with lower caste men, she is to be punished and kept in isolation.
24. “Utmam sevmansto…….” – 8/365. In case a man from a lower caste enjoys sex with a woman from a higher caste, the person in question is to be awarded the death sentence. And if a person satisfies his carnal desire with women of his own caste, he should be asked to pay compensation to the women’s faith.
25. “Ya to kanya…………….” – 8/369. In case a woman tears the membrane [hymen] of her Vagina, she shall instantly have her head shaved or two fingers cut off and made to ride on Donkey.
26. “Bhartaram…………….” – 8/370. In case a women, proud of the greatness of her excellence or her relatives, violates her duty towards her husband, the King shall arrange to have her thrown before dogs at a public place.
27. “Pita rakhshati……….” – 9/3. Since women are not capable of living independently, she is to be kept under the custody of her father as child, under her husband as a woman and under her son as widow.
28. “Imam hi sarw………..” – 9/6. It is the duty of all husbands to exert total control over their wives. Even physically weak husbands must strive to control their wives.
29. “Pati bharyam ……….” – 9/8. The husband, after the conception of his wife, becomes the embryo and is born again of her. This explains why women are called Jaya.
30. “Panam durjan………” – 9/13. Consuming liquor, association with wicked persons, separation from her husband, rambling around, sleeping for unreasonable hours and dwelling -are six demerits of women.
31. “Naita rupam……………” – 9/14. Such women are not loyal and have extra marital relations with men without consideration for their age.
32. “Poonshchalya…………” – 9/15. Because of their passion for men, immutable temper and natural heartlessness, they are not loyal to their husbands.
33. “Na asti strinam………” – 9/18. While performing namkarm and jatkarm, Vedic mantras are not to be recited by women, because women are lacking in strength and knowledge of Vedic texts. Women are impure and represent falsehood.
34. “Devra…sapinda………” – 9/58. On failure to produce offspring with her husband, she may obtain offspring by cohabitation with her brother-in-law [devar] or with some other relative [sapinda] on her in-law’s side.
35. “Vidwayam…………….” – 9/60. He who is appointed to cohabit with a widow shall approach her at night, be anointed  with clarified butter and silently beget one son, but by no means a second one.
36. “Yatha vidy……………..” – 9/70. In accordance with established law, the sister-in-law [bhabhi] must be clad in white garments; with pure intent her brother-in-law [devar] will cohabitate with her until she conceives.
37. “Ati kramay……………” – 9/77. Any women who disobey orders of her lethargic, alcoholic and diseased husband shall be deserted for three months and be deprived of her ornaments.
38. “Vandyashtamay…….” – 9/80. A barren wife may be superseded in the 8th year; she whose children die may be superseded in the 10th year and she who bears only daughters may be superseded in the 11th year;  but she who is quarrelsome may be superseded without delay.
39. “Trinsha……………….” – 9/93. In case of any problem in performing religious rites, males between the age of 24 and 30 should marry a female between the age of 8 and 12.
40. “Yambrahmansto…….” – 9/177. In case a Brahman man marries Shudra woman, their son will be called ‘Parshav’ or ‘Shudra’ because his social existence is like a dead body.
Palash Biswas

The Status Of Women As Depicted By Manu In The Manusmriti

http://nirmukta.com/2011/08/27/the-status-of-women-as-depicted-by-manu-in-the-manusmriti/